दुनिया से लेकर देश तक की अर्थव्यवस्था पर अनिश्चितता मंडरा रही है। इसने शेयर बाज़ार में निवेश व ट्रेडिंग का रिस्क पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा दिया है। ऐसे में अगर कोई ट्रेडर रिस्क को संभालने का पुख्ता इंतज़ाम नहीं करता, वह तगड़ी चोट खा सकता है। स्टॉप-लॉस और पोजिशन साइजिंग ट्रेडिंग के रिस्क को संभालने के दो खास तरीके हैं। लेकिन अहम सवाल यह है कि इन्हें व्यवहार में कैसे अपनाया जाए? अब सोमवार का व्योम…और भीऔर भी

देश में अच्छे लोगों की कमी नहीं है। लेकिन हमारी राजनीति में अच्छे लोगों को बहुत कम भाव मिलता है। हालांकि दिल्ली में अचानक ऐसे अच्छे लोग राजनीति में छा जाते हैं। शेयर बाज़ार में भी इस समय बहुत सारी अच्छी कंपनियों को भाव नही मिल रहा। लेकिन यकीन मानें कि जल्दी ही दिल्ली की राजनीति की तरह इन्हें भी इनका अंतर्निहित भाव मिलना शुरू हो जाएगा। आज तथास्तु में ऐसी ही संभावनामय, मगर दबी हुई कंपनी…और भीऔर भी

दिशाहीन बाज़ार में फिलहाल इंट्रा-डे ट्रेडर ही चल रहे हैं। इनमें भी खासतौर पर माइक्रो-ट्रेन्ड ट्रेडर जो ऐसे ट्रेडर हैं जो 59 मिनट 59 सेकेंड से ज्यादा ट्रेड नहीं करते। सौदे एक घंटे के भीतर काट देते हैं। वहीं, इंट्रा-डे ट्रेडर दिन के दिन में सौदे काटते हैं। उनके सौदों का सारा हिसाब-किताब दिन की ट्रेडिंग खत्म होने के साथ ही बराबर हो जाता है। न ऊधव का लेना, न माधव का देना। अब शुक्रवार का अभ्यास…और भीऔर भी

हमारे शेयर बाज़ार की दशा-दिशा के सबसे बड़े निर्धारक हैं विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई)। एफआईआई भी इन्हें कहा जाता है। बजट के बाद इन्होंने अभी तक रुख साफ नहीं किया है। जब तक इनका रुख स्पष्ट नहीं होता, तब तक बाज़ार यूं ही दिशाहीन रहेगा। ये संस्थाएं निवेश की निश्चित रकम हर तिमाही के लिए आवंटित कर देती हैं। फिर उसके मुताबिक अनुशासन में बंधकर बाज़ार में धन डालती या उससे निकालती हैं। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी