शेयर बाज़ार में रिटेल ट्रेडरों या निवेशकों के आने का असर उतना ही होता है, जितना किसी तालाब में एक बाल्टी पानी का। यहां सारा खेल होता है संस्थाओं का। इसमें देशी (डीआईआई) और विदेशी निवेशक संस्थाएं (एफआईआई) शामिल हैं। बैंकों व ब्रोकरों के प्रॉपराइटरी निवेश की भी अहमियत है। हमें खासतौर पर एफआईआई के शुद्ध निवेश पर नज़र रखनी चाहिए क्योंकि वो बाज़ार की दिशा तय करने में अहम रोल निभाता है। अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग छोटी अवधि का बिजनेस/खेल है। इसमें लंबे समय की फंडामेंटल एनालिसिस नहीं चलती। ट्रेडर के लिए यह कोई मायने नहीं रखता कि सेंसेक्स या निफ्टी इस समय कितने पी/ई या पी/बी अनुपात पर ट्रेड हो रहे हैं। उसके लिए सबसे ज्यादा मतलब इस बात का होता है कि बाज़ार में धन का प्रवाह कितना और कैसा है? लोगबाग बाज़ार में धन लगा रहे हैं या वापस खींच रहे हैं? अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी

क्या लगता है कि बाज़ार किधर जाएगा? मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आएगी या कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनेगी? दोनों ही सूरत में शेयर बाज़ार का क्या हाल रहेगा? बाज़ार चुनावों के बाद गिरेगा कि बढ़ेगा? गिरा तो कितना और बढ़ा तो कितना? इस साल भारत का डीजीपी कितना रह सकता है? ऐसे सवालों से आप भी रू-ब-रू होते होंगे। लेकिन ये तमाशबीनों के सवाल है, बाज़ार से कमानेवालों के नहीं। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

सरकारें आती रहीं, जाती रहीं। हमारी अर्थव्यवस्था जिस रफ्तार से बढ़ी, उससे ज्यादा रफ्तार से शेयर बाज़ार बढ़ा। बीते 39 सालों में बीएसई सेंसेक्स 305 गुना से ज्यादा बढ़ा है। इसने उन सभी लोगों को दौलत बनाने का मौका दिया, जिन्होंने समझदारी से अच्छी कंपनियों में लंबे समय के लिए निवेश किया। हमें भी यही रास्ता अपनाना चाहिए और चुनावी तमाशे व टीवी चैनलों पर मचे शोर से दूर रहना चाहिए। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी