देश में वित्तीय समावेश की स्थिति पहले से बेहतर हो गई है। पांच साल पहले 35 फीसदी भारतीय घरों तक ही बैंकिंग सेवाओं की पहुंच थी। लेकिन अब यह 47 फीसदी हो गई है और अगले पांच साल में देश के 80 फीसदी घरों तक हमारी बैंकिंग सेवाओं का नेटवर्क पहुंच जाएगा। यह दावा प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई (कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) और बोस्टन कंसल्टेंसी ग्रुप (बीसीजी) की साझा अध्ययन रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सोमवार को राजधानी दिल्ली में जारी किया।
रिपोर्ट में कहा गया है, “उम्मीद है कि औपचारिक वित्तीय पहुंच अगले पांच सालों में 47 फीसदी के वर्तमान स्तर से बढ़कर 80 फीसदी तक पहुंच जाएगी। इस तरह पांचवें साल में वित्तीय सेवाएं देनेवाले 3500 करोड़ रुपए के नए बाजार को पकड़ पाएंगे।”
रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जाहिर की गई है कि आधे से ज्यादा भारतीय घरों को अभी तक धन भेजने, बचत खातों और औपचारिक तंत्र से कर्ज लेने की सुविधा नहीं मिली हुई है। बैंकों ने कोशिश जरूर की है। लेकिन पिछले पांच सालों में औपचारिक वित्तीय सेवाओं के दायरे में आनेवाले घरों का अनुपात 35 फीसदी से बढ़कर 47 फीसदी तक ही पहुंच सका है। बैंकों की बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट (बीसी) व्यवस्था से स्थिति सुधरी है, लेकिन इसे पर्याप्त नहीं माना जा सकता।
अब हर भारतीय को अलग पहचान (यूआईडी) देने की आधार परियोजना और बीसी में एनजीओ के अलावा मुनाफे की सोच रखनेवाली कंपनियों को भी शामिल करने से वित्तीय समावेश की कोशिशों को बल मिलेगा। बता दें कि सीआईआई-बीसीजी ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने के लिए देश भर में वित्तीय सेवाओं के 12,000 से ज्यादा ग्राहकों से बातचीत की है।
अभी नए वित्त वर्ष 2011-12 का आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था, “मैंने बैंकों से मार्च 2012 तक 2000 से ज्यादा आबादी वाली सभी बसाहटों तक बैंकिंग सेवाएं पहुंचा देने को कहा है। उन्होंने ऐसी 73,000 बसाहटों को चिह्नित किया है। इसमें से मार्च 2011 तक 20,000 बसाहटों तक बैंकिंग सेवाएं पहुंच जाएंगी। बाकी (53,000) 2011-12 के दौरान कवर कर ली जाएंगी।”
सीआईआई-बीसीजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापक आबादी को बैंकिंग सेवाओं के दायरे में लाने से सरकार तमाम सामाजिक योजनाओं में लीकेज और भ्रष्टाचार को खत्म कर पाएगी। ऊपर से लोगों की बचत के आने से कॉरपोरेट क्षेत्र के विकास पर कई गुना असर दिखाई देगा। लोगों की आय बढ़ेगी, इससे देश को भी लाभ मिलेगा। रिपोर्ट का कहना है कि देश में वित्तीय समावेश होना ही है, इसलिए नहीं कि यह राजनीतिक रूप से सही है, बल्कि इसलिए क्योंकि यह आर्थिक रूप से भी सही है। इसके लिए सभी संबंधित पंक्षों को साथ आना होगा और इस लक्ष्य को जल्दी से जल्दी हासिल करने की कोशिश करनी होगी।