अपने आसपास के जितने भी निवेशकों को मैं जानता हूं. उनमें से ज्यादातर लोग बिजनेस चैनलों, अखबारों, निवेश पोर्टलों, ब्रोकरों और वॉट्स-अप ग्रुप में मिली सलाहों या टिप्स पर अपना धन शेयर बाज़ार में लगाते हैं। अक्सर कन्फ्यूज़ रहते हैं कि छोटी अवधि के ट्रेडर हैं या लम्बे समय के निवेशक। मजे की बात यह है कि बिना किसी अपवाद के ये सारे के सारे निवेशक छोटी अवधि और लम्बी अवधि, दोनों में दुखी ही रहते हैंऔरऔर भी

हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती। इसी तरह हर चर्चित और चढ़ा हुआ शेयर अच्छा नहीं होता। हमें हर चमक को समझने का सलीका विकसित करना होता है। साथ ही पहले से चढ़े हुए शेयरों की फांस से बचना चाहिए। निवेश की दुनिया में हमें विश्वास नहीं, संदेह से शुरू करना चाहिए। उन्हीं कंपनियों में निवेश करें जिनका बिजनेस मॉडल हमें अच्छी तरह समझ में आ जाए। मुफ्त के तमाम सलाहकार बताते फिरते हैं कि यह मल्टी-बैगरऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में निवेश से लम्बे समय में अच्छा कमाने के लिए समय पर अच्छे स्टॉक्स चुनने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है गलत स्टॉक्स को गलत भाव पर खरीदकर फंसने से बचना। गलतियों से बचेंगे तो ठीकठाक कंपनियों के शेयर चार-पांच साल में आराम से 12-14% की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से रिटर्न दे देते हैं। लेकिन 20-25 स्टॉक्स के पोर्टफोलियो में पांच-दस गलत स्टॉक्स फंस गए तो बाकियों का रिटर्न भी खाकर बैठ जाते हैं। इसलिएऔरऔर भी

शेयर बाज़ार अनिश्चितता से भरा है। लेकिन हमारे यहां निवेशक बराबर निश्चितता की तलाश में लगे रहते हैं। कौन-से शेयर खरीदूं जो जमकर रिटर्न देंगे? बाज़ार कहां तक गिरेगा या उठेगा? कौन-से एनालिस्ट, बिजनेस चैनल या अखबार सटीक सलाह देते हैं? फिर इन सवालों के पक्के जवाब पाने के लिए निवेशक तरह-तरह के एप्प, वेबसाइट, अखबारों, चैनलों व उनके सलाहकारों के चंगुल में खुद फंस जाते हैं और दूसरों को भी वॉट्स-अप ग्रुप जैसे माध्यनों से फंसातेऔरऔर भी

भारतीय शेयर बाजार अब भी इतना विकसित नहीं हुआ है कि उस्तादों के शिकंजे से निकलकर आम निवेशकों व ट्रेडरों के लिए भी बहुत सहज व सामान्य हो जाए। इनके लिए तो अब भी वही पुरानी स्थिति है कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। कोई भी कहीं भी रिटेल निवेशकों व ट्रेडरों के बीच सर्वे कर ले तो यही नतीजा निकलेगा कि 90-95% निवेशक व ट्रेडर गंवाते हैं, जबकि केवल 5-10% ही कमाते हैं। साथ ही यहां निवेशऔरऔर भी

आम निवेशकों का कोई खास नहीं, कोई अपना नहीं। उन्हें नहीं पता कि जिन्हें वे खास व सगा समझते हैं, वे असल में उनका ही शिकार करने बाज़ार में उतरे हैं। बिजनेस चैनलों, अखबारों और कुकुरमुत्तों की तरह उग आए वेबपोर्टलों के विशेषज्ञों व सलाहकारों की मुफ्त सलाहों पर वे लहूलोह होते रहते हैं। ऐसे विशेषज्ञों को निवेश का भगवान मानते हैं। उनकी सलाह मान शेयर खरीदते हैं। लेकिन अक्सर दुखी रहते हैं कि जब भी वेऔरऔर भी

हम अक्सर शेयरों के उठने-गिरने की माया में ऐसे खो जाते हैं कि उनसे जुड़ी कंपनियों के प्रबंधन की तरफ देखते ही नहीं। आज के दौर में कहीं ज्यादा ज़रूरी हो गया है कि हम ऐसी ही कंपनियों को निवेश के लिए चुने, जिनका प्रबंधन शेयरधारकों के लिए बराबर मूल्य-सृजन करता रहा है। हाल में दुनिया के सफलतम निवेशक वॉरेन बफेट ने अच्छे प्रबंधन के कुछ आम मानदंड बताए हैं। उसी प्रबंधन पर भरोसा करें जो अपनीऔरऔर भी

जीवन बड़ा जिद्दी होता है। वो कहीं भी प्रतिकूल से प्रतिकूल हालात में भी पनप जाता है। पेड़ सूख जाए और उसकी लकड़ी सड़ने लग जाए तो उस पर भांति-भांति के कुकुरमुत्ते उग आते हैं। इसी तरह उद्यमी और उद्योग-धंधे अपने उभरने की ज़मीन खुद बना लेते हैं। कुछ न हो, तब भी वे कुछ न कुछ करने का रास्ता खोज ही निकालते हैं। अभी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 45 दिनों तक महाकुम्भ चला। कहने कोऔरऔर भी

शेयर बाज़ार के संजीदा निवेशकों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि वे यहां ट्रेडिंग पर दांव लगाने नहीं, बल्कि धैर्य से दौलत बनाने आए हैं। ट्रेडिंग का टेम्परामेंट अलग होता है और निवेश का अलग। दोनों का घालमेल नहीं करना चाहिए। किसी भी शेयर को अपना अंतर्निहित मूल्य हासिल करने के लिए दो-तीन साल देने ही पड़ते हैं। दूसरे, शेयर बाज़ार में दौलत सटीक व शानदार अनुमान से नहीं, बल्कि बड़ी गलतियों से बचकर समझदार फैसले करनेऔरऔर भी

गिरते चाकू को पकड़ने की कोशिश न करें। नहीं तो हाथ कट जाएगा। लगातार गिरते शेयर बाज़ार में किसी दिन 8-10 कंपनियां ही 52 हफ्ते के उच्चतम स्तर पर होती हैं, जबकि 500-600 कंपनियां 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर पर होती हैं। तलहटी तक गिरी कंपनियों को देखकर सहज लालच होता है कि इनके शेयर खरीद लें तो दो-चार साल में अच्छा फायदा हो सकता है, खासकर तब इस लिस्ट में आरती ड्रग्स, ऑलकार्गो, एस्ट्रल, बालाजी अमीन्स,औरऔर भी