तमाम अखबार, पत्र-पत्रिकाएं और बिजनेस चैनल भारतीय शेयर बाजार को लगी 1200 अंकों से ज्यादा की चपत की वजह वैश्विक कारकों में तलाश रहे हैं। लेकिन हमारा मानना है कि असली बात यह नहीं है। लेहमान ब्रदर्स के डूबने का मसला हो या उसके बाद के तमाम वैश्विक कारक हों, उन्होंने यकीकन कमजोर बाजारों को चोट पहुंचाई, लेकिन इनके बीच भारतीय बाजार ने पुरानी ऊंचाई फिर से हासिल कर ली और यही नहीं, दूसरी अर्थव्यवस्थाओं ने हमारा अनुसरण किया।
कोरिया ने ब्याज दरें बढ़ा दी हैं। चीन भी मुद्रास्फीति पर काबू पाने और अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में बनते बुलबुलों को शांत करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाएगा। लेकिन यह सब तो भारतीय बाजार के फायदे में है क्योंकि कोरिया भारत की 9 फीसदी विकास दर की बराबरी नहीं कर सकता और चीन में आर्थिक विकास की सुस्ती उभरते बाजारों के खाते में डाली गई विदेशी पूंजी को भारत की तरफ मोड़ सकती है। इसलिए अगर हमारे शेयर बाजार की मौजूदा गिरावट खालिस वैश्विक कारकों की वजह से है तो आगे भारत को पहले से भी ज्यादा मजबूत होकर उभरना चाहिए।
दूसरी तरफ भारतीय बाजार में पहले आए तेजी के दौर किसी न किसी बड़े घोटाले के चलते जमींदोज हुए थे, चाहे वह हर्षद मेहता का घोटाला रहा हो या केतन पारेख का। इस समय का हाल यह है कि पहले राष्ट्रमंडल खेलों का घोटाला सामने आया, फिर आदर्श हाउसिंग सोसायटी का और अब 2जी स्पेक्ट्रम का। इनकी लपेट में मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्रियों और दिग्गज नेताओं के विकेट गिरे हैं और राजनीतिक पार्टियां ताजा गिरावट की मूल वजह हैं। इससे एक तरह की राजनीतिक अनिश्चितता पैदा हुई है जिसने बाजार को काफी चंचल बना दिया है। पूरी दुनिया जानती है कि हमारे शेयर बाजार में नेताओं की भारी धन लगा हुआ है और किसी भी तरह के घोटाले के उजागर हो जाने से उनका पैसा बाजार से निकलने लगता है। साथ ही निवेशकों के मन में हर्षद मेहता और केतन पारेख के दौर का डर ताजा हो गया है और उनमें घबराहट-सी फैल गई है।
इसमें कोई शक नहीं कि जीएस, एके, आरजे, केपी, एडी व आरडी जैसे बाजार के सभी बड़े खिलाड़ी निफ्टी में 6200 स्तर के बाद से शॉर्ट हो गए हैं। इनमें से कुछ ने खुशी-खुशी अपनी पोजिशन काट ली है और कुछ स्थितियों के साफ होने तक अपनी शॉर्ट पोजिशन बनाए हुए हैं। न तो चीन और न ही भारतीय कॉरपोरेट जगत के लिए चिंता का मसला है। इन ऑपरेटरों का हमारे बाजार पर भारी प्रभाव है, लेकिन जरूरी नहीं कि वे हर बार सही ही हों। जब बाजार यू-टर्न लेकर 8400 तक चला गया था तो सबसे ज्यादा चपत इन्हीं खिलाड़ियों को लगी थी। इस बार की शॉर्ट पोजिशन कैश सेगमेंट में उनकी खरीद को तात्कालिक रूप से हेज करने के लिए है और वे तब तक अपनी होल्डिंग से निजात नहीं पा सकते जब तक निफ्टी 5000 तक न चला जाए।
मंगलवार को बाजार 2.5 फीसदी से ज्यादा गिर गया। इससे पहले के तीन दिनों को मिला दें तो कुल गिरावट 6 फीसदी से ज्यादा की है। लेकिन नोट करने की बात यह है कि इन दौरान एफआईआई ने ज्यादा बिकवाली नहीं की है। सच कहें तो एफआईआई इसे भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाने का सुनहरा अवसर मान रहे हैं क्योंकि मूल्यांकन अब कंपनियों के लाभ के अनुरूप ढल रहा है।
मीडिया की सुर्खियों में हवा ज्यादा और हकीकत कम है। कहा जा रहा है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला 1.77 लाख करोड़ रुपए का है। यह रकम कैसे निकाली गई? सीएजी का कहना है कि ज्यादा रकम मिल सकती थी। लेकिन सब कुछ नोशनल है, सांकेतिक है। मंत्री को निपटाया जा चुका है। और, शेयर बाजार से राजनीतिक पूंजी का पलायन हो रहा है क्योंकि कोई नेता अंतिम चोट तक इंतजार नहीं करना चाहता। स्वान टेलिकॉम के मालिकाने जैसी दूसरी वजहें भी बाजार के खिलाड़ियों को परेशान किए हुए हैं, इसलिए वे निफ्टी में शॉर्ट होने लगे हैं। लेकिन सभी बातों की एक बात यह है कि डेरिवेटिव सौदों में अभी तक फिजिकल सेटलमेंट नहीं है। इसलिए यहां भावों को आसानी उठाया-गिराया जा सकता है क्योंकि खरीदार डिलीवरी नहीं मांग सकता। डीआईआई व एफआईआई में भी डेरिवेटिव सौदे करने की संस्कृति बन गई है क्योंकि इन सौदों में भरपूर तरलता है। जब चाहे निकल लो, जब चाहो घुस लो। बाजार के लिए इन सब बातों का निहितार्थ क्या है?
आगे और भी गिरावट का अंदेशा है। इसलिए ऑपरेटर नए सिरे से शॉर्ट सौदे करना चाहते हैं और पिछले सौदों की शॉर्ट कवरिंग नहीं कर रहे हैं। यह भी संभव है कि अगले गुरुवार तक बाजार को और ज्यादा गिरा दिया जाए ताकि डेरिवेटिव सेटलमेंट के आखिरी दिन कैश का अंतर जेब में भरा जा सके। सच यही है कि बाजार में तेजड़िये व मंदड़िये कार्टेल बनाकर चलते हैं और इसी के हिसाब के खेल करते हैं। इसलिए ऑपरेटर खरीदते हैं तो एफआईआई भी खरीदते हैं और उनके बेचने पर एफआईआई भी निकलने लगते हैं। ऐसे में पूरे आसार इसस बात के हैं कि मूल्यांकन घटकर माफिक हो जाने के बावजूद एफआईआई खरीद नहीं बढ़ाएंगे। तेजड़िये जब बाजार का रुख पलटेंगे, तभी उनकी भी खरीद शुरू होगी और तेजी का असर दोगुना हो जाएगा।
उधर कांग्रेस ने टेलिकॉम मंत्रालय अपने पास रख लिया है जिसका मतलब है कि या तो डीएमके के साथ सुलझ-सफाई हो गई है या उसने इतने सांसदों का इंतजाम कर लिया है कि डीएमके के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए किसी राजनीतिक अनिश्चितता का अंदेशा नहीं है। सत्ता से बेदखल हुए मंत्री अब तक शेयर बाजार से अपनी पूंजी निकाल चुके होंगे। रिलायंस कम्युनिकेशंस ने स्वान टेलिकॉम पर अपनी स्थिति साफ कर दी है। चर्चा है कि इंफ्राटेल बिकने जा रही है। इसलिए यहां भी कम से कम कंपनियों के मामले में खास कुछ नहीं होनेवाला। भारती और आइडिया में खरीद शुरू हो चुकी है, जो दिखाता है कि इस तरह की अनिश्चितता का इस्तेमाल अमूमन निहित स्वार्थवाले लोग खरीदने के लिए करते हैं।
रोलओवर का वक्त है। फिजिकल सेटलमेंट न होने के चलते हम अक्टूबर में कैरीओवर की 5 फीसदी लागत देख चुके हैं और ऐसा इस बार भी हो सकता है। सेटलमेंट का आखिरी दिन 25 नवंबर है। इसमें अब केवल पांच कारोबारी सत्र बचे हैं। नवंबर का ओपन इंटरेस्ट 1,24,000 करोड़ रुपए और दिसंबर का 48,000 करोड़ रुपए का है। गुरुवार से रोलओवर का काम शुरू हो जाएगा। टेलिकॉम सबसे पहले बढ़नेवाला सेक्टर हो सकता है। एफआईआई ने एडुकॉम में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली तो यह शेयर बढ़ गया। बाजार पोजिशन के हिसाब से चलेगा। जहां पोजिशन ज्यादा लांग है, वहां भाव गिर सकते हैं और जहां भी शॉर्ट पोजिशन है, वहां हम होल्डिंग देख सकते हैं। ऐसे स्टॉक्स में हीरो होंडा, भारती, आइडिया, एडुकॉम, टाटा मोटर्स और टाटा स्टील शामिल हैं।
ट्रेडरों को और 2-3 फीसदी करेक्शन का कष्ट उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन इतना तय है कि बाजार अब ज्यादा जोर से अगले तीन से छह महीनों में निफ्टी को 6666 और 7000 तक ले जाने की दिशा में बढ़ेगा। अगर बाजार भारी वोल्यूम के साथ 200 डीएमए (डेली मूविंग एवरेज) का स्तर तोड़ देता है तो समझ लीजिएगा कि तेजी का दौर खत्म और अब निकल लेना चाहिए। यह ट्रेडरों के लिए दी गई सलाह है। रिटेल निवेशकों से हमारा यही कहना है कि जो भी स्टॉक उन्हें 5 से 15 के पी/ई अनुपात तक ट्रेड होता हुआ मिले, उसे पकड़कर रख लें। ऐसे स्टॉक भविष्य में उनकी पूंजी को बढ़ानेवाले ही साबित होंगे।