सार्वजनिक क्षेत्र की जिन कंपनियों के पास इफरात कैश है, वे अब अपने शेयरों को वापस खरीदने के साथ-साथ दूसरी सरकारी कंपनियों के विनिवेश में भी शिरकत कर सकती हैं। गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने काफी समय से अटकते चले आ रहे इस फैसले पर मुहर लगा दी। मंत्रिमंडल के इस फैसले की जानकारी देते हुए भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने संवाददाताओं को बताया कि सरकार ने इजाजत दे दी है। लेकिन क्या करना है, इसका अंतिम फैसला पूरी तरह कंपनियों पर निर्भर है।
बता दें कि सरकार अपने इस कदम से सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश को सफल बनाना चाहती है ताकि उसे राजकोषीय घाटे को संभालने में मदद मिल सके। वित्त मंत्री ने पिछले बजट में चालू वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था। इसमें इकलौते फॉलोऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) के जरिए पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) के शेयर बेचकर मात्र 1145 करोड़ रुपए ही जुटाए जा सके हैं। गुरुवार को ओएनजीसी के ऑफ फॉर सेल से उसे 12,500 करोड़ रुपए और मिलने की उम्मीद है।
शेयर बाजार और रिटेल निवेशकों की मौजूदा हालत को देखते हुए सरकार को उम्मीद नहीं है कि वो विनिवेश का लक्ष्य पब्लिक इश्यू (आईपीओ + एफपीओ) और ऑफर फॉर सेल या नीलामी से पूरा सकती है। इसलिए अब उसने सरकारी कंपनियों के दम पर इस लक्ष्य को पूरा करने का तीसरा रास्ता खोल दिया है। खबरों के मुताबिक इस समय कोल इंडिया, एनटीपीसी, एनएमडीसी, सेल व ओएनजीसी जैसी लगभग दो दर्जन कंपनियों के पास 1,80,000 करोड़ रुपए का कैश रिजर्व है। सरकार अपना ताजा फैसले का फायदा इस साल तो नहीं उठा पाएगी। लेकिन अगले वित्त वर्ष 2012-13 में यह उसके लिए अपने विनिवेश कार्यक्रम को पूरा करने का आसान तरीका बन सकता है।
ब्रोकरेज फर्म एसएमसी ग्लोबल के रिसर्च प्रमुख जगन्नाधन तुनगुंटला भी कहते हैं, “लगता है राजकोष के प्रबंधन की चिंता सरकार के दिमाग पर हावी हो गई है। वह 40,000 करोड़ रुपए के निविनेश लक्ष्य को पूरा करने के हरसंभव तरीके आजमा लेना चाहती है – इस साल नहीं तो अगले साल सही।” असल में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की सबसे बड़ी शेयरधारक है। इसलिए बायबैक का धन सीधे सरकार को मिलेगा। दूसरे, सरकारी कंपनियां अगर दूसरी सरकारी कंपनियों के विनिवेश में भाग लेती हैं तो इससे मिला धन सरकार राजकोषीय घाटे को पूरा करने में लगा सकती है।
इस तरह गुरुवार को लिया गया आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति का यह फैसला सरकार के लिए फौरी राहत का काम कर सकता है। इससे सरकार को सेबी के उस नियम को भी पूरा करने में मदद मिल सकती है जिसमें कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की लिस्टेड कंपनियों को जून 2013 तक अपनी इक्विटी में कम से कम 10 फीसदी पब्लिक हिस्सेदारी का लक्ष्य हासिल कर लेना है। सार्वजनिक क्षेत्र की कम से कम आठ लिस्टेड कंपनियों पर यह शर्त तलवार की तरह लटकी हुई है। इनमें हिंदुस्तान कॉपर, एचएमटी, एमएमटीसी और स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (एसटीसी) शामिल हैं।