भावनाएं संभालें, रिस्क बने भीगी बिल्ली!

कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूंढय वन मांहि। यही हाल ट्रेडिंग में कामयाबी का है। शेयर बाज़ारों से कमाने का सूत्र पकड़ने के लिए लाखों लोग टिप्स के चक्कर में कहां-कहां नहीं फिरते। टीवी चैनल देखते हैं। ऑनलाइन गुरुओं की सलाह, वॉट्स-ऐप्प ग्रुप्स की सदस्यता और ट्रेडिंग टिप्स पर महीनों के हज़ारों लुटा देते हैं। फिर भी ठन-ठन गोपाल। इसलिए, क्योंकि ट्रेडिंग से कमाई का सूत्र कहीं बाहर नहीं, बल्कि खुद अपने पास है और वो है रिस्क का प्रबंधन। इसे संभाल लिया तो बच्चे की बात भी शानदार टिप्स बन जाती है। जी हां, आप चाहें तो इसे आजमा कर देख सकते हैं। निफ्टी-50 में शामिल नीचे-ऊपर कहीं से कोई भी 20 शेयर कागज़ पर लिखकर पर्चियां बना लें और घर के बच्चे से उनमें से भी कोई उठवा लें। फिर उस पर ट्रेडिंग करें। साथ ही रिस्क प्रबंधन का कड़ा अनुशासन पालन करें। आप पाएंगे कि महीना का 25,000 रुपए या इससे भी ज्यादा देकर आपने जो टिप्स की सेवा ली है, उससे ज्यादा आप शेयर बाज़ार में अनजान बच्चे की ‘सलाह’ से कमा ले रहे हैं। इस सूत्र की पुष्टि करना चाहते हैं तो डॉ. नसीम निकोलस तालेब की तीन किताबें – ब्लैक स्वान, फूल्ड बाई रैण्डमनेस और एंटीफ्रेज़ाइल पढ़ लीजिए। तालेब ने दशकों तक डेरिवेटिव ट्रेडिंग की थाह ली है और इन किताबों में अनिश्चितता, रिस्क और संभाव्यता या प्रोबैबिलिटी को तार-तार खोलकर रख दिया है…

भावनाओं पर लगाम: ज़मीनी हकीकत भी यही है कि ट्रेडिंग करके जो भी ब्रोकर, बैंक या वित्तीय संस्थान असल में कमाते हैं, वे कभी टिप्स का सहारा नहीं लेते; बल्कि उनकी कमाई को कामयाब बनाने के लिए हमारे-आप के बीच टिप्स का जाल फेंका जाता है ताकि उनके सौदों को पूरा करने के लिए हमारे जैसे लाखों अनजान लोग सामने आ जाएं। यकीनन, वे भी भविष्य की अनिश्चितता झेलते हैं और उसके रिस्क या जोखिम को संभालकर ही कमा पाते हैं। रिस्क से निपटने की तैयारी न हो तो सबसे बड़ा नुकसान ज्यादा पूंजी गंवाने के अलावा यह होता है कि हम भावनात्मक रूप से टूट जाते हैं। ध्यान रखें कि ट्रेडिंग में सबसे प्रमुख हथियार है हमारा भावनात्मक संतुलन। अगर वो टूटा तो हम ऐसे गलत कदम उठाते हैं कि उबरने के बजाय घाटे के दलदल में धंसते चले जाते हैं। युद्ध और ट्रेडिंग में अपनी भावनाओं पर काबू रखना निहायत ज़रूरी है।

भावनाएं किसी को भी दीवाना बना देती हैं। लेकिन दीवानगी किस्से-कहानियों में चलती है, दुनियादारी में नहीं। खासकर, वित्तीय बाज़ार की ट्रेडिंग में तो कतई नहीं। यहां सफलता का सूत्र है कि ट्रेड में भावनाओं को कभी भी एंट्री न लेने दें। अन्यथा वह आपका सारा बना-बनाया खेल बिगाड़ देगी। यहां जो भी भावनाओं में बहते हैं, वे शिकार बनते हैं और उनका शिकार वे करते हैं जो भावनाओं को साधते हैं। अगर हम रिस्क को शुरू में ही संभाल लें तो भावनाओ के ज्वार-भांटे का शिकार होने से बच जाते हैं। आखिर क्या हैं रिस्क या जोखिम संभालने की रणनीति से जुडे अहम पहलू?

रिस्क प्रबंधन के चरण: ट्रेडिंग में कामयाबी के लिए स्टॉक का चयन महत्वपूर्ण है। इस पर हम आगे के कुछ लेखों में विस्तार से चर्चा करेंगे। देखेंगे कि स्विंग, मोमेंटम व पोजिशनल ट्रेडिंग के साथ ही इंट्रा-डे में माइक्रो ट्रेडिंग के लिए स्टॉक का चयन कैसे किया जाना चाहिए। लेकिन इस सारे चयन के बावजूद ट्रेडिंग से कमाने में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है रिस्क का प्रबंधन। इसके दो मौलिक सिद्धांत हैं। पहला, किसी भी ट्रेड में अपनी पूंजी के एक निश्चित हिस्से से ज्यादा न लगाएं। दूसरा, किसी ट्रेड में उठाया जानेवाला रिस्क सारी पूंजी की तुलना में बहुत कम हो। इसको अपनाने के चार चरण हैं।

पहला चरण: शेयरों में कुल जितना निवेश कर सकते हैं, जितनी आपकी क्षमता या आपके पास इफरात धन है, उसका 5% से हिस्सा ज्यादा ट्रेडिंग में न लगाएं। कुल पूंजी दस लाख रुपए है तो 50,000 रुपए ही ट्रेडिंग में लगाएं। अगर जोखिम उठाने की क्षमता ज्यादा हो तो पूंजी का 5% से ज्यादा हिस्सा भी लगा सकते हैं।

दूसरा चरण: किसी भी ट्रेड में ट्रेडिंग पूंजी का 1% से ज्यादा हिस्सा दांव पर कतई न लगाएं। सीखने की शुरुआत में इसे 0.5% तक रखना ज्यादा मुनासिब होगा। मसलन, 50,000 रुपए में से 500 या 250 रुपए।

तीसरा चरण: रिस्क संभालने के लिए प्रत्येक ट्रेड में रिस्क की मात्रा निकालना आवश्यक है। जैसे, हमने दस लाख रुपए का 5% हिस्सा ट्रेडिंग के लिए रखा है तो हमारी ट्रेडिंग पूंजी हुई 50,000 रुपए। पहले से निर्धारित है कि इसका 1% से ज्यादा रिस्क किसी ट्रेड में नहीं उठाएंगे। 50,000 रुपए का 1% निकालने पर रकम बनती है 500 रुपए। इस तरह अनुशासन बना कि किसी भी ट्रेड में 500 से ज्यादा नहीं डुबाना चाहिए।

चौथा या आखिरी चरण: इसमें गिनते हैं कि किसी सौदे में चुनी गई कंपनी के कितने शेयर ट्रेडिंग के लिए जाने हैं। मान लीजिए, हमने एक्स नाम के शेयर को 160 पर खरीदना तय किया और पक्का स्टॉप-लॉस 155 रुपए का है। इस तरह एक शेयर पर 5 रुपए गंवाने का रिस्क है। हमारा रिस्क एक सौदे में 500 रुपए डुबाने का है तो हम एसबीआई के 100 (=500/5) शेयर खरीद सकते हैं। याद रखें कि किसी ट्रेड में कितना धन लगाना है, यह उस ट्रेड में उठाए गए रिस्क की मात्रा से अलग है। हमने तय किया एक्स शेयर के सौदे में अधिकतम 500 रुपए डुबा सकते हैं। लेकिन वो सौदा तो 160 x 100 = 16,000 रुपए का हुआ है। हालांकि कुछ ट्रेडर ट्रेडिंग पूंजी को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर ट्रेड करते हैं। रिस्क संभालने की इस पद्धति को पोजिशन साइज़िंग कहते हैं। साथ ही हम जिस तरह के स्विंग, मोमेंटम और पोजिशनल ट्रेड का सहारा लेते हैं, उसमें स्टॉप-लॉस को शेयर के भाव की चाल के साथ बराबर बदलते जाने की पद्धति है जिसे पिरामिडिंग कहते हैं। इसी का एक स्वरूप रिवर्स पिरामिंडिंग का है। इसके बारे में आप इंटरनेट पर सर्च करके काफी जानकारी जुटा सकते हैं।

शेयर बाज़ार कोई डॉन नहीं: मन में यह दृढ़ विश्वास जमा लें कि शेयर बाज़ार कोई डॉन नहीं, जिसको पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हो। हालांकि वो किसी का जमूरा भी नहीं। दिग्गज ऑपरेटर तक यहां दिवालिया हो जाते हैं। लेकिन यहां धन के प्रवाह का तर्क चलता है। अगर किसी तरह सप्लाई और डिमांड की सही-सही स्थिति समझ लें तो घटने या बढ़ने की संभावना का पता पहले से लग जाएगा। आखिर ऑपरेटर, इनसाइडर या बड़े संस्थान ऑर्डर जेब में नहीं, बाज़ार में ही तो रखते हैं। जो लोग ट्रेडिंग में टिप्स के पीछे भागते हैं, वे मरीचिका के चक्कर में भागते हिरण की तरह ताज़िंदगी प्यासे रह जाते हैं। लंबे निवेश में यकीनन रिसर्च आधारित सलाह काम करती है। लेकिन ट्रेडिंग में घुसने, निकलने, घाटा खाने और पूंजी बचाने व बढ़ाने का सिस्टम बनाकर अनुशासन का पालन न किया, लालच व डर को हावी होने दिया तो कमाई मुमकिन नहीं।

बाज़ार है नशे में टुन्न मनोरोगी: शेयर बाज़ार नशे में टुन्न किसी मनोरोगी जैसा है। यह कहना है दुनिया के सबसे कामयाब निवेशक वॉरेन बफेट का। हम उनकी बात को कतई चुनौती नहीं दे सकते क्योंकि ऐसी सोच की बदौलत ही उन्होंने करीब 7300 करोड़ डॉलर की दौलत बनाई है। लेकिन यह भी सच है कि बाज़ार उल्लास और अवसाद की अतियों के बीच झूलता है। समझदार ट्रेडर ‘नशे में टुन्न मनोरोगी’ बाज़ार के इसी बर्ताव से कमाते हैं। स्वाभाविक व सहज सोच वित्तीय बाज़ार से कमाने के मामले में हमारे किसी काम की नहीं। यह सोच हमें कमज़ोरी से बचाने और सुरक्षा के लिए समूह के साथ चलते को उकसाती है। दिक्कत यह है कि वित्तीय बाज़ार में 95% ट्रेडर गंवाते और 5% ट्रेडर ही कमाते हैं। यहां समूह समझदारी नहीं दिखाता, बल्कि भेड़ों के झुंड की तरह बर्ताव करता है। गड़ेरिये या उस्ताद लोग इन भेड़ों से मुनाफा बटोरते हैं।

सफलता अपने सिस्टम से: ट्रेडिंग में सफलता पानी है तो अपने फैसलों की नियमित समीक्षा करनी पड़ेगी। खासकर उन सौदों की जिनमें तगड़ी चोट लगी है। स्टॉप-लॉस को चोट मानना मूलतः गलत सोच है। वह तो वित्तीय बाज़ार में ट्रेडिंग करने के बिजनेस की लागत है जिससे बचना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं। बाकी सौदों में देखना पड़ेगा कि आपने अनुशासन व ट्रेडिंग सिस्टम को कहां तोड़ा है। सिस्टम बनाए बिना ट्रेड करना आत्मघाती है।

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