यूं तो शेयर बाज़ार की दशा-दिशा और अलग-अलग शेयरों के भाव बहुत सारे कारकों से प्रभावित होते हैं। इनमें घरेलू अर्थव्यवस्था से लेकर वैश्विक अर्थव्यवस्था, खासकर अमेरिका व चीन की स्थिति और उनकी मौद्रिक नीति तक शामिल है। साथ ही एक बड़ा कारक यह है कि बाज़ार या शेयर में धन का प्रवाह या निकासी कैसी चल रही है। इधर माना जा रहा है कि भारत से भागने में लगे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक हमारे केमिकल क्षेत्र में या तो अपना निवेश होल्ड करके रखे हुए है या बढ़ा रहे हैं। ऐसे में केमिकल कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ने चाहिए। मगर, दिक्कत यह है कि टाटा केमिकल्स जैसी बड़ी कंपनी तक की हालत इस समय खराब है। फिर भी उसके शेयर चढ़े हुए हैं। दरअसल, आर्थिक परिवेश और धन के प्रभाव से भी कहीं ज्यादा असरदार कारक है कंपनी का अपना वित्तीय प्रदर्शन और बिजनेस। इसमें गड़बड़ हुई तो अंततः उसका शेयर उठने की तमाम कोशिशों के बावजूद दबता चला जाता है। दूसरे, यह भी ध्यान रहे कि रसायन जैसी कमोडिटी का धंधा उतार-चढ़ाव के चक्र में ही चलता है। इनके शेयरों को उतार के दौर में पकड़ना और चढ़ाव के दौर में निकाल देना चाहिए। आज तथास्तु में पेश है रसायन उद्योग की एक दबी कंपनी…
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