बजट सत्र में तमाम सूत्र समाधान के

बजट सत्र शुरू हो रहा है। इसमें ऐसे सूत्र आने जा रहे हैं जो कई महीनों से शेयर बाजार को परेशान करनेवाली चिंताओं और समस्याओं का समाधान निकालने का सबब बनेंगे। बाकी क्या कहें? एफआईआई और उनके एजेंटों ने हमेशा की तरह इस बार भी आम निवेशकों को गच्चा दिया। बाजार (निफ्टी) जब 5200 पर पहुंच गया तो उन्होंने हल्ला मचवा दिया कि अभी इसमें 10-15 फीसदी और गिरावट आनी है। निवेशक घबराकर बेचकर निकलने लगे इस आशा में कि बाजार गिरने पर कम भावों पर फिर से खरीद लेंगे। लेकिन खुद एफआईआई खरीद में जुट गए और उनकी खरीद से बाजार चढ़ गया। इस तरह आपकी घबराहट का फायदा उठाकर उन्होंने अपनी झोली सस्ते में भर ली। अंग्रेज आजादी के पहले 300 सालों तक हम भारतीयों के साथ यही खेल खेलते रहे थे।

हमें एफआईआई के शोर के बजाय भारतीय अर्थव्यवस्था की मूल ताकत पर भरोसा करना चाहिए। मुद्रास्फीति का गुबार थमने लगा है और सारे संकेत इस बात के हैं कि यह मार्च 2011 तक 7 फीसदी से नीचे आ जाएगी। दिसंबर तिमाही में कंपनियों के लाभ में औसतन 22 फीसदी की वृद्धि हुई है। साफ है कि शेयर बाजार ने कुछ ज्यादा ही प्रतिक्रिया दिखा दी। अगले वित्त वर्ष में कॉरपोरेट क्षेत्र के लाभ के बारे में 15 फीसदी से कम वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है जो जानबूझ कर निराशा फैलाने का करतब है। वैसे, 28 फरवरी को बजट के बाद सारी स्थिति साफ हो जाएगी।

केंद्र सरकार जिस तरह भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के मुद्दे पर संजीदगी दिखा रही है, उससे तो यही लगता है कि राजनीति और कॉरपोरेट क्षेत्र के रिश्तों में अब पारदर्शिता आएगी। इनके बीच लेन-देन का रिश्ता खत्म तो नहीं होगा। लेकिन यह एजेंटों के सहारे और आधिकारिक चंदे का रूप ले सकता है। पूंजी बाजार और आयकर विभाग के कामकाज में हम इसकी झलक देख सकते हैं जहां भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी ने दूसरा बाना पहन लिया है।

शुक्रवार को देश के पांच बड़े ब्रोकरों में से एक ने अपने सब-ब्रोकर/जॉबर को एक खास स्टॉक में कृत्रिम वोल्यूम खड़ा करने को कहा जिसमें जॉबरों का वोल्यूम कुल वोल्यूम के 10 फीसदी से ज्यादा हो चुका था। असल में सेबी और स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा किसी स्टॉक में एक व्यक्ति द्वारा वोल्यूम का अधिकतम 10 फीसदी सौदा करने की शर्त हास्यास्पद है। इससे जोड़तोड़ को बढ़ावा मिलता है और इसके चलते वोल्यूम के सौदागरों ने एक समानांतर तंत्र खड़ा कर दिया है।

ऐसा ही एक और मसला था कि अगर किसी स्टॉक की डीमैट होल्डिंग गैर-प्रवर्तकों का हिस्सा 50 फीसदी से कम हो जाता था तो उसे जेड ग्रुप में डाल दिया जाता था। इसका मतलब था कि प्रवर्तक दूसरों पर अपनी शेयरधारिता को डीमैट कराने का दबाव डालें। शुक्र की बात है कि सेबी ने हाल ही में इस नियम को बदल दिया और अब किसी स्टॉक को बी ग्रुप में रखने की शर्त यह हो गई है कि उसके कुल इक्विटी शेयरों का कम से कम 50 फीसदी हिस्सा डीमैट स्वरूप में होना चाहिए।

खैर, मूल हालात की बात करें तो राजनीतिक अस्थिरता खत्म होती जा रही है। पूरी उम्मीद है कि सरकार 22 फरवरी, मंगलवार को 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) से कराने का औपचारिक ऐलान कर देगी। इससे विपक्ष लाइन पर आ जाएगा और संसद का कामकाज सुचारु रूप से चल सकेगा। विपक्ष वैसे भी स्विस खातों में रखे कालेधन के मामले में मुंह की खा चुका है। गलत आरोप लगाने के चलते बीजेपी के ‘लौहपुरुष’ लालकृष्ण आडवाणी को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी मांगनी पड़ी है। उम्मीद है कि वित्त मंत्री बजट में कालेधन के बारे में स्पष्ट कदमों की घोषणा के साथ विपक्ष को चारों खाने चित्त कर देंगे।

इस बात के पक्के संकेत है कि बजट में एफआईआई के धन के आगम के बारे में नया कदम उठाया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले दो महीनों से एफआईआई केवल पी-नोट के जरिए किए गए निवेश को निपटा रहे हैं। जबकि उनके निवेश का दूसरा हिस्सा खरीद की तरफ झुका हुआ है। ऐसा सेंसेक्स में शामिल 30 कंपनियों के साथ ही तमाम स्टॉक्स में हो रहा है। एक तरफ से बेचो और दूसरी तरफ से खरीदो।

हमारा यह भी यकीन है कि बजट से भले ही बाजार को बड़ी अपेक्षाएं न हों, लेकिन यह काफी ठीकठाक रहेगा। वित्त मंत्री राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.7 से 4.8 फीसदी तक सीमित रखने में कामयाब रहेंगे। सरकार की बाजार उधारी 3.25 लाख करोड़ रुपए कम रहेगी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाकर जीडीपी की विकास दर 8.75 से 9 फीसदी तक पहुंचा दी जाएगी। ये तीन बातें ऐसी हैं जो बजट को पूंजी बाजार में ‘3 इडिएट्स’ की तरह हिट करा सकती हैं।

अमेरिका का डाउ जोंस सूचकांक जब 6600 पर था, तब हमने इसके 11,300 के पार जाने का अनुमान जाहिर किया था। यह 11,300 पर था, तह हमने कहा था कि यह 16,000 तक पहुंचने जा रहा है, और अब वहां तक पहुंच भी चुका है। इस तरह दुनिया के बाजार मजबूत स्थिति में आ चुके हैं। भारत की विकास गाथा अक्षुण्ण है। अगले वित्त वर्ष में भारतीय कंपनिय़ों के लाभ में 18 फीसदी से ज्यादा बढ़त की उम्मीद है। इसलिए सेंसेक्स निश्चित रूप से 24,000 पर पहुंच सकता है।

ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि बजट बहुत खराब रहा तो मंदड़िये बाजार को फिर से गिराकर 17,300 तक ले जाने की कोशिश करेंगे। लेकिन बजट अच्छा ही रहनेवाला है। बेहतर दिन आ रहे हैं। इस साल की अगली छमाही बाजार के चहकने की छमाही होगी। नवंबर 2010 से बाजार में सुदृढीकरण या खुद को जमाने का जो दौर शुरू हुआ है, वो अब बाजार की नई ऊंचाई का धरातल बन जाएगा, ऐसा भरोसा है। और, आप जानते ही हैं कि भरोसे पर दुनिया कायम है।

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