बिड़ला कॉरपोरेशन को भले ही एम पी बिड़ला समूह की फ्लैगशिप कंपनी कहा जाए। लेकिन हकीकत में वह आर एस लोढ़ा के दिवंगत हो जाने के बाद पूरी तरह उनके बेटों हर्ष व आदित्य लोढ़ा के नियंत्रण में है। माधव प्रसाद बिड़ला ने यह कंपनी 1919 में बनाई थी। उनके मरने के बाद इसका मालिकाना उनकी विधवा प्रियंवदा के हाथ में आ गया है। निःसंतान प्रियंवदा ने वसीयत अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट आर एस लोढ़ा के नाम लिख दी तो उनके निधन के बाद एम पी बिड़ला समूह का सारा कारोबार आर एस लोढ़ा के नाम हो गया। बिड़ला परिवार ने इसके खिलाफ कई सालों तक कानूनी लड़ाई लड़ी। लेकिन आखिरकार जीत आर एस लोढ़ा की हुई। अक्टूबर 2008 में आर एस लोढ़ा की मृत्यु के बाद सारा धंधा उनके बेटों के हाथ में आ गया।
कंपनी ने शुरूआत जूट उत्पादन से की थी। लेकिन वह अब इसके अलावा सीमेंट, पीवीसी फ्लोर कवरिंग, आइरन व स्टील कास्टिंग और ऑटो ट्रिम पार्ट भी बनाती है। हालांकि उसकी आय का 90 फीसदी हिस्सा सीमेंट से ही आता है। बिड़ला सीमेंट इसी कंपनी का ब्रांड है। उसने सीमेंट उत्पादन में लगनेवाली बिजली को हासिल करने के लिए दो कोयला आधारित संयंत्र सतना (मध्य प्रदेश) व चंदेरिया (राजस्थान) में लगा रखे हैं जिनकी क्षमता क्रमशः 27 मेगावॉट व 29.8 मेगावॉट है। कंपनी के सीमेंट संयंत्र सतना, चंदेरिया, दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) व रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में हैं। जूट का सारा धंधा कोलकाता के आसपास है, जबकि ऑटो ट्रिम पार्ट के संयंत्र चाकन (महाराष्ट्र) व गुड़गांव (हरियाणा) में हैं।
कंपनी ने 2009-10 में 2198.46 करोड़ रुपए की आय पर 557.31 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। लेकिन पिछले माह घोषित नतीजों के अनुसार वित्त वर्ष 2010-11 में उसकी आय 2162.17 करोड़ और शुद्ध लाभ 320.21 करोड़ रुपए रहा है। इस तरह कंपनी की आय में 1.65 फीसदी की मामूली और शुद्ध लाभ में 42.54 फीसदी की भारी गिरावट आई है। इस दौरान उसका ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 72.37 रुपए से घटकर 41.58 रुपए पर आ गया।
28 अप्रैल को इन नतीजों की घोषणा के बाद कंपनी का शेयर (बीएसई – 500335, एनएसई – BIRLACORPN) 4 मई को गिरकर नीचे में 343.60 रुपए तक चला गया है। लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे उठना शुरू हुआ तो कल 25 मई को एनएसई में इसका बंद 381.45 रुपए रहा है। आखिर खराब नतीजों के बावजूद कंपनी के शेयर के 20 दिन में यूं 11 फीसदी से ज्यादा बढ़ जाने का क्या तुक है?
पहली बात तो यह कि अब भी कंपनी का ईपीएस 41.58 रुपए है जिसका मतलब हुआ कि उसका शेयर अभी 9.17 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो इतना पी/ई इस स्टॉक ने पिछले चार सालों में केवल जनवरी-फरवरी 2010 में हासिल किया था। नहीं तो हमेशा वो इससे नीचे ही रहा है। इससे यह संकेत मिलता है कि बाजार ने सालों बाद इस शेयर को अहमियत देना शुरू किया है।
दूसरी खास बात यह है कि कंपनी की जूट डिवीजन 15 सालों तक बुरे दौर से गुजरने के बाद अब पटरी पर आ गई है। पिछले साल दो महीने की मजदूर हड़ताल के बावजूद इस डिवीजन ने मुनाफा कमाया है। पीवीसी डिवीजन भी अब तक दबाव में थी। लेकिन उसे ओईएम (ओरिजन इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर्स) से नए ऑर्डर मिलने लगे हैं। वह अपने उत्पाद अमेरिका, यूरोप, एशिया प्रशांत क्षेत्र, अफ्रीका व मध्य-पूर्व के देशों को निर्यात भी करती है। इधर सीमेंट में भी इंफ्रास्ट्रक्चर व भवन-निर्माण में सक्रियता के साथ कंपनी का धंधा बढ़ने की उम्मीद है। कंपनी ने ऐसी कई पहल की है जिससे उसका धंधा व मुनाफा आगे बढ़ेगा। वह असम मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ मिलकर नॉर्थ कछार हिल्स जिले में 10 लाख टन सालाना क्षमता का नया सीमेंट संयंत्र लगाने जा रही है।
यूं तो कंपनी के भविष्य की तस्वीर बहुत साफ नहीं है। लेकिन जानकार कहते हैं कि बिड़ला कॉरपोरेशन को लंबी अवधि (कम से कम पांच साल) के लिए खरीदा जा सकता है। वैसे भी अभी यह ज्यादा महंगा नहीं है। फिलहाल ऑपरेटर इसे उठाकर 410 रुपए तक ले जाने की फिराक में हैं। उसके बाद यह गिरकर फिर उठेगा। हां, कंपनी पिछले तीन सालों से बराबर लाभांश देती रही है। 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर इसकी दर कभी 4 रुपए तो कभी 6 रुपए यानी 40 से 60 फीसदी रही है।