यूं तो शेयर बाज़ार की दशा-दिशा और अलग-अलग शेयरों के भाव बहुत सारे कारकों से प्रभावित होते हैं। इनमें घरेलू अर्थव्यवस्था से लेकर वैश्विक अर्थव्यवस्था, खासकर अमेरिका व चीन की स्थिति और उनकी मौद्रिक नीति तक शामिल है। साथ ही एक बड़ा कारक यह है कि बाज़ार या शेयर में धन का प्रवाह या निकासी कैसी चल रही है। इधर माना जा रहा है कि भारत से भागने में लगे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक हमारे केमिकल क्षेत्र मेंऔरऔर भी

विदेशो पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारत छोड़कर भाग रहे हैं और इससे हमारे शेयर बाजार में फिलहाल एक तरह की अफरातफरी मच गई है। इस सच को इनकार करना या इसकी अनदेखी करना ठीक नहीं। यह भी कहना मन को बहलाने जैसा है कि आम निवेशकों की बढ़ती प्रत्यक्ष हिस्सेदारी और म्यूचुअल फंडों के जरिए परोक्ष शिकरत से देशी निवेश इतना मजबूत हो गया है कि विदेशी निवेशकों के निकलने का कोई फर्क नहीं पड़ता। हम एफपीआई काऔरऔर भी

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) अगर मुनाफे और स्थायित्व के लिए भारत छोड़कर चीन का रुख कर रहे हैं तो इसके पीछे कोई रॉकेट साइंस नहीं है। चीन का शेयर बाज़ार भारतीय शेयर बाजार से इस समय तीन गुना सस्ता है। वहीं, चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि भारत पांचवें स्थान पर है। चीन की अर्थव्यवस्था अभी 18.5 लाख करोड़ या ट्रिलियन डॉलर की है तो भारत की 3.5 ट्रिलियन डॉलर की, यानी भारत सेऔरऔर भी

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के भारत से भागने की खास वजह यह भी है कि भारतीय शेयर बाज़ार इस समय पी/ई अनुपात के पैमाने पर दुनिया का सबसे महंगा बाज़ार बन चुका है। हमारे व्यापक शेयर बाज़ार को दर्शाने वाले निफ्टी-500 सूचकांक का पी/ई अनुपात 30 सितंबर को 27.87 था। पिछले कुछ दिनों में गिरने के बावजूद इसका पी/ई अनुपात अभी 26.89 चल रहा है। यह अमेरिका जैसी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के पी/ई अनुपात 26.37औरऔर भी

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। पांच साल में हर हाल में अमेरिका व चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। फिर भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) हमारे शेयर बाज़ार से भाग क्यों रहे हैं? अचम्भे की बात यह भी है कि जून 2022 से सितंबर 2024 तक जब भारतीय शेयर बाज़ार में जबरदस्त तेज़ी का दौर था, जब सेंसेक्स करीब-करीब 59% बढ़ गया, जब घरेलू निवेशक संस्थाओं (डीआईआई) ने कैशऔरऔर भी