क्या विकसित देश का मतलब जीडीपी बढ़ जाना ही होता है? नहीं, इसका वास्ता सकल जीडीपी से नहीं, बल्कि प्रति व्यक्ति जीडीपी या आय से है। विश्व बैंक के मुताबिक विकसित देश की प्रति व्यक्ति आय 13,846 डॉलर से ज्यादा होनी चाहिए। भारत की प्रति व्यक्ति आय इस साल के अंत तक 2396 डॉलर हो सकती है। जाहिर है कि विकसित देश बनने तक भारत का फासला बहुत लम्बा है। लेकिन क्या प्रति व्यक्ति आय हासिल करनेऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेबाकी से झूठ बोलते हैं। यह उनकी आदत, संघी प्रशिक्षण व संस्कार का हिस्सा है। उनके तमाम मंत्री-संत्री तक झूठ बोलते हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तक बेझिझक झूठ बोल देती हैं। यह हकीकत मोजीराज के दस साल में जगजाहिर हो चुकी है। दिक्कत यह है कि आज रिजर्व बैंक जैसा शीर्ष मौद्रिक संस्थान तक अपने गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुआई में झूठ गढ़ने और फैलाने में सिद्धहस्त हो गया है। रिजर्व बैंक बिनाऔरऔर भी

मोदी सरकार ने दस साल के शासन में अर्थव्यवस्था के कुशल वित्तीय प्रबंधन का नगाड़ा बहुत बजाया है। लेकिन हकीकत में यह ढोल के भीतर की पोल और भयंकर कुप्रबंधन है। वित्तीय प्रबंधन का बड़ा सटीक पैमाना होता है राजकोषीय़ घाटा। बीते वित्त वर्ष 2023-24 में तमाम जोड़तोड़ के बावजूद देश का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.63% रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस पर खूब अपनी पीठ थपथपाई। मगर यह 2012 से 2019 के दौरानऔरऔर भी

देश महज नारों से नहीं चलता। हकीकत देश के सबसे ताकतवर शख्सियत प्रधानमंत्री की भी नहीं सुनती। ऐसा होता तो भारतीय अर्थव्यवस्था अभी 3.5 ट्रिलियन नहीं, 5 ट्रिलियन डॉलर की बन चुकी होती, किसानों की आय दो साल पहले 2022 में ही दोगुनी हो चुकी होती और देश में पिछले दस सालों में 20 करोड़ नए रोज़गार पैदा हो चुके होते। इसलिए भारत को 2047 तक विकसित देश बना देने के नारे की हकीकत हमें समझनी होगी।औरऔर भी

कोई देश अमीर तो कोई देश गरीब क्यों होता है? क्या इसकी वजह भौगोलिक या सांस्कृतिक होती है या कुछ दूसरे कारक इसका फैसला करते हैं? इसका जवाब तलाशते तीन अर्थशास्त्रियों जेम्स रॉबिन्सन, डैरन एसमोग्लू और साइमन जॉनसन को इस बार अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। इसकी वजह भौगोलिक या सांस्कृतिक नहीं हो सकती। अन्यथा, भारत 18वीं सदी के मध्य तक अमेरिका से अमीर और हमारा औद्योगिक उत्पादन अमेरिका से ज्यादा नहीं होता। नोबेल पुरस्कारऔरऔर भी