सरकार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के निकलने से परेशान हो गई है। इतनी ज्यादा कि अब उसे डैमेज कंट्रोल में उतरना पड़ रहा है। सबसे पहले उसने रिजर्व बैंक से घोषित करवाया कि एफपीआई चाहें तो किसी कंपनी में 10% से ज्यादा के निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में बदल सकते हैं। उसका मानना है कि इससे एफपीआई की मुनाफावसूली पर लगाम लग सकती है। फिर सेबी की तरफ से खबर चलवाई गई कि घबराने कीऔरऔर भी

क्या सचमुच भारत की विकासगाथा को कोई आंच नहीं आई है और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) नाहक हमारे शेयर बाज़ार से भागे जा रहे हैं? आज की हकीकत यह है कि पिछले दस सालों में भारत की विकासगाथा अडाणी व अम्बानी जैसे चंद उद्योगपतियों और सरकार से दलाली खा रहे या सत्ताधारी दल को चंदा खिला रहे धंधेबाज़ों तक सिमट कर रह गई है। इस विकासगाथा में देश में सबसे ज्यादा रोज़गार देनेवाले कृषि और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्रऔरऔर भी

बाज़ार थमने का नाम ही नहीं ले रहा। न जाने कब इस रात की सुबह होगी? यह सवाल आज शेयर बाज़ार के हर निवेशक व ट्रेडर के दिलो-दिमाग में नाच रहा है। हर तरफ घबराहट व अफरातफरी का आलम है। सरकारी अर्थशास्त्री से लेकर शेयर बाज़ार व म्यूचुअल फंड के धंधे में लोग समझाने में लगे हैं कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का स्वभाव ही संकट में निकल भागने का है। करीब डेढ़ महीने से एफपीआई केऔरऔर भी

आपने अगर रिसर्च के आधार शेयर बाज़ार में निवेश करने की समझ और आदत बना ली तो बहुत अच्छा। तब धीरे-धीरे आपको कंपनियों और उनके धंधे की समझ बढ़ती जाएगी। तब आप उनके मूल्यांकन का गणित भी समझने लगेंगे। शुरू में ही आपको ईपीएस और पी/ई का महत्व पता लगने लगेगा। यह भी थोड़े समय में आप जान जाएंगे कि बैंकिंग व फाइनेंस कंपनियों में ईपीएस और पी/ई नहीं, बल्कि प्रति शेयर बुक वैल्यू (बीपीएस) और पी/बीऔरऔर भी