सभ्य से सभ्य समाज में भी इंसान के अंदर एक जानवर बैठा रहता है। जो रिवाज इस जानवर को हवा देते हैं, उन्हें बेरहमी से खत्म कर देने की जरूरत है। परंपरा के नाम उन्हें चलाते रहना हैवानियत है।
2012-03-19
सभ्य से सभ्य समाज में भी इंसान के अंदर एक जानवर बैठा रहता है। जो रिवाज इस जानवर को हवा देते हैं, उन्हें बेरहमी से खत्म कर देने की जरूरत है। परंपरा के नाम उन्हें चलाते रहना हैवानियत है।
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