72 साल के अण्णा हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम में किसी जवान से भी ज्यादा जोशीले नजर आ रहे हैं। उनका आमरण अनशन दूसरे दिन भी जारी है। कल कांग्रेस ने उनके अनशन को गैरजरूरी और असामयिक करार दिया था। इस पर हजारे का कहना है कि कांग्रेस देश के लोगों को ऐसा कहकर गुमराह कर रही है। उन्होंने कहा, “यह आंदोलन अनावश्यक क्यों है और कैसे यह असामयिक है? 42 सालों से देश को इस तरह के विधेयक की जरूरत है। सरकार इसे क्यों नहीं लागू कर सकती?”
जन लोकपाल विधेयक को अपनाने की मांग पर डटे इस पूर्व सैनिक और सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि उनका आमरण अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार विधेयक को बनाने में नागरिकों को शामिल करने पर सहमत नहीं हो जाती। उनका कहना था, ‘‘मैं तब तक आमरण अनशन पर रहूंगा जब तक सरकार जन लोकपाल विधेयक का मसौदा बनाने वाली संयुक्त समिति में 50 फीसदी सरकारी अधिकारियों के साथ बाकी स्थानों पर नागरिकों और विद्वानों को शामिल करने पर सहमत नहीं हो जाती।’’
गौरतलब है कि अण्णा हजारे स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सीधे सेना में भर्ती हो गए थे। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में गोलाबारी में वे बुरी तरह जख्मी हो गए। बड़ी मुश्किल से वे जिंदा बचे। 1975 में वे सेना स रिटायर हुए और तभी से सामाजिक आंदोलन में लगे रहे हैं। उनका मानना है कि भगवान ने अगर उन्हें युद्ध में भयंकर रूप से घायल होने के बावजूद जिंदा बचाया है तो उसके पीछे कोई न कोई मकसद जरूर है।
इस बीच प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी ने आज, 6 अप्रैल पर अपने स्थापना दिवस से भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू कर दिया। उनका यह आंदोलन 70 दिन तक चलेगा और 15 जून को पूरा होगा। बुधवार को बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने दिल्ली में इसकी शुरुआत की। पार्टी के वरिष्ठ नेता 18 अप्रैल को वाराणसी, 27 अप्रैल को आगरा और 26 अप्रैल को अयोध्या की रैलियों में हिस्सा लेंगे। इस आंदोलन के तहत देश भर में ‘भ्रष्टाचार विरोधी मैराथन’ और ‘आम आदमी पर है भारी, सिंहासन यह भ्रष्टाचारी’ नाम के नुक्कड़ नाटक भी किए जाएंगे।
बीजेपी के इस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ बने माहौल को भुनाने के बारे में अण्णा हजारे ने कहा कि बीजेपी राजनीतिक पार्टी है और जैसा चाहे वैसा करने को स्वतंत्र है। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि पार्टी उनके द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किए गए राष्ट्रव्यापी आंदोलन का फायदा उठा रही है। बता दें कि हजारे के आंदोलन के केंद्र में मुख्य रूप से स्वामी अग्निवेश, पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी, आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडे जैसे अराजनीतिक लोग ही हैं। लेकिन राजनीतिक पार्टियां इसे अपने पक्ष में खींचने में लगी हैं। बीजेपी के अलावा जेडी-यू ने इस आंदोलन का खुलकर समर्थन किया है।