हमारा शेयर बाजार किसी द्वीप पर नहीं, बल्कि इसी समाज में है। इसलिए जब समाज में अच्छे लोगों की कद्र नहीं है और दंद-फंद वाले लोगों की ही चलती है तो कैसे संभव है कि शेयर बाजार में ऐसा न हो। आज चर्चा एक ऐसी ही अच्छी, पर उपेक्षित कंपनी पॉलिप्लेक्स कॉरपोरेशन की। फ्लेक्सिबल पैकेजिंग उद्योग की इस कंपनी का शेयर कल बीएसई (कोड – 524051) में 3.23% गिरकर 205.45 रुपए और एनएसई (कोड – POLYPLEX) में 4.07% गिरकर 203.80 रुपए पर पहुंच गया। जबकि कंपनी की ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (शुद्ध लाभ प्रति शेयर) 52.28 रुपए है और उसका शेयर अभी मात्र 3.93 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।
पॉलिप्लेक्स कॉरपोरेशन क्षमता के लिहाज से दुनिया में पतली पॉलिएस्टर फिल्म बनानेवाली तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है। इसकी तीन उत्पादन इकाइया हैं। एक खटीमा (उत्तराखंड) में है, जबकि दूसरी थाईलैंड और तीसरी तुर्की में है। वह अब मोटी पॉलिएस्टर फिल्म के उत्पादन में भी उतरने जा रही है। साथ ही ब्राजील में एकदम नई परियोजना लगाने जा रही है। ब्राजील भारत समेत दुनिया के चार सबसे तेजी से बढ़ते देशों (ब्रिक – ब्राजील, रूस, भारत, चीन) में शुमार है। कंपनी वहां का उत्पादन वहीं के बाजार में बेचेगी। अमेरिका में भी कंपनी का बिक्री तंत्र है। दुनिया के चार अन्य देशों में मौजूदगी से लगता है कि जैसे यह कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी है। लेकिन यह खांटी देशी कंपनी है और इसका मुख्यालय नोएडा (उत्तर प्रदेश) में है।
कंपनी ने हाल ही में बताया है कि 11 मार्च 2011 को उसकी पूर्व स्वामित्व वाली सब्सिडियरी ने पॉलिप्लेक्स (थाईलैंड) में 8 फीसदी हिस्सेदारी (6.40 करोड़ शेयर) वहां के स्टॉक एक्रसचेंज के जरिए बेच दी है। जाहिरा तौर पर इससे पॉलिप्लेक्स समूह को मोटी रकम मिली होगी। वैसे भी, कंपनी की कमाई सरपट भाग रही है। दिसंबर 2010 की तिमाही में उसने 309.51 करोड़ रुपए की आय पर 90.25 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है, जबकि पिछले पूरे वित्त वर्ष 2009-10 में उसकी आय 245.06 करोड़ और शुद्ध लाभ 59.98 करोड़ रुपए था। यानी तिमाही की कमाई पूरे साल से ज्यादा है।
कंपनी का लाभ मार्जिन भी लगातार बेहतर हो रहा है। वित्त वर्ष 2009-10 में उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 39.22 फीसदी और शुद्ध लाभ मार्जिन (एनपीएम) 24.48 फीसदी था, जबकि चालू वित्त वर्ष में दिसंबर 2010 की तिमाही में ओपीएम 46.62 फीसदी और एनपीएम 29.16 फीसदी हो गया है। जाहिर है कि यह साल कंपनी के लिए काफी अच्छा बीत रहा है। कंपनी ने तीन महीने पहले 25 दिसंबर 2010 को अपने शेयरधारकों को एक पर एक शेयर बोनस के बतौर दिए हैं। इसके बाद कंपनी की इक्विटी 15.99 करोड़ से बढ़कर 31.98 करोड़ रुपए हुई है। इसमें प्रवर्तकों का हिस्सा 46.93 फीसदी है।
इन सारी सकारात्मक बातों के बावजूद कंपनी का शेयर गिरता जा रहा है। जबरदस्त नतीजों की घोषणा के बावजूद उसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर जनवरी के 284.85 रुपए से घटकर फरवरी में 232.35 रुपए के औसत भाव पर आ गया। अब मार्च में और नीचे 205 रुपए पर आ गया है। यही नहीं, बीते एक महीने में वह नीचे में 189 रुपए तक जा चुका है। निवेशकों के इस नकारात्मक रुख के दो कारण समझ में आते हैं। एक, गुटखे में प्लास्टिक की पैकिंग पर बैन लग गया है तो कंपनी गुटखा निर्माताओं को प्लास्टिक फिल्म नहीं बेच सकती। दो, कच्चे तेल के दाम बढ़ते जा रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि कच्चे तेल के दाम तो निश्चित दौर में सही स्तर पर आ ही जाएंगे। रही बात गुटखा की तो इसमें पॉलि इथिलीन टेरेप्थलेट (पीईटी) की मांग का मात्र 3-4 फीसदी हिस्सा आता है। इसलिए इससे मामूली प्रभाव पड़ेगा। खाने-पीने की चीजों की पैकिंग के रिसाइकल किए जानेवाले प्लास्टिक के बैन की बात चल रही है तो इससे पॉलिप्लेक्स, जिंदल पॉलिफिल्म्स और यूफ्लेक्स जैसी कंपनियों को फायदा ही मिलेगा। इसमें यूफ्लेक्स तो कई बार घोटालों में फंस चुके अशोक चतुर्वेदी की कंपनी है। इसलिए उससे दूर रहना चाहिए। बाकी जिंदल पॉलिफिल्म्स और पॉलिप्लेक्स कॉरपोरेशन दोनों का ही पी/ई अनुपात चार से नीचे है यानी इनका मूल्यांकन काफी आकर्षक है। डे ट्रेडरों के लिए नहीं, बल्कि कम से कम तीन साल के नजरिए वाले निवेशकों के लिए इनमें निवेश करना फायदे का सौदा साबित हो सकता है।