यू के सिन्हा ने पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी का चेयरमैन बनने के तीन हफ्ते के भीतर ही म्यूचुअल फंड उद्योग को हल्की-सी राहत दे दी है। श्री सिन्हा 18 फरवरी 2011 से सेबी के चेयरमैन बने हैं। इससे पहले वे यूटीआई म्यूचुअल फंड के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक थे।
म्यूचुअल फंडों को मिली राहत 1 अगस्त 2009 को एंटी लोड पर बैन लगाने से पहले इस खाते में जमा राशि के इस्तेमाल के बारे में है। सेबी ने बुधवार को जारी सर्कुलर में कहा है कि म्यूचुअल फंड बैन से ठीक पहले 31 जुलाई 2009 तक अपने एंट्री लोड खाते में बची रकम या बैलेंस का इस्तेमाल मार्केटिंग व बिक्री के खर्चों में कर सकते हैं। इसमें डिस्ट्रीब्यूटर या एजेंट को दिया जानेवाला कमीशन शामिल है। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2010-11 समेत किसी भी एक वित्त वर्ष में इस बैलेंस का अधिकतम एक तिहाई हिस्सा ही इस्तेमाल किया जा सकता है।
सर्कुलर के मुताबिक, “31 जुलाई 2009 तक के एंट्री लोड खाते के बैलेंस को कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है। लेकिन किसी भी वित्त वर्ष में इसका एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा नहीं खर्च किया जा सकता।” एसबीआई म्यूचुअल फंड के चीफ मार्केटिंग अफसर (सीएमओ) श्रीनिवास जैन ने सेबी के इस फैसले को सकारात्मक बताया है। उनका कहना है कि इससे म्यूचुअल फंड उद्योग को अपने शॉर्ट टर्म या छोटी अवधि के खर्च निकालने में मदद मिलेगी। अभी तक अस्पष्टता के चलते वे एंट्री लोड खाते में बची रकम का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे।
ब्रोकिंग फर्म एमएससी कैपिटल के रणनीतिकार व इक्विटी रिसर्च प्रमुख जगन्नाधन तुनगुंटला का भी कहना है कि इससे लोड खाते के बैलेंस के इस्तेमाल के बारे में स्पष्टता आएगी जिससे म्यूचुअल फंडों में कामकाज में मदद मिलेगी। बता दें कि 1 अगस्त 2009 से सेबी द्वारा बैन लगाने से पहले म्यूचुअल फंड किसी स्कीम में निवेश करनेवालों से ही 2.5 फीसदी रकम एंट्री लोड के रूप में काट लेते थे। यानी, अगर निवेशक ने स्कीम में 100 रुपए लगाए हैं तो उसके 97.5 रुपए से ही यूनिटें खरीदी जाती थीं। बाकी 2.5 रुपए से एजेंट या डिस्ट्रीब्यूटर का कमीशन दिया जाता था। लेकिन सेबी ने तय किया था कि अगर निवेशक को कमीशन देना है तो वह सीधे एजेंट/डिस्ट्रीब्यूटर को अलग से देगा और म्यूचुअल फंड में लगाए गए उसके पूरे 100 रूपए से यूनिटें खरीदी जाएंगी। इसके बाद से म्यूचुअल फंड निवेशकों से केवल एक्जिट लोड ही लेते रहे हैं जो स्कीम से निकलने या रिडेम्पशन पर उनकी फंड वैल्यू से काट लिया जाता है।
म्यूचुअल फंड उद्योग तभी से एंट्री लोड पर बैन का पुरजोर विरोध करता रहा है। उसका कहना है कि देश में वित्तीय साक्षरता की मौजूदा स्थिति को देखते हुए डिस्ट्रीब्यूटर को म्यूचुअल फंड स्कीमें ‘पुश’ करनी पड़ती हैं। निवेशक खुद-ब-खुद इन्हें नहीं खरीदता। इसलिए सेबी के बैन के बाद डिस्ट्रीब्यूटर हतोत्साहित हो गए क्योंकि उन्हें न तो म्यूचुअल फंड एंट्री लोड हट जाने से अतिरिक्त कमीशन दे पाए और न ही निवेशकों ने स्वेच्छा से इन डिस्ट्रीब्यूटरों को कुछ दिया। इससे म्यूचुअल फंड उद्योग की बिक्री घट गई। हालांकि आंकड़े इसकी तस्दीक नहीं करते। वैसे, इसकी बड़ी वजह यह है कि म्यूचुअल फंडों की आस्तियों (एयूएम) का बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट क्षेत्र से ऋण फंडों में आता रहा है।
अगस्त 2009 से पहले तक म्यूचुअल फंड निवेशक से एंट्री और एक्जिट लोड दोनों ही लिया करते थे। लेकिन उसके बाद वे केवल एक्जिट लोड ही ले सकते हैं। इस लोड के बैलेंस को म्यूचुअल फंड की स्कीम के बहीखाते की देनदारियों में रखा जाता है और एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) की गणना में इसे शामिल नहीं किया जाता।
सेबी ने ताजा सर्कुलर में कहा गया है कि अब स्कीम के बहीखाते में लोड के बैलेंस को दो खातों में रखना होगा। एक में 31 जुलाई 2009 तक का बैलेंस होगा और दूसरे में 1 अगस्त 2009 के बाद का। इन दोनों ही खातों में जमा शेष का इस्तेमाल म्यूचुअल फंड अपने विविधि मार्केटिंग खर्चों में कर सकते हैं। लेकिन 31 जुलाई 2009 तक के शेष का एक तिहाई हिस्सा ही वे किसी एक वित्त वर्ष में इस्तेमाल कर सकते हैं। हां, अगस्त 2009 के बाद के लोड बैलेंस का वे मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं। उस पर ऐसी कोई बंदिश नहीं है। सेबी का कहना है कि उसका यह कदम लोड बैलेंस का समरूप इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए जरूरी था।