साउथ सी बबल फूटा तो माथा घूम गया वैज्ञानिक आइज़क न्यूटन का

कभी-कभी इतिहास किसी तारीख या घटना से नहीं, बल्कि किसी सवाल से शुरू होता है। कैसे ऐसा हुआ कि समझदार लोग, शिक्षित समाज और सत्ता के गलियारों में बैठी बुद्धि एक साथ भ्रम में डूब गई? ‘साउथ सी बबल’ इसी सवाल की जन्मभूमि है। यह केवल शेयरों के चढ़ने और गिरने की कहानी नहीं है, बल्कि उस क्षण की कथा है जब तर्क ने भीड़ के सामने हथियार डाल दिए, जब भविष्य की चमक ने वर्तमान की सच्चाई को ढंक लिया, और जब इंसान ने पहली बार यह देखा कि बाजार सिर्फ गणित नहीं, मनुष्य की सामूहिक मनःस्थिति है। South Sea Bubble को अक्सर एक आर्थिक दुर्घटना की तरह पढ़ा जाता है। शेयर ऊपर गए, लोग अमीर बने, फिर धड़ाम से सब गिर गया। लेकिन अगर सिर्फ इतना ही होता, तो यह घटना तीन सौ साल बाद भी याद नहीं रखी जाती। इसे याद रखा जाता है क्योंकि यह मानव स्वभाव की नंगी तस्वीर है। लोभ, भय, उम्मीद और सामूहिक भ्रम की वो तस्वीर, जिसमें गणित भी हार जाता है और दर्शन भी चुप हो जाता है।

अठारहवीं सदी की शुरुआत का इंग्लैंड युद्धों से थका हुआ था। सरकार पर भारी कर्ज था। कर बढ़ाने की सीमा आ चुकी थी, जनता पहले ही नाराज़ थी। ऐसे समय में South Sea Company का विचार सामने आया। कहा गया कि यह कंपनी सरकार का कर्ज अपने ऊपर लेगी और बदले में उसे दक्षिण अमेरिका, यानी South Seas के साथ व्यापार का विशेष अधिकार मिलेगा। सोना, चांदी, मसाले, दास व्यापार, सब कुछ कल्पना में चमक रहा था। सच्चाई यह थी कि दक्षिण अमेरिका पर उस समय स्पेन का कब्जा था और ब्रिटेन के लिए वहां कारोबार लगभग असंभव था। लेकिन यह सच्चाई धीरे-धीरे गायब कर दी गई। उसकी जगह एक कहानी ने ले ली। वह कहानी जिसमें भविष्य बहुत चमकदार था और वर्तमान को सवालों से मुक्त घोषित कर दिया गया था।

यहीं से बुलबुले की असली शुरुआत होती है। बाजार हमेशा पहले कहानी पर विश्वास करता है, गणना पर बाद में। South Sea Company के शेयर जनता के लिए खोले गए। सरकार, संसद सदस्य, दरबार, प्रेस, सबने मिलकर इसे राष्ट्रीय अवसर की तरह पेश किया। जिसने निवेश नहीं किया, उसे मूर्ख माना गया। जिसने सवाल उठाया, उसे कायर। धीरे-धीरे ऐसा माहौल बन गया जिसमें सवाल पूछना सामाजिक अपराध बन गया था। शेयर की कीमत £100 से शुरू होकर कुछ ही महीनों में £1,000 तक पहुंच गई। मूल्य अब व्यापार से नहीं, भरोसे से तय हो रहा था। भरोसा भी तर्कसंगत नहीं, बल्कि सामूहिक था।

इस सामूहिकता की सबसे विचलित करने वाली बात यह थी कि इसमें सिर्फ आम लोग नहीं थे। इसमें देश के बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, लेखक, अधिकारी, सभी शामिल थे। यही वह बिंदु है जहां South Sea Bubble साधारण घोटाले से अलग हो जाता है। क्योंकि यह किसी अनपढ़ भीड़ की कहानी नहीं है, बल्कि शिक्षित समाज के सम्मोहित हो जाने की कथा है। इसी भीड़ में आइज़क न्यूटन भी थे। वही न्यूटन जिनका नाम सुनते ही विवेक, गणित, नियम और तर्क याद आते हैं। वह व्यक्ति जिसने गति के नियम खोजे, गुरुत्वाकर्षण को समझाया, प्रकाश के रहस्य खोले। उस समय न्यूटन Royal Mint के प्रमुख थे। यानी वे सिर्फ वैज्ञानिक नहीं, बल्कि मुद्रा और मूल्य की व्यवस्था से जुड़े सबसे ज़िम्मेदार लोगों में से थे। अगर किसी को यह समझना चाहिए था कि मूल्य और वास्तविक उत्पादन का रिश्ता क्या है, तो वह न्यूटन ही थे।

न्यूटन ने South Sea Company में निवेश किया। यह बात अपने आप में चौंकाने वाली नहीं है। चौंकाने वाली बात यह है कि उन्होंने शुरू में बिल्कुल सही किया। उन्होंने अपेक्षाकृत कम कीमत पर शेयर खरीदे और जब कीमत बढ़ी, तो समय पर बेच भी दिए। इस पहले दौर में उन्होंने लगभग £7,000 का मुनाफा कमाया। यह दिखाता है कि न्यूटन मूर्ख नहीं थे, न ही अंधविश्वासी। उन्होंने जोखिम समझा, समय पहचाना और मुनाफा लेकर बाहर निकल आए।

लेकिन यहीं मानव मन का सबसे खतरनाक मोड़ आता है। न्यूटन बाहर आ चुके थे, लेकिन खेल खत्म नहीं हुआ था। शेयर और ऊपर जाने लगे। चारों तरफ लोग अचानक अमीर होते दिखने लगे। वही दोस्त, वही सहकर्मी, जिनसे कल तक न्यूटन ज्यादा समझदार थे, आज उनसे ज्यादा धनवान हो गए। यह क्षण तर्क का नहीं, तुलना का होता है। इंसान इस बिंदु पर सवाल नहीं करता कि “यह सही है या नहीं”, वह यह पूछता है कि “मैं पीछे कैसे रह गया?”

यहीं ज्ञान पीछे हटता है और अहंकार आगे बढ़ता है। न्यूटन ने फिर से निवेश किया, इस बार ज्यादा रकम के साथ। अब वे गणना नहीं कर रहे थे, वे उस कहानी में लौट रहे थे जिसे वे खुद पहले छोड़ चुके थे। और जब बुलबुला फूटा, तो न्यूटन को लगभग £20,000 का नुकसान हुआ। आज के पैमाने पर यह करोड़ों की धनराशि के बराबर है। यह नुकसान उन्हें सड़क पर तो नहीं लाया, लेकिन उनके भीतर गहरी चोट छोड़ गया यह कहा जाता है कि इस अनुभव के बाद न्यूटन ने इस विषय पर बात करना लगभग बंद कर दिया। यह उनके जीवन के कुछ गिने-चुने मौकों में से एक था, जहां उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी सीमाएं स्वीकार कीं। South Sea Bubble के संदर्भ में उनसे जुड़ा जो कथन आज तक दोहराया जाता है, वह बहुत कुछ कह देता है: “मैं आकाशीय पिंडों की गति की गणना कर सकता हूं, लेकिन मनुष्यों के पागलपन की नहीं।”

प्रकृति नियमों से चलती है। ग्रह, तारे, प्रकाश, सब अनुमान योग्य हैं। लेकिन इंसान? वह नियमों से नहीं, भावनाओं से चलता है। बाजार इसी इंसान का सामूहिक रूप है। इसलिए बाजार कभी शुद्ध गणित नहीं हो सकता। South Sea Bubble हमें यह भी बताता है कि सरकार की उपस्थिति किसी योजना को नैतिक या सुरक्षित नहीं बना देती। जब सत्ता, पूंजी और प्रचार एक साथ मिल जाते हैं, तो भ्रम को वैधता मिल जाती है। यही कारण है कि इतने लोग इस बुलबुले में फंसे। लोगों ने सोचा, अगर संसद सदस्य, मंत्री, राजा की छत्रछाया में यह सब हो रहा है, तो गलत कैसे हो सकता है? लेकिन इतिहास बार-बार बताता है कि सत्ता की स्वीकृति सत्य की गारंटी नहीं होती।

South Sea Bubble मनुष्य के लालच की नहीं, बल्कि अनिश्चय की कहानी है। लोग अमीर बनना नहीं चाहते थे, वे पीछे नहीं रहना चाहते थे। यह डर सबसे शक्तिशाली राजनीतिक और आर्थिक भावना है। बाजार इसी डर को भुनाता है। आज शब्द बदल गए हैं। तब South Seas था, आज तकनीक है, स्टार्टअप है, क्रिप्टो है। लेकिन मनोविज्ञान वही है। न्यूटन की कहानी इसीलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें झूठा दिलासा नहीं देती। यह नहीं कहती कि समझदार लोग कभी गलत नहीं होते। यह कहती है कि समझदार लोग भी इंसान होते हैं। और इंसान जिस क्षण खुद को भीड़ से ऊपर समझना छोड़ देता है, उसी क्षण वह भीड़ का हिस्सा बन जाता है।

South Sea Bubble टूट गया, सरकार ने जांच करवाई, कुछ लोग सज़ा पाए, कुछ बच निकलें। लेकिन असली सवाल यह नहीं है कि दोषी कौन था। असली सवाल यह है कि अगली बार जब कोई कहानी हमें बिना ज्ञान और परिश्रम के अमीर बनने का सपना दिखाएगी, तो क्या हम न्यूटन की गलती को याद रखेंगे? या हम भी उस वाक्य को दोहराएंगे, बहुत देर बाद, जब नुकसान हो चुका होगा? यह घटना हमें यह स्वीकार करना सिखाती है कि ज्ञान विनम्रता मांगता है। जो लोग यह मान लेते हैं कि वे हर परिस्थिति को समझ सकते हैं, वही सबसे पहले धोखा खाते हैं। शायद यही South Sea Bubble की सबसे बड़ी सीख है।

– मनोज अभिज्ञान (लेखक सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट हैं और शेयर बाज़ार व निवेश के गहरे जानकार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *