सारी समझदारी, फिर भी लगता घाटा!

शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग विशुद्ध रूप से सट्टेबाज़ी का बिजनेस है, जबकि निवेश हमेशा कंपनी के हर पहलू को देख-परखकर समझदारी से किया जाता है। फिर भी दोनों में घाटा लगने की पूरी गुंजाइश है। यही शेयर बाज़ार का रिस्क है, जिसे कोई खत्म नहीं कर सकता। फिर भी हमें सट्टेबाज़ी और सच्चे निवेश के अंतर को समझना होगा। सच्चा निवेश वो है जिसमें कंपनी का बिजनेस मजबूत हो, लेकिन उसके शेयर अपने अंतर्निहित मूल्य से कम भाव पर उपलब्ध हों। अंतर्निहित मूल्य निकालने के किसी दुरूह फॉर्मूले में फंसने के बजाय हमारे लिए इतना देख लेना पर्याप्त होगा कि उसकी प्रति शेयर बुक वैल्यू क्या है। शेयर का बाज़ार भाव इससे कम होना चाहिए। इसके साथ ही शेयर का पी/ई अनुपात भी एक कारगर पैमाना है। निवेश करते वक्त इस अनुपात को अमूमन 20 से कम होना चाहिए। ये दो मानक हमें निवेश में सुरक्षा का वाजिब मार्जिन उपलब्ध करा देते हैं। लेकिन जैसा हमने शुरू में कहा कि शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग ही नहीं, निवेश भी एक रिस्की बिजनेस है। इसमें बंधे-बंधाए मानक काम नहीं करते। ज्यादा रिटर्न के लिए कभी-कभी छलांग भी लगानी पड़ती है और ज्यादा पी/ई पर ट्रेड हो रही कंपनी भी आकर्षक होती है। आज तथास्तु में ऐसी ही एक कंपनी…

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