सरकार ने 1 अप्रैल 2023 से शेयर बाज़ार के फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (एफ एंड ओ) सेगमेंट में होनेवाले सौदों पर सिक्यूरिटीज़ ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) 25% बढ़ा दिया है। पहले एक करोड़ रुपए के फ्यूचर्स सौदों पर 1000 रुपए एसटीटी लगता था, जबकि अब यह 1250 रुपए लगेगा। वहीं, ऑप्शंस की बिक्री पर पहले 0.05% एसटीटी लगता था, अब 0.0625% लगेगा। इस तरह इसमें भी 25% वृद्धि की गई है। पहले ऑप्शंस में एक करोड़ रुपए के सौदे पर 5000 रुपए टैक्स लगता था, जब 6250 रुपए लगेगा। इससे अपने शेयर बाज़ार, खासकर एनएसई के एफ एंड ओ वोल्यूम पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। कोई कह सकता है कि इससे हाई फीक्वेंसी ट्रेड (एचएफडी) करनेवाले बड़े ट्रेडर ही प्रभावित होंगे। लेकिन इससे व्यक्तिगत ट्रेडर भी प्रभावित होंगे जिसके संख्या दीये पर मंडराते पतंगों की तरह बढ़ती ही जा रही है।
असल में पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी की जनवरी 2023 में आई एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक देश में शेयर बाज़ार के एफ एंड ओ सेगमेंट में व्यक्तिगत या रिटेल ट्रेडरो की संख्या तीन साल में लगभग छह गुना हो गई है। हमारे इक्विटी एफ एंड ओ सेगमेंट में रिटेल ट्रेडरों की संख्या वित्त वर्ष 2018-19 में 7.1 लाख हुआ करती थी। अगले तीन सालों में इनका क्रेज़ इतना बढ़ा कि यह संख्या 2021-22 के अंत तक 536.62% बढ़कर 45.24 लाख पर पहुंच गई। सेबी की अध्ययन रिपोर्ट ने पाया कि इस सेगमेंट से कमाने की जुगत में लगे दस में से नौ व्यक्तिगत या रिटेल ट्रेडर घाटा उठाते रहे हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान शीर्ष के 1% ट्रेडरों ने ही बाज़ार से हुए कुल मुनाफे का 51% हिस्सा हासिल किया। वहीं, अगर शीर्ष के 5% ट्रेडरों को शुमार कर लें तो एफ एंड ओ सेगमेंट से हुआ 75% मुनाफा उनके खाते में गया। इंडेक्स फ्यूचर्स और स्टॉक फ्यूचर्स में घाटा खानेवाले ट्रेडरों का हिस्सा 74% और 67% रहा और वित्त वर्ष के दौरान उनका औसत घाटा क्रमशः 96,000 रुपए से लेकर 2.1 लाख रुपए तक रहा है। फिर भी रिटेल ट्रेडरों में एफ एंड ओ की ट्रेडिंग का चस्का कम होता नहीं दिख रहा। शायद इन सौदों पर एसटीटी बढ़ा देने से उनका चस्का थोड़ा कम हो जाए।
सेबी की अध्ययन रिपोर्ट का शीर्षक था – इक्विटी एफ एंड ओ सेगमेंट में सौदा करनेवाले व्यक्तिगत ट्रेडरों के नफा-नुकसान का विश्लेषण। इस रिपोर्ट के लिए सेबी ने देश के दस शीर्ष ब्रोकरों से 45.24 लाख व्यक्तिगत ट्रेडरों का सैम्पल इकट्ठा किया और उनका सिलसिलेवार विश्लेषण किया। इन ब्रोकरों का चयन इस आधार किया गया कि शेयर बाज़ार के एफ एंड ओ सेगमेंट के टर्नओवर में किनके पास व्यक्तिगत निवेशकों/ट्रेडरों का हिस्सा सबसे ज्यादा है। इन चुने गए शीर्ष दस ब्रोकरों के पास वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान एफ एंड ओ सेगमेंट में व्यक्तिगत या रिटेल ट्रेडरों के कुल टर्नओवर का लगभग 67% हिस्सा रहा है। इसलिए इन आंकड़ों से निकली रिपोर्ट को काफी हद तक सच माना जा सकता है।
सेबी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “इक्विटी एफ एंड ओ सेगमेंट में 89% व्यक्तिगत ट्रेडरों को वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान औसतन 1.1 लाख रुपए का नुकसान हुआ, जबकि 90% सक्रिय ट्रेडरों का औसत नुकसान इसी अवधि में 1.25 लाख रुपए का दर्ज किया गया। पूरे सक्रिय ट्रेडरों के समूह की बात करें तो उनके शुद्ध ट्रेडिंग नुकसान का औसत इस दौरान 50,000 रुपए का रहा।” इन सभी को इसके ऊपर से 28% घाटा ट्रांजैक्शन लागत की मार से भी उठाना है। इस लागत में ब्रोकरेज़, क्लियरिंग फीस, सेबी की टर्नओवर फीस, एसटीटी और जीएसटी वगैरह भी आते हैं। जो ट्रेडर जितना सक्रिय थे, उनकी ट्रांजैक्शन लागत भी ज्यादा थी। कम सक्रिय ट्रेडरों की यह लागत आमतौर पर 8% कम रही।
बता दें कि व्यक्तिगत निवेशकों या ट्रेडरों की श्रेणी में निजी निवेशक, हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) व अनिवासी भारतीय (एनआरआई) भी शामिल हैं और प्रॉपराइटरी ट्रेडर, संस्थाएं व पार्टनरशिप फर्में इससे बाहर हैं। वहीं, सक्रिय ट्रेडर ऐसे व्यक्तिगत ट्रेडर हैं जो इक्विटी एफ एंड ओ सेगमेंट में साल में कम से कम पांच बार ट्रेड करते हैं। कुल 45.24 लाख व्यक्तिगत ट्रेडरों में से 39.76 लाख (88%) सक्रिय ट्रेडर थे। वित्त वर्ष 2018-19 के बाद बढ़े इन ट्रेडरों में सबसे ज्यादा संख्या 20-30 साल के युवा ट्रेडरों की थी। पहले इस सेगमेंट में 20-30 साल के ट्रेडरों का हिस्सा 11% हुआ करता था। यह वित्त वर्ष 2021-22 के अंत तक यह 36% पर पहुंच गया। यह भी गौरतलब है कि 2018-19 में एफ एंड ओ में 30-40 साल के ट्रेडरों का हिस्सा 43% हुआ करता था, जो 2021-22 के अंत तक घटकर 39% पर आ गया।
माना जाता है कि इक्विटी एफ एंड ओ सेगमेंट में फ्यूचर्स ही सबसे ज्यादा रिस्की है, जबकि ऑप्शंस में ट्रेड करना अपेक्षाकृत सुरक्षित है क्योंकि इसमें नुकसान सीमित है और उतना ही धन डूबता है जितना ऑप्शंस खरीदने के लिए आपने प्रीमियम दिया होता है। लेकिन सेबी की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक ऑप्शंस भी ज्यादातर व्यक्तिगत ट्रेडरों के लिए घाटे का सौदा हैं। रिपोर्ट बताती है, “वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान इंडेक्स ऑप्शंस में ट्रेड करनेवाले 89% व्यक्तियों का औसत घाटा 77,000 रुपए और स्टॉक ऑप्शंस में ट्रेड करनेवाले 82% व्यक्तियों का औसत घाटा 66,000 रुपए रहा है।” लेकिन निराशा से भरे इस माहौल में आशा की किरण यह है कि उक्त अवधि में एफ एंड ओ सेगमेंट में 11% व्यक्तिगत ट्रेडरों में मुनाफा कमाया है और उनका औसत मुनाफा 1.5 लाख रुपए रहा है। आखिर इन 11% लोगों के पास कौन-सा हुनर है?
बहुत साफ है कि ये 11% सफल व्यक्तिगत ट्रेडर वे हैं जो अपने रिस्क प्रोफाइल को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। साथ ही शेयर बाज़ार और उसमें खासकर एफ एंड ओ में ट्रेडिंग के रिस्क को पूरी तरह तौलकर सौदे करते रहते हैं। अन्यथा, दुनिया में किंवदंती बन चुके सफलतम निवेशक वॉरेन बफेट तो एफ एंड ओ या डेरिवेटिव्स को ‘जनसंहार का वित्तीय हथियार’ ही बताते रहे हैं, जिसमें निवेशकों को बचकर ही रहना चाहिए। अन्यथा, दीया तो बेरहम जलता ही रहेगा और कुछ पाने की लालच में पतंगे उस पर जल, जल, जलकर मरते ही रहेगे।