पंजाब व हरियाणा के गांवों-कस्बों में लोग जुगाड़ से गाड़ियां बनाकर चला लेते हैं। लेकिन अमृतसर से लोकसभा चुनाव जीतने में नाकाम रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली तो देश का बजट घाटा तक जुगाड़ से ठीक करने जा रहे हैं। इस जुगाड़ के बल पर वे नए वित्त वर्ष 2018-19 का बजट पेश करते वक्त बड़े आराम से दावा करेंगे कि उन्होंने 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 3.2 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य पूरा कर लिया है।
मालूम हो कि राजकोषीय घाटे और डीजीपी का अनुपात एक ऐसा अहम संकेतक है जिसे अर्थशास्त्री से लेकर आईएमएफ, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां तक बहुत ज्यादा अहमियत देती हैं। इससे पता चलता है कि सरकार की वित्तीय सेहत कितनी अच्छी है। जेटली ने पिछले साल के बजट में इसे जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रखने की पेशकश की थी। 2017-18 के लिए राजकोषीष घाटे का बजट अनुमान 5,46,532 करोड़ रुपए रखा गया था, जबकि माना गया था कि बाज़ार मूल्य पर वित्त वर्ष के अंत में जीडीपी 168.47 लाख करोड़ करोड़ रुपए रहेगा।
इधर, जनवरी 2018 के पहले सप्ताह में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) का पहला अग्रिम अनुमान आया है कि 2017-18 में देश का जीडीपी अनुमान से कम 166.28 लाख करोड़ रुपए रह सकता है। इससे पहले दिसंबर 2017 के आखिरी हफ्ते में वित्त मंत्रालय के लेखा विभाग का आंकड़ा आया था कि सरकार के राजस्व व खर्च का अंतर अप्रैल से नवंबर 2017 तक के आठ महीनों में ही 6,12,105 करोड़ रुपए हो चुका है जो बजट में अनुमानित राजकोषीय घाटे का 112 प्रतिशत ठहरता है।
इस घाटे को कम करने का एक ही तरीका हो सकता था कि सरकार अपना राजस्व या आय बढ़ा ले और ऋण की मात्रा कम से कम कर ले। बता दें कि राजकोषीय घाटा केंद्र सरकार की सभी राजस्व प्राप्तियों और गैर-ऋण पूंजी प्राप्तियों के योगफल से उसके कुल खर्च को घटाने पर निकलता है। यह सभी स्रोतों से सरकार द्वारा लिए जानेवाले उधार को दिखाता है। वित्त वर्ष 2017-18 के लिए निर्धारित 5,46,532 करोड़ रुपए के राजकोषीष घाटे में से 12,844 करोड़ रुपए केंद्र के कैश बैलेंस से, 15789 करोड़ रुपए विदेशी ऋण से, 53513 करोड़ रुपए आंतरिक ऋण व लोक खाते से, 14000 करोड़ रुपए राज्य भविष्य निधि से, 100157 करोड़ रुपए लघु बचत के एवज में जारी प्रतिभूतियों से और बाकी बचे 3,50,228 करोड़ रुपए शुद्ध बाज़ार उधारी से जुटाने थे।
सरकार की बाज़ार उधारी की व्यवस्था रिजर्व बैंक सार्वजनिक व निजी बैंकों के जरिए करता है जिनके लिए अपनी कुल जमा का 19.5 प्रतिशत हिस्सा एसएलआर (सांविधिक तरलता अनुपात) के तहत सरकारी बांडों में लगाना ज़रूरी है।
केंद्र सरकार की 3,50,228 करोड़ रुपए की शुद्ध बाज़ार उधारी में से 3,48,226 करोड़ रुपए दिनांकित सरकारी बांडों और 2002 करोड़ रुपए ट्रेजरी बिलों से जुटाए जाने थे। इसमें से 26 दिसंबर 2017 तक बाज़ार से 3,81,281 करोड़ रुपए का उधार जुटाया जा चुका था, जिसमें से 86,203 करोड़ रुपए ट्रेजरी बिलों से आए थे। इसी बीच वित्त मंत्रालय ने घोषणा कर दी कि वह ट्रेजरी बिलों की मात्रा मार्च 2018 तक 86,203 करोड़ रुपए से घटाकर 25,006 करोड़ रुपए पर ले आएगा और इसकी जगह 50,000 करोड़ रुपए के दिनांकित बांड जारी करेगा। इस तरह सरकार के शुद्ध बाज़ार उधार पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। मालूम हो कि ट्रेजरी बिल एक साल से कम की सरकारी प्रतिभूतियां होती हैं, जबकि दिनांकित सरकारी बांड 5 साल से ज्यादा की प्रतिभूतियां हैं।
वित्त मंत्रालय ने दिखाया कि निर्धारित बाजार उधार और राजकोषीय घाटे पर फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन बाज़ार को लगा है कि अब राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। इससे वहां एक तरह की घबराहट फैल गई। सरकारी बांडों के मूल्य घट गए, जिससे उन पर प्रभावी यील्ड की दर 18 महीनों के उच्चतम स्तर तक पहुंच गई। जेटली पसोपेश में पड़ गए कि स्थिति को अब कैसे संभाला जाए। उन्होंने तत्काल फैसला किया कि 50,000 करोड़ रुपए के बजाय 20,000 करोड़ रुपए ही बांड से नए जुटाए जाएंगे।
तभी उनके दिमाग में एक जुगाड़ तैर गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल जुलाई 2017 में ही सैद्धांतिक स्तर पर फैसला कर चुका था कि हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) में केंद्र सरकार की सारी बची हुई 51.11 प्रतिशत इक्विटी अन्य सरकारी कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) को बेच दी जाएगी। साथ ही सौदे का मूल्य, समय व शर्तें वगैरह तय करने के लिए जेटली की अध्यक्षता में एक समिति बना दी। जुलाई के बाद से अब तक एचपीसीएल के शेयर 25 प्रतिशत महंगे हो चुके थे। इसलिए ओएनजीसी के लिए यह सौदा करना फिलहाल उचित नहीं होता। लेकिन वित्त मंत्री जेटली को लगा कि यह सौदा हो जाने पर एक तीर से दो निशाने सध जाएंगे। एक तो साल के लिए निर्धारित विनिवेश का लक्ष्य वित्त वर्ष की समाप्ति के दो महीने पहले ही पूरा हो जाएगा। दूसरे, इससे सरकार को जो धन मिलेगा, उससे वह सीमा से बाहर जाता अपना घाटा पूरा कर लेगी।
20 जनवरी को आनन-फानन में फैसला ले लिया गया कि ओएनजीसी फौरन एचपीसीएल में सरकार के स्वामित्व वाले 77 करोड़ 88 लाख 45 हज़ार 375 शेयर खरीद लेगी। सौदे में प्रति शेयर मूल्य 473.97 रुपए रखा जाए जो उस दिन के बाज़ार भाव से 14 प्रतिशत ज्यादा था। कुल सौदा 36,915 करोड़ रुपए में निपटाने का निर्णय हुआ। लेकिन यह सारा का सारा धन एचपीसीएल को न मिलकर भारत सरकार को मिलेगा, जिससे वह अपना घाटा पूरा करेगी। वित्तीय नैतिकता के लिहाज़ से इसे सही कदम नहीं माना जाएगा। लेकिन जब खरीदने और बेचनेवाली दोनों ही कंपनियों की मालिक भारत सरकार हो तो कौन इस पर सवाल उठाता।
इससे सौदे के बाद भी एचपीसीएल शेयर बाज़ार में अलग से लिस्टेड रहेगी। लेकिन वह ओएनजीसी, यानी एक सरकारी कंपनी की ही सब्सिडियरी बन जाएगी। वित्त मंत्रालय ने इसका फायदा गिनाते हुए बताया कि इससे ओएनजीसी भारत की पहली ‘ऊर्द्धवत एकीकृत प्रमुख तेल कंपनी’ बन जाएगी। तेल कुएं तो उसके पास पहले से ही थे, अब रिफाइनरी और मार्केटिंग कंपनी भी उसकी हो जाएगी। लेकिन तात्कालिक हकीकत यह है कि इस सौदे से ओएनजीसी पूरी तरह ऋण-मुक्त कंपनी से ऋणग्रस्त कंपनी बन गई है। इस सौदे को पूरा करने के लिए कंपनी अपने कैश सरप्लस से करीब 13,000 करोड़ रुपए सरकार को देगी। लेकिन सौदे की बाकी रकम और बाद के खर्चों के लिए उसे ऋण उठाना पड़ेगा। यह कुल कितना होगा, यह अभी तक साफ नहीं है। लेकिन उसे अपने निदेशक बोर्ड से बाज़ार से 25,000 करोड़ रुपए का ऋण उठाने की अनुमति मिल गई है। साथ ही कंपनी की उधार सीमा बढ़ाकर 35,000 करोड़ रुपए कर दी गई है।
इससे भविष्य में दो प्रमुख सरकारी कंपनियों ओएनजीसी और एचपीसीएल को क्या लाभ होगा, यह साफ नहीं। लेकिन सरकार को सीधे-सीधे बजट पेश करने से पहले 36,915 करोड़ रुपए अतिरिक्त मिल जाएंगे। इससे पहले 11 जनवरी 2017 तक सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अपना स्वामित्व बेचकर चालू वित्त वर्ष में 54,338 करोड़ रुपए जुटा चुकी थी। एचपीसीएल-ओएनजीसी ताज़ा सौदे के बाद विनिवेश से हासिल कुल रकम 91,253 करोड़ रुपए हो जाएगी, जबकि बजट में विनिवेश का कुल घोषित लक्ष्य 72,500 करोड़ रुपए का था।
वैसे तो आम भाषा में इसे चांदी के बर्तन व गहने बेचकर घर खर्च चलाने जैसा कदम माना जाता है। लेकिन सरकार इससे इतनी उत्साहित है कि नए वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में विनिवेश से एक लाख करोड़ रुपए जुटाने की घोषणा कर सकती है। शायद वित्त मंत्रालय को लगता है कि जब अर्थव्यवस्था की कमज़ोरी से जीएसटी व अन्य टैक्सों से कम राजस्व मिलने की आशंका हो, तब सरकारी कंपनियों के विनिवेश या उन्हे निजी हाथों में सौंपने से राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3 प्रतिशत तक सीमित रखा जा सकता है। इससे मूडीज़ व स्टैंडर्ड एंड पुअर्स जैसी रेटिंग एंजेसियां और विदेशी निवेशक खुश हो जाएंगे और मोदी-मोदी के नशे में चढ़े शेयर बाज़ार का दोहन भी हो जाएगा। लेकिन इस साल जिस तरह वित्त मंत्री जेटली ने सरकारी घाटा कम करने के लिए ओएनजीसी जैसी कंपनी को ऋण के बोझ तले दबाया है, उसे आर्थिक बुद्धिमत्ता के बजाय जुगाड़ ही कहना ज्यादा सही होगा।