राज्यसभा में आलाकमान और नेताओं ने चुने 28% अपराधी, 80% करोड़पति

राजनीति में अपराध और धन के हावी होने का दोष अक्सर अनपढ़, गंवार और जाति-धर्म के दलदल में धंसी जनता पर मढ़ दिया जाता है। लेकिन यह कितना बड़ा झूठ है, यह साबित कर देता है 14 व 17 जून को दो चरणों में संपन्न हुआ राज्यसभा का चुनाव जिसमें चुनने का काम हमारे सांसद और विधायक जैसे जनप्रतिनिधि ही करते हैं। यह साबित कर देता है कि राजनीतिक पार्टियों का आलाकमान और उनके ज्यादातर नेता भाषणों में चाहे जो बोलते हों, लेकिन चुनने की बारी आती है तो वे धन और अपराध की ताकत को ही तवज्जो देते हैं।

स्वयंसेवी संस्था नेशनल इलेक्शन वॉच के एक अध्ययन के अनुसार अभी राज्यसभा में 12 राज्यों की जिन 545 सीटों के लिए चुनाव पूरे हुए हैं, उनमें से एक चौथाई सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। निर्वाचन आयोग ने तमिलनाडु की चार सीटों का ब्यौरा नहीं उपलब्ध कराया है। बाकी 49 सीटों पर विजयी उम्मीदवारों के हलफनामों से पता चलता है कि उनमें से 15 (28 फीसदी) के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। इन मुकदमों में हत्या की कोशिश, अपहरण, धोखाधड़ी व जालसाची से जुड़े अपराध शामिल हैं। लेकिन इन सभी लोगों को हमारे उन नेताओं ने चुनकर भेजा है जो राजनीति में अपराधियों के खिलाफ घुसपैठ पर गला फाड़ते रहते हैं।

खास बात यह है कि इन उम्मीदवारों के नाम छांटने का काम हर पार्टी का आलाकमान करता है। इसलिए वह भी इससे लिए सीधे-सीधे दोषी है। इन चुनावों में प्रमुख पार्टियों में से कांग्रेस ने कुल 16 प्रत्याशी मैदान में उतारे जिनमें से तीन (19 फीसदी) के खिलाफ आपराधिक मुदकमे चल रहे हैं। बीजेपी द्वारा नामांकित 11 में से दो (17 फीसदी) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने तो दो के दोनों टिकट अपराधियों को ही दिए। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के सात में से एक (14 फीसदी) उम्मीदवार अपराधी है।

टिकट देने में पार्टियों ने धनपशुओं को ही तवज्जो दी है। राज्यसभा की इन 54 सीटों के लिए मैदान में उतरने 80 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति हैं। जिन विजयी 49 उम्मीदवारों के हलफनामे उपलब्ध हैं, उनमें से 38 (78 फीसदी) ने खुद बताया है कि उनके पास करोड़ों की संपत्ति है। विजयी उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 25.24 करोड़ रुपए है। इनमें से 615 करोड़ के साथ सबसे अमीर राज्यसभा सांसद है विजय माल्या। मजे की बात यह है कि माल्या ने कहा है कि उनके पास कोई अचल संपत्ति नहीं है। माल्या के बाद तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के यालामंचिली सत्यनारायण चौधरी (189.7 करोड़) और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कंवर दीप सिंह (82.6 करोड़) का नंबर आता है।

इन चुनावों में केवल तीन महिलाओं को प्रत्याशी बनाया गया था और तीनों ही चुन ली गई हैं। बता दें कि नेशनल इलेक्शन वॉच देश भर के 1200 से ज्यादा संगठनों का साझा मंच है। यह मुख्य रूप से राजनीतिक सुधारों के लिए कार्यरत है और लोगों में वह चेतना पैदा करना चाहता है ताकि वे राजनीतिक पार्टियों पर खुद को बदलने के लिए दबाव डाल सकें।

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