एक तरफ देश में मोबाइल सेवाएं बढ़ती जा रही हैं। निजी कंपनियां एक-दूसरे से होड़ लेती हुई देश के दूरदराज के इलाकों तक पहुंच रही हैं। देश में मोबाइलधारकों की संख्या 58.43 करोड़ के पार जा चुकी है। दूसरी तरफ सरकार का दूरसंचार विभाग (डॉट) ग्रामीण इलाकों में दूरसंचार सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए निर्धारित रकम का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने ग्रामीण इलाकों में इस काम के लिए नियत 18,000 करोड़ रुपए से अधिक की रकम का इस्तेमाल न करने के लिए डॉट को लताड़ पिलाई है। उसका कहना है कि डॉट ने इतना ही नहीं, इस बारे में गलत जानकारी भी दी है।
सीएजी या कैग ने केंद्र सरकार के कामकाज से जुड़ी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ग्रामीण इलाकों में दूरसंचार सेवा के विकास के लिए वित्त वर्ष 2002-03 से लेकर 2008-09 के दौरान विशेष दायित्व शुल्क के रूप में 26,164 करोड़ रुपए वसूले गए। लेकिन इन 6 सालों के दौरान इसमें से केवल 7971 करोड़ रुपए ही वितरित किए गए। रिपोर्ट के अनुसार यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन (यूएसओ) फंड 31 मार्च 2009 तक 18,192. 52 करोड़ रुपये का होना चाहिए, जबकि डॉट ने इसे अपने खातों में शून्य दिखाया है। कैग ने इस बात पर भी अफसोस जताया है कि फंड का इस्तेमाल बजट घाटा पाटने के लिए किया गया।
बता दें कि ग्रामीण इलाकों में दूरसंचार के विकास के लिए यूएसओ फंड का गठन केंद्र सरकार ने 2002 में किया था। इसके तहत दूरसंचार कंपनियों से उनकी समायोजित सकल आय का 5 फीसदी बतौर शुल्क लिया जाता है। फंड का प्रबंधन दूरसंचार विभाग करता है। कैग ने एकत्र किए गए फंड का इस्तेमाल उसी साल करने के लिए स्कीम बनाने की सिफारिश की है ताकि यूएसओ लक्ष्य को पूरा किया जा सके। देश की इस शीर्ष ऑडिट संस्था ने इस बात पर अफसोस जताया कि खर्च नहीं की गयी राशि का इस्तेमाल बजट घाटा पाटने में किया गया है।