एक-एक दिन। हफ्ता-दर-हफ्ता। हर हफ्ते में पांच दिन। हर शाम यही बेचैनी कि अगले दिन कैसे कोई ऐसा शेयर पेश कर दूं जो आपकी बचत को पंख लगा सके। कोशिश कि निवेश की हर सुरक्षित डगर ढूंढकर आप तक पहुंचा दूं। यह भी कि आर्थिक व वित्तीय जगत की सारी काम की खबरें आप तक अखबारों से बारह घंटे पहले पहुंचा दूं। दावा नहीं करता कि ऐसा कर ही डाला। लेकिन इतना दावा जरूर है कि पूरी ईमानदारी से यही कोशिश कर रहा हूं।
यह सब करते-करते कब 18 महीने होने को आ गए, पता ही नहीं चला। लेकिन अब दम मारने की घड़ी आ गई है क्योंकि 1 अप्रैल 2010 को अर्थकाम को शुरू करते वक्त मैंने तय किया था कि 18 महीने तक सांस नहीं लूंगा। उसके बाद ही देखूंगा कि यह कहां तक सार्थक बन पाया है। यह पड़ाव इस महीने के अंत तक पूरा हो जाएगा। इस दौरान बिना किसी से एक धेला लिये अनवरत काम करता रहा। जहां भी रहा, वहीं से। घर से, बाहर से। यहां तक कि चलती ट्रेन से।
ध्येय एक है, जुनून एक है। एक ऐसा मंच, जहां से व्यापक हिंदी समाज आर्थिक व वित्तीय मसलों के मूल तक पहुंच सके, जहां से उसे ऐसी समझदारी मिल सके कि कोई भी धंधेबाज उसे उल्लू न बना सके, जहां पहुंचकर रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी ये धारणाएं उसके लिए अबूझ पहेली न रहकर जल की तरह निर्मल हो जाएं। तहेदिल से चाहता हूं कि व्यापक अवाम को अज्ञान से मुक्ति मिल जाए। नहीं चाहता कि हमारे दिमाग के किसी कोने में कोई अंधेरा रह जाए।
जानता हूं कि मंजिल आसान नहीं है। रास्ता लंबा है। खासकर, हिंदी में यह काम बेहद मुश्किल है। फिर भी किए जा रहा हूं। अब 18 महीने के पड़ाव तक पहुंचने के ठीक पहले आपसे जानना चाहता हूं कि क्या अर्थकाम से आपकी जिंदगी पर कोई फर्क पड़ा है? क्या इससे आपको कुछ ऐसी जानकारी या सीख मिली है जो दूसरी किसी जगह से नहीं मिल पाती? आपको बता दूं कि मैं झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहता। सब्जबाग या विज्ञापनबाजी में मेरा यकीन नहीं। आजकल तो फाइनेंस की दुनिया में झूठ बोलने का चलन ही चल पड़ा है। लोगों को सरेआम ठगा जा रहा है। मौकों को बनाने की नहीं, सिर्फ भुनाने की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन यह सिलसिला अब रुकना ही चाहिए। सच्ची सेवा लोगों तक पहुंचनी ही चाहिए। यही सोच लेकर अर्थकाम के साथ आपके बीच उतरा हूं।
मुझे अच्छी तरह पता है कि मुझे आप तक जो कुछ पहुंचाना था, सीमित संसाधनों व समय के चलते उसका 15 फीसदी ही आप तक पहुंचा सका हूं। मसलन, महीनों से मुझे बताना था कि सोना पहनने के लिए ठीक है, निवेश के लिए कतई नहीं। मुझे लिखना था कि पेट्रोल को नियंत्रण-मुक्त कर देने, कच्चे तेल पर कस्टम ड्यूटी खत्म कर देने और एक्साइज घटा देने के बावजूद तेल कंपनियां क्यों और कैसे अंडर-रिकवरी व घाटे का शिकार हैं। मुझे बताना था कि शेयर बाजार का ककहरा न जाननेवाला भी कैसे यहां निवेश की शुरुआत कर सकता है। ऐसा ही बहुत सारा आपको कहना-बताना था। लेकिन चाहकर भी नहीं कर सका क्योंकि यहां सूक्तियां नहीं, सच ढूंढकर पेश करना है, यहां प्रचार नहीं, भेड़चाल से अलग हटकर सही दिशा की शिनाख्त करनी है। करीब 52 करोड़ हिंदी भाषाभाषी लोगों की जुबान बनना है, उन्हें आर्थिक व वित्तीय रूप से सबल व साक्षर बनाना है।
जानता हूं कि यह काम मूलतः सरकार और उसकी वित्तीय संस्थाओं या वित्तीय जगत के अन्य खिलाड़ियों का है। लेकिन वहां तो निहित स्वार्थों का खेल चल रहा है। हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और। वित्त मंत्री और उनके आला अफसर वित्तीय साक्षरता व वित्तीय समावेश की कितनी भी बात कर लें, लेकिन वे इस काम के प्रति कतई संजीदा नहीं हैं। सरकार लोकपाल नाम का बिल लाती जरूर है, लेकिन अंदर से उसे खोखला बनाकर। उसे सही करवाने के लिए भारतीय अवाम के किसी सिपाही, अण्णा को प्रत्यंचा ताननी पड़ती है।
ऐसी ही कोशिश अर्थकाम के जरिए हो रही है। पहले पड़ाव तक की यात्रा अकेले दम पर पूरी की है। अब आपसे जानना चाहता हूं कि क्या इस दौरान आपको यहां से कुछ सार्थक मिल सका है? क्या आपको लगता है कि अर्थकाम को आम भारतीय के लिए वित्तीय साक्षरता व वित्तीय सबलता की संस्था के रूप में विकसित किया जा सकता है और ऐसा किया जाना चाहिए? मुझे तो यही करना है। लेकिन चूंकि इसे आपके लिए करना है, इसलिए आपकी राय जरूरी हो जाती है।
मुझे कोई संदेह नहीं कि अर्थकाम को अंतिम ऊर्जा आपसे ही मिलनी है। इसीलिए मुझे इसे न तो एनजीओ बनाकर सरकार या किसी दूसरे की कृपा का मोहताज बनाना है और न ही किसी ब्रोकर की तरह धंधा करना है। मैं तो एक निष्पक्ष शिक्षक की भूमिका में रहना चाहता हूं। सवाल उठता है कि कैसे इसे ऐसी एक सतत प्रवाहमान व ऊर्जावान संस्था के रूप में विकसित किया जाए जो केवल आप पर निर्भर हो और आपके प्रति ही जवाबदेह हो? ऐसा क्या रास्ता हो सकता है कि जैसे कबीर कहते थे – मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए। अर्थकाम के साईं आप हैं। आप ही बताएं कि कैसे हम आर्थिक व वित्तीय ज्ञान की इस समानांतर संस्था के बीज को पुष्पित-पल्लवित कर सकते हैं? आपका यह सिपाही, प्रहरी और शिक्षक आपकी सेवा में तैनात है।
आप अपनी बात मुझ तक ई-मेल से भेज सकते हैं। मेरा निजी ईमेल पता है – anil@arthkaam.com
मुझे आपके जवाब का बेसब्री से इंतजार है क्योंकि उन्हीं के आधार पर अगली दिशा का फैसला किया जाना है। धन्यवाद।
लगे रहिए सर मै डेलि पूरे इनबॉक्स में सबसे पहले आपका ही मेल पढ़ता हूँ। ऐसे सटीक जानकारी तो भास्कर ओर नवभारत टाइम में भी नहीं मिलती। निवेशकों तो बिना अपना हित सादे कोई भी समाचार पत्र इस तरह की जानकारी नहीं देता.
it’s very good blog for information Market ………….
Please do as done in original site, cni global but please remember your commitment about Hindi and Financial Education for share community as stated in article.
“.मुझे इसे न तो एनजीओ बनाकर सरकार या किसी दूसरे की कृपा का मोहताज बनाना है और न ही किसी ब्रोकर की तरह धंधा करना है। मैं तो एक निष्पक्ष शिक्षक की भूमिका में रहना चाहता हूं। “
अनिल जी, आपकी राय और प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। लेकिन आपके बहाने मैं दूसरे पाठकों को भी स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि CNI Global is NOT our original site…सीएनआई रिसर्च के साथ हमारा बस content का tie-up है जिसके तहत हम उनका चक्री कॉलम यहां छापते हैं जिससे आप सभी को बाजार की दिन भर की नब्ज पकड़ने में मदद मिल सकती है।
बाकी हम पूरी तरह 100% सीएनआई रिसर्च से स्वतंत्र हैं। अर्थकाम को हम व्यापक हिंदी समाज की जरूरतों से ऐसा जोड़ देना चाहते हैं कि उसे कहीं और झांकने की जरूरत ही न पड़े।
आप अपनी जानकारी के लिये चार्ज कर सकते है
पर जरूरी है कि आप बिना चार्ज वाला सेक्शन भी चालू रखें ताकि नये लोग आपकी जानकारी का निष्पक्ष विश्लेषण कर सके ।
चार्ज वाले सेक्शन में जरूरी है कि आप डिलिवरी बेस्ड लॉंग टर्म पर ज्यादा जोर दे
आपको अपने ज्ञान की कीमत लेने से झिझकना नहीं चाहिये
शुभकामनाओ सहित
roj maorning aur evening me aapka article padhti hun aur aap jesi jankari dete hai vo na to kisi news papaer ya koi aur site pe milti hai . keep it up……………….
Akela Hi Chala Tha Janibe Manjil Ki Or, Log Milte Gaye or Karnwa Banta Gaya
Great Effort Man
Sir app ke kaam ki sarahna shabdon mein karna mere liye bada kathin hai jab se arthkam ka link mujhko mila mere samajh mein aagaya ki abhi koi hai jo nisuwarth janta ki seva karta hai kaash aap jaise kucch aur log is desh mein hojate to is desh ko tarakki se koi rok nahi sakta kirpeya aap apna kaam sulk nisulk jari rakhiye
जीवन की अधेड़ आयु में हिंदी भाषा की ललक लगी थी और इस कारण सेवानिवृत्ति के पश्चात विदेश में बैठे भांति भांति की ऑनलाइन पत्रिकाएं पढ़ने का अवसर पा लेता हूं| अर्थकाम उन पत्रिकाओं में सर्वश्रेष्ठ है| यद्यपि मुझे आर्थिक और वित्तीय विषयों में कोई विशेष रूचि नहीं रही है तथापि हिंदी भाषियों के लाभार्थ आपके स्वच्छ व सच्चरित्र प्रयासों द्वारा प्रस्तुत अर्थकाम की मैं सदैव प्रशंसा करता हूं| आपके प्रयास से ही अर्थकाम आम भारतीय के लिए वित्तीय साक्षरता व वित्तीय सबलता की संस्था के रूप में विकसित हो पायेगा| जबकि हिंदी भाषा केवल साधारण बातचीत व मनोरंजन का माध्यम बनी है, आर्थिक व वित्तीय जैसे महत्वपूर्ण व गंभीर विषयों को हिंदी भाषा में प्रस्तुत करना कतई आसान नहीं है| यह केवल आपके मन की दृढ़ता और आपके बताये उद्देश्य में स्वयं आपका विश्वास है जो इस आर्थिक व वित्तीय ज्ञान के भंडार, अर्थकाम, को चिरकाल तक अचल अटल बना पायेगा| अर्थकाम की उपयोगिता और सफलता में मेरी सुभकामनाएँ आपके के साथ हैं|
aapki baat ka ant, duniya ke aant ke saath hi hona chahiye, usse pahile nahi
Anil such batau to aub mai apna sara investment aap ke ke article ko base bana ke kerta hu.
agar aap apna paid service suru kerna chahte hai to aap ko subhkamnae. wasie ye hona bhi chahea because bina paise/resources ke koi kitne din tik sakta hai.