सेबी के कार्यकारी निदेशक जे एन गुप्ता ने अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए गए एक इंटरव्यू में भारतीय पूंजी बाजार नियामक संस्था को अमेरिका जैसे विकसित पूंजी बाजार की नियामक संस्था से बेहतर बताया है। जब उनसे पूछा गया कि क्या सेबी का भारतीय बाजार पर अमेरिका के एसईसी (सिक्यूरिटीज एक्सचेंज कमीशन) की तुलना में ज्यादा नियंत्रण है तो उनका कहना था – यकीकन। श्री गुप्ता का कहना था कि सेबी ने तमाम ऐसे उपाय कर रखे हैं जो अमेरिका में नहीं हैं।
उन्होंने 6 मई 2010 को अमेरिकी शेयर बाजार में हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (एचएफटी) के कारण आई तीखी गिरावट के संदर्भ में कहा, “आपने देखा होगा कि 6 मई के बाद 10-15 मिनट में जो ऑर्डर पेश किए थे, उन्हें कैंसल कर दिया गया। हम भारत में इसकी इजाजत नहीं देते। जो ऑर्डर चला गया, उसे पूरा करना पड़ेगा। पिछले साल एक एफआईआई से बेचने का गलत बटन दबा दिया था तो उसको वह ऑर्डर पूरा करना पड़ा।”
बता दें कि जे एन गुप्ता सेबी में डेरिवेटिव मार्केट के प्रभारी हैं और उनका दो साल का कार्यकाल दो दिन बाद 8 जुलाई को खत्म हो रहा है। वे 9 जुलाई को 2009 में सेबी में आने से पहले तक कज़ाखस्तान की एक कमोडिटी ट्रेडिंग फर्म कज़्सट्रॉय सर्विस ग्रुप के सीएफओ थे। उन पर एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज को गलत सलाह देने का भी आरोप लग चुका है। वे सीएफए हैं और उन्होंने आईआईटी कानपुर ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी-टेक कर रखा है।
लेकिन एक म्यूचुअल फंड में शीर्ष पर रह चुके बाजार विशेषज्ञ ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि सेबी को एसईसी से बेहतर बताना गुप्ताजी का बड़बोड़ापन है। भारतीय बाजार तो अभी स्वीमिंग पूल जैसा भी नहीं बन पाया है, जबकि अमेरिकी पूंजी बाजार तो तालाब क्या, दुनिया की सबसे बड़ी झील है। इसलिए दोनों में कोई तुलना नहीं हो सकती है।
श्री गुप्ता ने रॉयटर्स को दिए गए इसी साक्षात्कार में बताया कि सेबी देश के दोनों प्रमुख स्टॉक एक्सचेंजों – बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में अंतर-परिचालन की इजाजत देने पर गौर कर रही है। ऐसा होने पर दोनों एक्सचेंजों की क्लियरिंग एक साथ हो सकती है जिससे ट्रेड करने की लागत घट जाएगी।
इस समय सौदे को उसी एक्सचेंज में क्लियर करना होता है जहां वह हुआ होता है। उनका कहना था कि, “इस समय एग्रीगेट क्लियरिंग संभव नहीं है क्योंकि दोनों एक्सचेंजों के क्लियरिंग कॉरपोरेशन अलग-अलग हैं। लेकिन सेबी दोनों क्लियरिंग कॉरपोरेशन के बीच अंतर-परिचालन (interoperability) की संभावना पर गौर कर रही है। वैसे, यह बहुत जल्दी नहीं होगा। इसमें दो से तीन साल लग जाएंगे।”
ऐसा होने से देश में हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग (एचएफटी) को बढ़ावा मिलेगा जो अभी बेहद शुरुआती अवस्था में है। बैंक और हेज फंड कंप्यूटर के अल्गोरिदम प्रोग्राम पर आधारित ऐसी ट्रेडिंग करते हैं। इसमें मार्जिन तो कम होता है, लेकिन वोल्यूम ज्यादा होने से कमाई अच्छी हो जाती है।
एचएफटी की काफी आलोचना इस बात को लेकर की जाती है कि इससे बाजार बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव का शिकार हो जाता है। अमेरिका के बाजार नियामक एसईसी ने 6 मई 2010 को चंद मिनटों में आई 600 अंकों की गिरावट के लिए एचएफटी को ही दोषी ठहराया था। सेबी के कार्यकारी निदेशक श्री गुप्ता ने कहा कि भारत में ऐसा कभी नहीं हो सकता क्योंकि यहां सर्किट ब्रेकर की व्यवस्था है और ज्यादा उतार-चढ़ाव आते ही ट्रेडिंग खुद-ब-खुद रुक जाती है। उन्होंने कहा, “अगर भारत में एचएफटी का चलन बढ़ता है तो संस्थागत निवेशकों की सक्रियता बढ़ेगी। इससे हो सकता है कि बीएसई में एचएफटी एनएसई के काफी करीब आ जाए। लेकिन इसके लिए बीएसई में तरलता और वोल्यूम को बढ़ाने की जरूरत होगी। साथ ही बीएसई व एनएसई के बीच के आपसी धंधे को बढ़ाना होगा।”