रिजर्व बैंक और बैंकिंग ओम्बड्समैन के दफ्तर को बराबर शिकायतें मिल रही हैं कि बैंक कुछ ऋणों व अग्रिम पर अनाप-शनाप ब्याज और शुल्क ले रहे हैं। बैंक आम ग्राहकों, किसानों व पेंशनभोगियों के साथ उचित बर्ताव नहीं करते। यह हालत तब है जब रिजर्व बैंक ने सालोंसाल से ग्राहकों के साथ उचित बर्ताव सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे उपाय कर रखे हैं। इसलिए अब रिजर्व बैंक ने एक कमिटी बनाने का फैसला किया है जो रिटेल व छोटे ग्राहकों के साथ ही पेंशनभोगियों को मिलनेवाली बैकिंग सेवाओं की समीक्षा करेगी। यह कमिटी बैंकों में शिकायत निवारण के तौर-तरीकों की परख करेगी। कमिटी अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के मद्देनजर जरूरी उपाय भी सुझाएगी।
यह घोषणा आज रिजर्व बैंक की सालाना मौद्रिक नीति में की गई है। कहा गया है कि ग्राहक सेवाओं पर रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के पालन के लिए बैंकों का ऑन-साइट और ऑफ-साइट इंस्पेक्शन किया जाएगा। साथ ही यह भी तय किया गया है कि बैंकों को हर छह महीने में कम से कम एक बार अपनी बोर्ड मीटिंग में अलग से ग्राहक सेवाओं की हालत पर विचार करना पड़ेगा।
रिजर्व बैंक गवर्नर डी सुब्बाराव की तरफ से जारी नीति वक्तव्य में कहा गया है कि ग्राहक के साथ सही बर्ताव का मुद्दा अब बहुत महत्वपूर्ण हो चला है। रिजर्व बैंक ने रिकवरी एजेंटों पर अंकुश, शाखाओं में डिस्प्ले बोर्ड, दृष्टिहीनों के लिए बैंकिंग सुविधाएं, आउटस्टेशन चेक के कलेक्शन पर सेवा शुल्क को तर्कसंगत बनाने और एटीएम के मुफ्त इस्तेमाल जैसे कई कदम उठाए हैं। जुलाई 2006 में ग्राहकों के प्रति सेवाभाव को लेकर बैंकों की आचार संहिता भी बनाई गई। लेकिन इसके बावजूद ग्राहकों को बैंकों से सही व उचित सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। किसानों से लेकर, छोटे ग्राहकों व पेंशनरों को विशेष समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन्हीं बातों को देखते हुए रिजर्व बैंक ने बैकों पर निगरानी बढ़ाने और उन्हें ग्राहकों के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए नए उपाय किए हैं।