एक 15 दिसंबर 2010 का दिन था जब सरकारी कंपनी मॉयल (पूरा पुराना नाम मैंगनीज ओर इंडिया लिमिटेड) की लिस्टिंग हुई थी और 375 रुपए पर जारी किया गया उसका शेयर पहले ही दिन 591.05 के शिखर पर जा बैठा था। उस दिन उन तमाम पंटरों के कपड़े उतर गए थे जो लिस्टिंग के पहले अनधिकृत बाजार में इन शेयरों को 200-250 रुपए में बेच रहे थे। और, एक कल 23 जून 2011 का दिन रहा, जब मॉयल का वही शेयर अपने इश्यू मूल्य से नीचे 320.50 रुपए तक चला गया जो अब तक का उसका न्यूनतम स्तर है। आज मॉयल के आईपीओ में निवेश करनेवाले 4.90 लाख से ज्यादा शेयरधारक सदमे में होंगे कि कंपनी के साथ छह महीनों में ऐसा क्या हो गया जो उसका शेयर शिखर से घाटी तक, आकाश से पाताल तक चला गया?
यकीन मानिए, इन छह महीनों में कंपनी के साथ ऐसा कुछ ही नहीं हुआ है जो उसकी साख का पैमाना इतना डूब जाए। बल्कि उसने महीने भर पहले 20 मई को अपने सालाना नतीजे घोषित किए हैं। इनके मुताबिक वित्त वर्ष 2010-11 में उसकी बिक्री 969.39 करोड़ रुपए से 17.60 फीसदी बढ़कर 1139.97 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 466.35 करोड़ रुपए से 26.10 फीसदी बढ़कर 588.06 करोड़ रुपए हो गया है। कंपनी ने 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर प्रति शेयर 4.50 रुपए का अंतिम लाभांश भी घोषित किया है। अगर 2.50 रुपए के अंतरिम लाभांश को जोड़ दें तो वित्त वर्ष 2010-11 के लिए कुल लाभांश 7 रुपए यानी 70 फीसदी हो जाता है।
आखिर कौन-से लोग हैं जिन्हें दिन के उजाले में भी कंपनी का यह निखरता रूप नहीं दिख रहा? वे असल में अंधे नहीं, वही पंटर हैं जिन्होंने छह महीने पहले कंपनी के आईपीओ की लिस्टिंग पर मुंह की खाई थी। वही लोग जुटे हैं इस स्टॉक को धूल चटाने में। दिक्कत यह है कि अपने यहां किन-किन लोगों ने इसे बेचा या खरीदा, इसका आंकड़ा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है। यूं तो विदेश में भी यह सार्वजनिक नहीं होता, लेकिन ठीकठाक फीस देकर मिल जाता है। एक्सचेंज को सब पता रहता है। चाहे तो सेबी एक फटकार से उनसे सारे आंकड़े ले सकती है। आखिर पता तो चले कि कौन-कौन से महानुभाव हैं जो इस सरकारी कंपनी के शेयरों को पीटकर नोट बना रहे हैं?
हम तो ऊपर-ऊपर के आंकड़ों को देखकर इतना ही बता सकते हैं कि कल 23 जून को तलहटी पर पहुंचने के दिन बीएसई में इसके 53,118 शेयरों में सौदे हुए जिसमें से 24,221 (45.60 फीसदी) डिलीवरी के लिए थे। इसी तरह एनएसई में ट्रेड हुए 1,30,601 शेयरों में से 48,875 (47.10 फीसदी) डिलीवरी के लिए थे। असल में कंपनी के शेयर को पीटने का सिलसिला जनवरी से ही चल रहा है। 20 मई को जब इसने नतीजे घोषित किए तो उस दिन शुक्रवार था और बाजार बंद हो चुका था। सोमवार, 23 मई को इसके शेयर दिन में 3.17 फीसदी बढ़े जरूर, लेकिन बंद हुए 0.06 फीसदी की हल्की गिरावट के साथ।
कहा जा रहा है कि कंपनी के सालाना नतीजे भले ही अच्छे रहे हों, लेकिन मार्च 2011 की तिमाही में उसकी बिक्री साल भर पहले की तुलना में 13.4 फीसदी घटकर 251.72 करोड़ और शुद्ध लाभ 8 फीसदी घटकर 132.35 करोड़ रुपए हो गया है। इसलिए उसको लेकर बाजार की धारणा खराब हो गई और उसका शेयर अब गिरते-गिरते 320.50 रुपए की तलहटी पर पहुंच गया है। हालांकि कल वह बीएसई (कोड – 533286) में 321.20 रुपए और एनएसई (कोड – MOIL) में 321.25 रुपए पर बंद हुआ है। कंपनी का सालाना ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 35 रुपए है।
इस तरह उसका शेयर इस वक्त 9.18 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है जिसे हर लिहाज से निवेश के लिए उत्तम माना जाएगा। लेकिन दूरगामी तौर पर। एक बात हमेशा ध्यान में रखिए कि शेयर बाजार में निवेश की मीयाद जैसे-जैसे आप बढ़ाते जाते हैं, आपका जोखिम वैसे-वैसे घटता जाता है। एक दिन में सबसे ज्यादा जोखिम। इसी हफ्ते एक दिन में जीटीएल का शेयर 62 फीसदी से ज्यादा टूटा है। लेकिन मीयाद अगर साल भर से ऊपर है तो इस तरह के नुकसान का जोखिम कम हो जाएगा। और, निवेश की मीयाद अगर 5-10 साल है तो शेयर आमतौर पर निवेश के किसी भी माध्यम से ज्यादा फायदा देकर ही जाते हैं। बशर्तें कंपनी मजबूत और टिकाऊ है।
मॉयल की मजबूती को लेकर निश्चिंत हुआ जा सकता है। देश में मैंगनीज ओर की सबसे बड़ी निर्माता है। मैंगनीज ओर की मांग तब तक रहेगी जब तक देश-दुनिया में स्टील बनता रहेगा क्योंकि यह लोहे को फौलाद बनाने का मुख्य अवयव है। कंपनी के पास इस समय दस खदानें हैं। छह महाराष्ट्र के नागपुर व भंडारा जिलों में और चार मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में। उसकी सालाना क्षमता 10,93,363 टन मैंगनीज ओर निकालने की है।
सरकार की मिनीरत्न कंपनी है। आईपीओ के बाद भी 168 करोड़ रुपए की पूंजी में 80 फीसदी हिस्सा सरकार का है। इतिहास बड़ा दिलचस्प है। 1896 में इसका गठन ब्रिटिश कंपनी सेंट्रल प्रोविन्स मैंगनीज ओर (सीपीएमओ) के रूप में किया गया था। आजादी के बाद 1962 में एक समझौते के तहत इसकी 51 फीसदी इक्विटी भारत सरकार व मध्य प्रदेश व महाराष्ट्रों की राज्य सरकारों ने मिलकर ले ली। बाकी 49 फीसदी इक्विटी ब्रिटिश कंपनी के पास ही बनी रही। 1977 में सरकार ने ब्रिटिश कंपनी की यह 49 फीसदी इक्विटी भी खरीद ली और मॉयल भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय के नियंत्रण में चलनेवाली कंपनी बन गई। इस समय केंद्र सरकार के पास इसकी 71.57 फीसदी, मध्य प्रदेश सरकार के पास 3.81 फीसदी और महाराष्ट्र सरकार के पास 4.62 फीसदी इक्विटी है।