केंद्र ने लोकपाल पर राज्य सरकारों को भेजा खत

एक तरफ लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए बनी संयुक्त समिति में बहस जारी है, दूसरी तऱफ केंद्र सरकार ने इससे जुड़े कई विवादास्पद मुद्ददों पर सीधे राज्‍य सरकारों और राजनीतिक दलों की राय मांग डाली है। इस सिलसिले में संयुक्‍त मसौदा समिति के अध्‍यक्ष वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की तरफ से एक खत भेजा गया है। मूल पत्र अंग्रेजी में है। सरकार की तरफ से किया गया उसका अनुवाद यहा पेंश है…

उच्‍च पदों पर भ्रष्‍टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल की नियुक्ति के मुद्दे पर भारत सरकार कुछ समय से विचार कर रही है। इस संदर्भ में विधायी विभाग ने 2010 में लोकपाल विधेयक का मसौदा तैायार किया था, जिसकी प्रति संलग्‍न है। इसके साथ ही नागरिक समाज के कुछ सदस्‍य लोकपाल की स्‍थापना की वकालत कर रहे हैं और उन्होंने भी विधेयक का मसौदा बनाया है।

आप जानते ही होंगे कि भारत सरकार ने अप्रैल 2011 में संयुक्‍त मसौदा समिति गठित की है, जिसकी अब तक पांच बैठकें हो चुकी हैं। हालांकि सरकार कुछ बुनियादी मुद्दों पर यह महसूस करती है कि लोकपाल विधेयक के मसौदे को  अंतिम रूप देने से पहले सभी हितधारकों के साथ परामर्श करना आवश्‍यक है। राज्‍य सरकार के मुख्‍यमंत्री के रूप में आप महत्‍वपूर्ण हितधारक हैं और हम इन महत्‍वपूर्ण मुद्दों पर आपके विचार जानना चाहेंगे:

1. नागरिक समाज के सदस्‍यों की मांग है कि केंद्र में लोकपाल और राज्‍य में लोकायुक्‍त के लिए एक ही कानून होना चाहिए। क्‍या आपकी राज्‍य सरकार लोकपाल के अनुरूप लोकायुक्‍त के लिए प्रावधान के मसौदे को स्‍वीकार करेगी?

2. क्‍या प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लाया जाना चाहिए? यदि जवाब हां में है तो क्‍या इसके लिए योग्‍यता समाविष्‍ट करनी चाहिए ( इस मामले में आप इसके लिए योग्‍यता का सुझाव भी दे सकते हैं)।

3. क्‍या सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट के न्‍यायाधीशों को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए?

4. क्‍या संसद के अंदर सांसदों के आचरण (सदन में बोलना या मत देना) को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए (फिलहाल ऐसी कार्रवाई को संविधान के अनुच्‍छेद 105 (2) के तहत कवर किया जाता है)?

5. क्‍या संघ की सिविल सेवा या अखिल भारतीय सेवा या राज्‍य की सिविल सेवा के सदस्‍य या संघ अथवा राज्‍य के तहत सिविल पद धारकों से संविधान के अनुच्‍छेद 311 और 320 (3) (सी) के तहत होने के बावजूद लोकपाल/लोकायुक्‍त जैसा भी मामला हो, के खिलाफ लोकपाल/लोकायुक्‍त द्वारा बर्खास्‍तगी/हटाने सहित  पूछताछ व अनुशासनिक कार्रवाई, जैसा भी मामला हो, की जा सकती है?

6. लोकपाल की परिभाषा क्‍या होनी चाहिए और क्‍या उसे अपने आप अर्द्ध-न्‍यायिक शक्तियों के इस्‍तेमाल का भी अधिकार होना चाहिए अथवा इन शक्तियों को अपने अधीनस्‍थ को देने का अधिकार होना चाहिए?

ऊपर बताए गए सभी मुद्दे बहुत महत्‍वपूर्ण हैं। इसलिए वे आनेवाले वर्षों में प्रशासन की संरचना का अतिक्रमण करेंगे और संभवत: संविधान के तहत बनाए गए ढांचे को प्रभावित करेंगे। इसलिए मैं इन मामलों पर आपके विचारों का लाभ उठाना चाहूंगा। जवाब को सरल बनाने के लिए मैंने प्रश्‍न संलग्‍न किए हैं जो आप उपयोगी पाएंगे।

संयुक्‍त मसौदा समिति को अपना कार्य 30 जून, 2011 तक पूरा करने को कहा गया है। इसलिए मैं आपसे उक्‍त मामलों पर जितना जल्‍दी संभव हो और वरीयता के रूप में 6 जून, 2011 तक जवाब देने का आग्रह करता हूं।

प्रश्‍नावली

प्रश्‍न विकल्‍प
1 क्‍या केंद्र में लोकपाल और राज्‍य में लोकायुक्‍त के लिए एक ही कानून होना चाहिए? नहीं 

हां

2 क्‍या प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लाया जाना चाहिए? नहीं 

हां

हां, लेकिन कुछ क्षेत्र शामिल न किए जाएं।

3 क्‍या सुप्रीम कोर्ट / हाई कोर्ट के न्‍यायाधीशों को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए? 

 

नहीं 

नहीं, लेकिन प्रस्‍तावित न्‍यायिक जवाबदेही एवं मानक विधेयक में जजों के दुराचार की जांच का प्रावधान किया जाना चाहिए।

हां

4 क्‍या संसद के अंदर सांसदों के आचरण (सदन में बोलना या मत देना) को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए? 

 

नहीं, क्‍योंकि संविधान का अनुच्‍छेद 105 (2) ऐसी पूछताछ को प्रतिबंधित करता है। 

हां, लेकिन तदनुसार संविधान में संशोधन किया जाए।

5 क्‍या लोकपाल को संघ की सिविल सेवा या अखिल भारतीय सेवा या राज्‍य की सिविल सेवा के सदस्‍य या संघ अथवा राज्‍य के तहत सिविल पद धारकों से पूछताछ करने और बर्खास्‍तगी/हटाने का अधिकार होना चाहिए? नहीं, क्‍योंकि 

संविधान का अनुच्‍छेद 311 कहता है कि ऐसे किसी व्‍यक्ति को उसके (जिसने उसे नियुक्‍त किया हो) अधीनस्‍थ प्राधिकार  द्वारा बर्खास्‍त/हटाया नहीं जा सकता। संविधान का अनुच्‍छेद 320 (3) (सी) कहता है कि यूपीएससी/राज्‍य पीएससी सिविल क्षमता में सरकार के तहत सेवा करने वाले व्‍यक्ति को प्रभावित करने वाले सभी अनुशासनिक मामलों पर विचार विमर्श करेगी।

हां, लेकिन तदनुसार संविधान में संशोधन किया जाए।

6 लोकपाल की परिभाषा क्‍या होनी चाहिए? लोकपाल बहु सदस्‍य निकाय होना चाहिए, जिसे सदस्‍यों के साथ या शाखाओं में (सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की तरह) अर्द्धन्‍यायिक अधिकार होंगे। 

लोकपाल बहु सदस्‍य  निकाय होना चाहिए जिसे कुछ अर्द्धन्‍यायिक अधिकार होंगे। लेकिन उसे अपने अधीनस्‍थ प्राधिकार (जैसे सीबीडीटी, सीबीईसी इत्‍यादि) को अपने अधिकार सौंपने का अधिकार होगा।

लोकपाल बहु सदस्‍य निकाय होगा जिसे कई स्‍तरीय अधिकारियों  पर सुपरवाइजरी अधिकारों का इस्‍तेमाल करने का अधिकार होगा जो अर्द्धन्‍यायिक अधिकारों का इस्‍तेमाल करेगा।

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