दुनिया की हथियार लॉबी बहुत पहले ही बेनकाब हो चुकी है। साफ हो चुका है कि अमेरिका से लेकर यूरोप तक में हथियारों के धंधे के लिए क्या-क्या करतब किए जाते हैं। लेकिन अब भारत में भी देशभक्ति, त्याग और बलिदान के पीछे सेना में चल रहा गोरखधंधा उजागर होता जा रहा है। और, इसका श्रेय जाता है दो महीने बाद 31 मई को रिटायर हो रहे थलसेना अध्यक्ष जनरल वी के सिंह को।
जनरल वी के सिंह पहले ही सेना में भ्रष्टाचार की एक झलक दिखा चुके हैं। वैसे, सेना के कुछ अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि जनरल सिंह भी कोई दूध के धुले नहीं है। अगर ऐसा होता तो वे सेना के सर्वोच्च पद तक पहुंचते ही नहीं। खैर, थलसेना अध्यक्ष जनरल सिंह ने शुक्रवार को दिल्ली में चल रहे डिफेंस एक्सपो के एक ऐसी बात कही जिससे कोई भी आम देशवासी चौंक सकता है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है और सत्ता तंत्र व सेना के लोग इसे बरसों से जानते हैं।
जनरल सिंह ने बताया कि आज भी भारतीय सेना के लिए 70 फीसदी उपकरण व साजोसामान विदेश से आयात होते हैं। उन्होंने कहा कि हमें गंभीरता से विचार करना होगा कि सेना की निर्भरता विदेश पर कैसे घटाई जाए और उसे किस तरह से आत्मनिर्भर बनाया जा सके। थलसेना प्रमुख का कहना था कि लक्ष्य केवल 30 फीसदी उपकरणों के आयात और बाकी 70 फीसदी को देश में ही बनाने का होना चाहिए।
इसी एक्सपो में हमारे रक्षा मंत्री ए के एंटनी भी इसी मुद्दे से रू-ब-रू थे। लेकिन उनका कहना था, “कुछ सालों पहले तक सेना द्वारा विदेश और घरेलू उद्योग से की गई खरीद का अनुपात 70: 30 का था। लेकिन अब यह घटते-घटते 60:40 पर आ चुका है।” एंटनी पहले खुद कई मंचों पर सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि सेना की विदेशी और देशी खरीद के अनुपात 70:30 से पलटकर 30:70 पर लाने की जरूरत है। लेकिन भारत जिस तरह चीन को भी पीछे छोड़कर दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक बन चुका है, उसमें दुनिया की हथियार लॉबी शायद उसे शायद यह लक्ष्य कभी हासिल ही नहीं करने देगी।
खैर, एंटनी और जनरल सिंह के आंकड़ों में भले ही थोड़ा फर्क हो। लेकिन दोनों का स्वर यही था कि रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाया जाना चाहिए। सेनाध्यक्ष का कहना था, “भारतीय सेना घरेलू उद्योग को प्रोत्साहन देने के बारे में प्रतिबद्ध है ताकि देश सैन्य साजो-सामान के बारे में आत्मनिर्भर हो और आयात पर निर्भरता घटे जो बाद में समस्याएं पैदा करने का कारण बनता है।”
बता दें कि नए वित्त वर्ष 2012-13 में देश का रक्षा बजट 17 फीसदी बढ़ाकर 1,93,007 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इसमें से 1,13,429 करोड़ रुपए का तो राजस्व खर्च है, यानी इतनी रकम वेतन, पेंशन और अन्य रूटीन मदों पर खर्च होगी। बाकी बचे 79,578 करोड़ रुपए रक्षा पर होनेवाले पूंजीगत खर्च के लिए हैं। यानी, इतनी रकम से हथियार व अन्य उपकरण खरीदे जाएंगे। जनरल सिंह की मानें तो इसका 70 फीसदी, यानी 55,705 करोड़ रुपए विदेशी खरीद पर चला जाएगा।
नोट करने की बात यह है कि बोफोर्स तोपों की खरीद से लेकर करगिल में कॉफिन की खरीद तक में घोटालों की बात सामने आ चुकी है। लेकिन अभी तक हम सभी रक्षा तंत्र को पवित्र गाय मानते आए हैं। लेकिन हमारे नेता, अफसर और दलाल कैसे इस गाय को दुह रहे हैं, यह हकीकत अब धीरे-धीरे बेपरदा हो रही है। यह देश के अच्छा है, अवाम के लिए अच्छा है। भले ही सत्ता में बैठे दलालों को यह कतई रास न आ रहा हो।