बैंकिंग व फाइनेंस की दुनिया बड़ी विचित्र होती है। इसी साल 24 फरवरी को देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन ओ पी भट्ट ने कहा था कि बैंक को अगले पांच सालों में लगभग 40,000 करोड़ रुपए जुटाने की जरूरत पड़ेगी। अब वही भट्ट साहब कह रहे हैं कि बैंक के पास 40,000 करोड़ रुपए का कैश इफरात पड़ा है जिसे बैंक कहीं लगा नहीं पा रहा है। कोई कह सकता है कि ये तो वही बात हुई कि गोद में लड़का और गांव में ढिंढोरा। जब खुद के पास इतने पैसे पड़े हैं तो इंतजाम करने की क्या जरूरत?
लेकिन आम सोच और बैंकिंग के धंधे में यही फर्क है। पहले 40,000 करोड़ रुपए एसबीआई को इसलिए चाहिए ताकि वह अपना व्यवसाय बढ़ा सके। मुख्यतया कर्ज देकर ब्याज कमाना ही बैंक का व्यवसाय है और इसके लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानक बने हुए हैं कि कितने व्यवसाय के लिए कितनी पूंजी होनी जरूरी है। बैंक कर्ज वितरण के रूप में अपना धंधा जितना बढ़ाता है उसी अनुपात में उसे अपनी पूंजी भी बढ़ानी होती है। यह तय होता है बेसल-2 मानक के पूंजी पर्याप्तता अनुपात या कैपिटल टू रिस्क (वेटेड) एसेट रेशियो से।
दूसरी तरफ जिस 40,000 करोड़ रुपए कैश के इफरात होने की बात की जा रही है वह लोगों की जमा से मिला धन है जिसे बैंक कहीं लगा नहीं पा रहा है। इस जमा पर उसे ब्याज तो देना ही पड़ रहा है, लेकिन न तो वह इसे कर्ज के रूप में दे पा रहा है और न ही और किसी माध्यम में निवेश कर पा रहा है क्योंकि सब कुछ पहले ही हाउसफुल हो चुका है। कर्ज की नई मांग नहीं निकल रही है। खैर, 2009-10 की चौथी तिमाही में यह समस्या कुछ हल्की हुई क्योंकि तीसरी तिमाही के अंत में तो उसके पास 75,000 करोड़ रुपए का कैश बेकार पड़ा हुआ था।
शुक्रवार को एसबीआई के चेयरमैन ओ पी भट्ट ने बैंक के सालाना नतीजों की घोषणा करते हुए कोलकाता में कहा कि 40,000 करोड़ रुपए की नकदी अधिक होने से बैंक के लाभ पर ऋणात्मक असर पड़ रहा है। उनका कहना था कि बैंक का कामकाज हर मोर्चे पर शानदार रहा है। लेकिन अतिरिक्त तरलता या लिक्विडिटी की अपनी छिपी हुई लागत होती है जो बैंक को उठानी पड़ रही है। इसलिए एसबीआई जून-जुलाई तक डिपॉजिट जुटाने की गति धीमी रखेगा।
वित्त वर्ष 2009-10 में एसबीआई का कुल बिजनेस 1,54,983 करोड़ रुपए बढ़ गया है। बैंक के बिजनेस का मतलब उसकी कुल जमा और कर्ज का जोड़ होता है। बिजनेस में हुई 1,54,983 करोड़ रुपए की वृद्धि में से 62,043 करोड़ रुपए जमा से आए हैं, जबकि 92,940 करोड़ रुपए दिए गए अग्रिम या कर्ज के हैं। गौर करने की बात यह है कि 2009-10 में बैंक के पास बचत खाते की जमा औसतन हर महीने 4897 करोड़ रुपए बढ़ी है। पूरे साल में कासा (चालू व बचत खाता) की रकम में 73,168 करोड़ रुपए का इजाफा हुआ है। उसकी कुल जमा में कासा का योगदान मार्च 2009 में 39.29 फीसदी था, जो मार्च 2010 तक बढ़कर 46.67 फीसदी हो गया है। यानी बैंक के पास सबसे सस्ते फंड का हिस्सा करीब 740 आधार अंक (7.4 फीसदी) बढ़ गया है।