अपने यहां 20,000 रुपए की सीमा बड़ी चमत्कारिक है। उसे छूते ही कालाधन सफेद हो जाता है। अभी तक राजनीतिक पार्टियां चंदे की ज्यादातर रकम को इससे कम बताकर काले को सफेद करती रही हैं। अब सहाराश्री ने भी यही रास्ता अपना लिया है। सहारा समूह की दो कंपनियों की तरफ से जुटाए गए 24,000 करोड़ रुपए को लौटाने के बारे में पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी के चेयरमैन यू के सिन्हा ने अविश्वास जताया तो सहारा की तरफ से बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर 20,000 रुपए की महिमा जता दी गई।
गुरुवार को सहारा की तरफ से कहा गया कि, “उसकी जिन दो कंपनियों (सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन) पर निवेशकों के 24,000 करोड़ रुपए बकाया होने की बात कही जा रही है, वह सरासर गलत है। पांच महीनों के भीतर निवेशकों के 20,000 करोड़ रुपए लौटाए जा चुके हैं। इन कंपनियों के ओएफसीडी (ऑप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) इश्यू में कुल 3.07 करोड़ निवेशकों ने धन लगाया था। इनमें से 2.99 करोड़ निवेशकों की तरफ से लगाई गई रकम 20,000 रुपए से कम है। चूंकि इतनी रकम चेक से देनी जरूरी नहीं है और सहारा के बहुत-से निवेशकों के पास बैंक खाते नहीं हैं, इसलिए उन्हें उनकी रकम ब्याज-समेत नकद लौटा दी गई।”
सहारा का दावा है कि उन्होंने पूरी तरह कानून का पालन किया है। ओएफसीडी के 1.33 निवेशकों ने 5000 रुपए तक, 88 लाख निवेशकों से 10,000 रुपए तक, 42 लाख निवेशकों ने 15,000 रुपए तक और 36 लाख निवेशकों ने 20,000 रुपए तक का निवेश किया है। इन सारे 2.99 करोड़ निवेशकों का धन उसने मय-ब्याज लौटा दिया है। बाकी 8 लाख निवेशकों के करीब 3664 करोड़ रुपए बचते हैं जिसके लिए सेबी के पास 5120 करोड़ रुपए जमा कराए जा चुके हैं। दूसरे शब्दों में सहारा ने अपना सारा हिसाब-किताब दुरुस्त बताकर सेबी को अव्यवहारिक, नासमझ और बदले की भावना से प्रेरित बता दिया है।
हमारी सरकार और राजनीतिक पार्टियों का भी यही हाल है। निर्वाचन आयोग का प्रस्ताव है कि राजनीतिक पार्टियों की तरफ से अनिवार्य रूप से दाखिल किए जानेवाले फार्म 24-ए में यह शर्त लगा दी जाए कि उन्हें हर चंदे का स्रोत बताना होगा और 20,000 रुपए की सीमा हटा दी जाए। अभी तक राजनीतिक पार्टियों को 20,000 रुपए से ज्यादा चंदा देनेवालों का ही नाम-पता बताना पड़ता है। निर्वाचन आयोग का कहना है कि 20,000 रुपए की सीमा केवल नियम बदलकर हटाई जा सकती है। लेकिन कानून मंत्रालय ने इसमें अडंगा डाल दिया और कहा कि इसके लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन करना पड़ेगा। इसलिए पहले इस पर विधि आयोग की राय लेनी जरूरी है। इस बहाने कानून मंत्रालय ने निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव को विधि आयोग के पास भेजकर ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
मालूम हो कि कांग्रेस से लेकर बीजेपी, बीएसपी, समाजवादी पार्टी, तेलुगूदेशम और यहां तक कि कम्युनिस्ट पार्टियां तक बहुत सारा चंदा 20,000 रुपए से कम का बताकर उसका स्रोत छिपा ले जाती है। कुछ महीने पहले ही स्वयंसेवी संस्था, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने राजनीतिक पार्टियों की तरफ से दाखिल आयकर रिटर्न और उनके चंदे पर विस्तृत रिपोर्ट निकाली थी। इसके अनुसार 2009-10 और 2010-11 में कांग्रेस की कुल आय 774.65 करोड़ रुपए रही। लेकिन इसमें से 88.11 फीसदी धन का स्रोत उनके यह कहते हुए नहीं बताया कि या तो इसे कूपन बेचकर कमाया गया या चंदे की रकम 20,000 रुपए से कम थी।
इन्हीं सालों के दौरान बीजेपी की कमाई 426.02 करोड़ रुपए थी जिसमें से 77.24 फीसदी का स्रोत अज्ञात था। कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम की आय 149.85 करोड़ रुपए थी, जिसमें से 98.61 फीसदी धन का स्रोत 20,000 रुपए से कम के चंदे को बताया गया था। मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की आय 172.68 करोड़ रुपए थी। लेकिन उसका कहना था कि वह गरीबों की पार्टी है तो सारा का सारा धन 20,000 रुपए से कम के चंदे का है। मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने तो मात्र 43.32 करोड़ रुपए की आय दिखाई और इसका स्रोत नहीं बताया। चंदे के बारे में दो सबसे ज्यादा ईमानदार पार्टियां रही हैं – रामबिलास पासवान की लोक जनशक्ति (89.88 फीसदी रकम घोषित स्रोतों से) और के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (99.98 फीसदी घोषित स्रोतों से)।
20,000 रुपए की सीमा खत्म होते ही राजनीतिक पार्टियों के धन के स्रोत खुल जाएंगे और सहारा को सारी रकम चेक से देनी होगी। सहारा के ऊपर आरोप लगता रहा है कि वह नेताओं व नौकरशाहों के काले धन को सफेद करने का माध्यम है। लेकिन 20,000 रुपए की मौजूदा सीमा उसके इतने काम आई कि उसने इसके माध्यम से सारे बेनामी निवेश गांवों-कस्बों के ऐसे आम लोगों के नाम कर दिए, जिनका पता ठिकाना सेबी क्या, उसके दादा-परदादा भी कभी नहीं ढूंढ पाएंगे क्योंकि जो हैं ही नहीं, उन्हें कोई कैसे ढूढ सकता है?
आम आदमी पार्टी को छोड़कर सब के सब यही कर रहे हैं। आइये हमसब मिलकर अरविन्द के हाथ मज़बूत करें ताकि राजनीति के आयामों को पुनः परिभािषत िकया जा सके।