भारत में भले ही अब भी एस्बेस्टस का इस्तेमाल घरों से लेकर कारखानों तक में धड़ल्ले से हो रहा हो, लेकिन दुनिया में इसे मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है। इतना कि इटली में एस्बेस्टस का कारोबार करनेवाले दो लोगों को अदालत ने 16 साल कैद की सजा सुनाई है। यह पर्यावरण संबंधी मामले में अपनी तरह की पहली सजा है।
यह मामला 1986 का है। अदालत ने सोमवार को सुनाए गए ऐतिहासिक फैसले में एटरनिट कंपनी के स्विस मालिक स्टीफन श्मिडहाइनी और बेल्जियम के शेयरधारक व पूर्व सीईओ ज्यां लुइस मारी गिशलैन डी कार्टियर को दोषी ठहराया है। उसका कहना है कि कंपनी के एस्बेस्टस संयंत्रों में काम करने वालों के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम नहीं होने के कारण करीब 2000 लोगों की मौत हो गई। एटरनिट ने 1986 में ही इटली में अपना कारोबार बंद कर दिया था। इसके छह साल बाद वहां एस्बेस्टस के इस्तेमाल पर पाबंदी लग गई। अदालत ने दोनों दोषियों को यह भी आदेश दिया है कि वे 6000 से ज्यादा पीड़ित लोगों को आठ करोड़ यूरो (10.5 करोड़ डॉलर) का मुआवजा दें।
इटली की एक स्थानीय अदालत का यह फैसला दुनिया भर में कार्यस्थल पर सुरक्षा की मिसाल बन सकता है। एटरनिट के एस्बेस्टस संयंत्र 1986 में ही बंद किए जा चुके हैं। दोनों आरोपियों ने अपना दोष मानने से इनकार किया है। वे फैसले के वक्त अदालत में मौजूद नहीं थे। उनके वकील का कहना है कि वे इसके खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेंगे।
दोषियों पर आरोप है कि उन्होंने सीमेंट फाइबर बनाने वाले अपने संयंत्र में कर्मचारियों की सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा। सरकारी वकील ने कहा कि इसकी वजह से 2000 लोगों की मौत हो गई। इनमें से ज्यादातर लोग एस्बेस्टस की वजह से कैंसर के शिकार हो गए थे। इसके अलावा पिछले चार दशक में कई लोगों को ट्यूमर सहित दूसरी गंभीर बीमारियां हुई, जिसकी वजह से उनकी जान चली गई।
जहां तक कर्मचारियों की सुरक्षा का सवाल है, यह दुनिया का सबसे बड़ा मुकदमा है। इटली की मीडिया ने कहा है कि अदालत में इतने ज्यादा लोग आ गए थे कि उन्हें जगह देने के लिए तीन कोर्ट रूमों को खाली कराया गया। यह मुकदमा 2009 में शुरू हुआ था। इसका आखिरी फैसला सुनाने में जज को तीन घंटे लग गए। इटली के स्वास्थ्य मंत्री रेनाटो बालडुजी ने इसे ऐतिहासिक घटना बताते हुए कहा कि एस्बेस्टस का इस्तेमाल सिर्फ स्थानीय या राष्ट्रीय समस्या नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समस्या है।
बता दें कि आमतौर पर एस्बेस्टस का इस्तेमाल छतों की जगह या किसी कमरे को सर्दी-गर्मी से बचाने के लिए किया जाता हो। लेकिन जांच से पता चला कि यह तमाम बीमारी की जड़ है। पश्चिमी देशों में इस पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। लेकिन भारत जैसे देशों में अभी भी एस्बेस्टस का खूब प्रयोग हो रहा है। एस्बेस्टस के फाइबर अगर सांस के जरिए शरीर में चले जाएं तो इससे फेफड़ों में जलन और कैंसर तक की बीमारी हो सकती है।