न रक्षा मंत्रालय ने इसकी मांग की, न कोई उद्योग संगठन इस हद तक गया। फिर भी हमारे वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय ने प्रस्ताव पेश कर दिया कि क्यों न रक्षा उत्पादन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 फीसदी के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 74 फीसदी कर दी जाए। तर्क यह है कि हम आज भी अपना 70 फीसदी रक्षा साजोसामान विदेश से आयात करते हैं। 74 फीसदी एफडीआई से यही उत्पादन देश में होने लगेगा और देश की सेनाओं के लिए नए साजोसामान की बढ़ती जरूरतों को पूरा कर लिया जाएगा।
वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा का कहना है कि यह महज बहस पत्र है ताकि पब्लिक के बीच इस पर चर्चा हो सके और कोई भी फैसला व्यापक सहमति व रक्षा मंत्रालय की स्वीकृति के बाद ही लिया जाएगा। असल में किसी भी तरह की राजनीतिक लॉबीइंग का अंदाज यही होता है। पहले वे जनता की राय भांपने की कोशिश करते हैं। जनता से उत्साह या एकदम ठंडी प्रतिक्रिया दिखाई तो उनका खेल हो जाता है और लॉबियां फौरन अपने फैसले सरकारों से पास करवा लेती हैं।
बता दें कि दुनिया में हथियारों की लॉबी सबसे मजबूत है। भारत रक्षा खर्च के मामले में दुनिया के दस बड़े देशों में शुमार है। केवल इस साल 2010-11 में ही हमार रक्षा बजट 1,47,344 करोड़ रुपए का है। दुनिया की हथियार लॉबी चाहती है कि इसका बड़ा हिस्सा उसके नियंत्रण में आ जाए। इसलिए जनता के आक्रोश का जोखिम उठाते हुए भी उसने वाणिज्य मंत्री के जरिए रक्षा उत्पादन में 74 फीसदी एफडीआई का प्रस्ताव पेश करवाया है। हालांकि इसे वाणिज्य मंत्रालय के औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग (डीआईपीपो) ने जारी किया है।
गौरतलब है कि देश के दो प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई और फिक्की भी इस सीमा तक नहीं गए हैं और उन्होंने रक्षा उत्पादन में एफडीआई की सीमा 26 से बढ़ाकर अधिकतम 49 फीसदी करने की मांग की है ताकि उसका नियंत्रण भारतीयों के हाथ में रहे। सीआईआई ने इसी 9 मई को अपना सुझाव सार्वजनिक किया है। लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि यह नूरा कुश्ती भी हो सकती है कि एक तरफ 49 फीसदी की बात करो, दूसरी तरफ 74 फीसदी की और फिर बीच में कोई सहमति निकल आएगी। असल में सीआईआई के बीच अमेरिका की न्यूक्लियर व हथियार लॉबी की गहरी पैठ बताई जाती है।
वैसे, इस मुद्दे पर लॉबीइंग का खेल बड़े दिलचस्प तरीके से सामने आया है। पहले 2 मई को वाणिज्य व उद्योग मामलों की संसद की स्थाई समिति से कहलवाया गया कि रक्षा उत्पादन इकाइयों में 26 फीसदी की मौजूदा एफडीआई सीमा को बढ़ाने की जरूरत है। इस समिति के अध्यक्ष, हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री व बीजेपी नेता शांता कुमार ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा बढ़नी चाहिए। औद्योगिक नीति संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) तो पहले से इसकी तैयारी कर चुका था। शांता कुमार के बयान के बाद कहा गया कि वाह, क्या बात है बीजेपी के तो विचार डीआईपीपी के विचार से मिलते हैं। इससे माहौल बनाने के लिए रक्षा राज्यमंत्री एमएम पल्लम राजू ने 28 अप्रैल को राज्यसभा में बयान दिया कि रक्षा उत्पादन क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआई की मंजूरी देने की कोई योजना सरकार की नहीं है।
इसके बाद कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) 9 मई को धीरे से एंट्री लेती है और एक विज्ञप्ति जारी कर कहती है कि रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा को 26 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी नहीं किया जाना चाहिए। हा, इसे 49 फीसदी जरूर किया जा सकता है। अब माहौल बनने लगा था की वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा जी ने 9 पन्नो का बहस पत्र जारी करवा दिया और कहा कि 74 फीसदी एफडीआई से रक्षा उपकरणों की हमारी तकनीक के उन्नयन में मदद मिलेगी। ल़ॉबीइंग के इस खेल में मेजर जनरल एल एम अरोड़ा जैसे पूर्व सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं जिनका कहना है कि 74 फीसदी एफडीआई कर देने से विदेशी कंपनियां उच्च स्तर की तकनीक भारत में लाएंगी।