मिहिर शर्मा एक नौकरीपेशा शख्स हैं। कुछ साल पहले तक महीने की तनख्वाह 35 हजार रुपये थी। अब यही कोई 65 हजार पाते हैं। पहले कैश सेगमेंट में सीधे कंपनी के शेयर खरीदते थे, डिलीवरी लेते थे। मौका पाने पर बेचकर हजार-दो हजार की कमाई कर लेते थे। जनवरी 2008 के बाद अपने ढाई लाख के निवेश पर करीब डेढ़ लाख का घाटा खाने के बाद उन्होंने रणनीति बदल दी है। अब वे सीधे कंपनी के शेयरों में नहीं, उनकी छाया या डेरिवेटिव या फ्यूचर में पैसे लगाते हैं। और अच्छा कमा लेते हैं। वे बताते हैं कि एक तो इन फ्चूयर सौदों में ब्रोकरेज बहुत मामूली होता है। दूसर, पूरा दाम चुकाने के बजाय आप 10 से 30 फीसदी के मार्जिन पर सौदा कर सकते हैं। उन्होंने इसे आगे समझाया। मान लीजिए आईटीसी के फ्यूचर में 10 हजार रुपये लगाए। अब इसमें आप एक लाख रुपये तक के सौदे कर सकते हैं। यानी फायदा-नुकसान एक लाख रुपये पर तय होगा। जबकि आपने निवेश सिर्फ 10 हजार रुपये का किया है। एक लाख पर 5000 का फायदा महज 5 फीसदी होता है। लेकिन निवेश किए गए 10 हजार का यह 50 फीसदी हो जाता है।
मिहिर शर्मा को बाजार से लेकर अर्थव्यस्था तक की अच्छी समझ है। अनुभवी हैं। इसलिए वे चांदी काट रहे हैं। आम निवेशक भी मिहिर शर्मा की तरह बाजार से फायदा उठा सकते हैं। पर इसके लिए जुआ खेलने की मानसिकता से निकलना होगा। आम निवेशक ठोस जानकारी के आधार पर शेयर बाजार के फ्यूचर्स व ऑप्शंस (एफ एंड ओ) सेगमेंट में पैसा लगाएं, तो ज्यादा कमाई कर सकते हैं। पर ये कभी न भूलें, जहां कमाई ज्यादा होगी, वहां जोखिम भी ज्यादा होगा। इसलिए लालच में नहीं, बल्कि अपनी जोखिम उठाने की क्षमता का सही आकलन करने के बाद ही डेरिवेटिव सौदों में उतरना चाहिए।
इस समय डेरिवेटिव सौदे बड़े निवेशकों की पहली पसंद बन गए हैं। इसीलिए शेयर बाजार के रोजाना के टर्नओवर में एफ एंड ओ का हिस्सा काफी ज्यादा होता है। एनएसई में डेरिवेटिव सौदों का टर्नओवर कैश सेगमेंट में हुए सौदे से लगभग चार गुना ज्यादा रहता है। हालांकि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में अब भी कैश सेगमेंट का बोलबाला है। लेकिन कुल कारोबार में वह एनएसई से काफी पीछे छूट गया है।
सवाल उठता है कि क्या डेरिवेटिव सौदे बेहद अनुभवी, बड़े और विशेषज्ञ निवेशकों या कारोबारियों के लिए ही हैं? यह सच है कि फ्यूचर्स और ऑप्शंस जैसे डेरिवेटिव का मूल्य निर्धारण काफी जटिल गणितीय मॉडलों के हिसाब से होता है, लेकिन इसकी बुनियादी धारणा आसानी से समझी जा सकती है। असल में इनमें सारा खेल जोखिम को नांथने का है। हर डेरिवेटिव से जुड़ा कोई आधार होता है, जिसकी हलचल इसे प्रभावित करती है। जैसे शेयर बाजार में मामले में यह या तो किसी कंपनी का शेयर होता है या बीएसई व एनएसई का कोई सूचकांक। शेयर और डेरिवेटिव (फ्यूचर्स, आप्शंस) में अंतर यह है कि जहां शेयर एक एसेट यानी आस्ति होता है, वहीं डेरिवेटिव प्रपत्र एक कांट्रैक्ट या अनुबंध होता है। जो आम निवेशक शेयर में निवेश करने का जोखिम उठाते हैं, वे अगर समझ जाएं तो शेयरों में निवेश के जोखिम को कम करने के लिए डेरिवेटिव सौदे भी कर सकते हैं।
शेयर बाजार के बार में माना जाता है कि ये आज की नहीं, आगे की संभावना को ध्यान में रखकर चलता है। लेकिन डेरिवेटिव सौदे तो होते ही भविष्य के हैं। इसमें भी सबसे आसान होता है फॉरवर्ड कांट्रैक्ट। इसे आसानी से हम यूं समझ सकते हैं कि मान लीजिए आपको एक टीवी खरीदना है। और उसकी कीमत 20,000 रुपये है, लेकिन आपके पास अभी इतने पैसे नहीं हैं। पर तीन महीने बाद आपको इतनी रकम मिलनेवाली है। उस रकम से आप आसानी से टीवी खरीद सकते हैं। इसके साथ ही आपको ये अंदेशा है कि इन तीन महीनों में टीवी के दाम बढ़कर 22,000 रुपये हो सकते हैं। इन हालात में आप टीवी दुकानदार से फॉरवर्ड कांट्रैक्ट करते हैं। यानी तीन महीने बाद आप उसे कैश देंगे और टीवी खरीद लेंगे। तीन महीने बाद आज की दर पर आपको टीवी मिल जाएगा। हो सकता है इस दौरान टीवी के दाम बढ गए हों, तब आपको अपने फैसले पर तसल्ली होगी। लेकिन दाम घट गए तो अफसोस होगा। अब टीवी की जगह इन्फोसिस का शेयर ले लेते हैं और सौदा करते हैं उसके फ्यूचर का। इसमें इन्फोसिस के शेयर का दाम जितना बढ़ता-घटता है, निवेशक को उसके फ्यूचर में उसी अनुपात में नफा-नुकसान होता है। अगर 1000 रुपये बढ़ा तो इतने का फायदा। 800 रुपये घटा को इतने का घाटा। लेकिन इसके फ्यूचर सौदे से आप उसके भविष्य की चाल को अभी से आंक कर चलते हैं।
फ्यूचर सौदे पूर दाम पर नहीं, मार्जिन पर होते हैं। बहुत से कारोबारी या निवेशक कैश सेगमेंट में खरीदे गए शेयरों के जोखिम को कम करने के लिए उन्हीं शेयरों के फ्यूचर सौदे कर लेते हैं। इसे कारोबार की भाषा में हेजिंग कहा जाता है। इसे यूं समझते हैं कि मान लीजिए मोहन-सोहन से करार करता है कि वो छह महीने बाद उसे 10 ड्रेस 4000 रुपये में बेचेगा। मोहन की लागत केवल 1000 रुपये है और उसे इस सौदे से 3000 रुपये का फायदा होगा। लेकिन मोहन को अंदेशा है कि सोहन छह महीने बाद इस सौदे से मुकर सकता है। इसलिए वो अनुबंध में ये शर्त जोड़ देता है कि अगर सोहन सौदे को पूरा नहीं करता है तो उसे 1000 रुपये की पेनाल्टी देनी पड़ेगी और करता है तो मोहन उसे 1000 रुपये का डिस्काउंट दे देगा। अब कुल मिलाकर स्थिति यह होगी कि अगर सोहन करार पूरा नहीं करता तो वो मोहन को 1000 रुपये अदा करगा, जिससे मोहन की 1000 रुपये की लागत निकल आएगी। और, अगर वो सौदा पूरा करता है तो मोहन को 3000 के बजाय 2000 रुपये का पक्का फायदा हो जाएगा। इस तरह मोहन ने फायदे का हिस्सा घटाकर नुकसान न सहने की गारंटी कर ली। यही होती है हेजिंग।
शेयरों के निवेश में भी डेरिवेटिव सौदे इस तरह की हेजिंग का काम करते हैं। इन सौदों से कंपनी से जुड़े जोखिम के साथ ही पूर बाजार से जुड़े जोखिम को कम किया जाता है। बाजार के जोखिम को पकड़ने के लिए सूचकांक आधारित फ्यूचर हैं। बीएसई में सबसे प्रमुख है उसका सेंसेक्स आधारित फ्यूचर तो एनएसई में निफ्टी, मिनी निफ्टी और बैंक निफ्टी इंडेक्स के फ्यूचर जमकर चलते हैं।
अंत में एक सावधानी की बात। गहर पानी में उतरे बिना मोती नहीं मिलेंगे। लेकिन उससे पहले तैरने का अभ्यास कर लेना जरूरी है। इसी तरह फ्यूचर ट्रेडिंग में उतरने से पहले बीएसई और एमएसई की वेबसाइटों पर इन सौदों पर बराबर नजर रखने की जरूरत है। एफ एंड ओ सेगमेंट में देखना पड़ेगा कि वहां शेयरों के दाम और उनके फ्यूचर के दाम कैसे चल रहे हैं। इंडेक्स फ्यूचर की चाल का पूरा ग्राफ दिमाग में बैठाना होगा। जब भरोसा हो जाए कि अब खेल कर सकते हैं तभी इसकी शुरुआत करनी चाहिए। हर कोई शुरुआत में ही मिहिर शर्मा नहीं बन सकता। हां, एक बात और। एक समूह की ही कंपनियों में फ्यूचर सौदे होते हैं, इसलिए उनकी बुनियादी मजबूती को लेकर पहले से ही आश्वस्त रहा जा सकता है।
महोदय,
आप का बहुत धन्यवाद। मुझे फ्यूचर एन्ड आप्शन बात समझ आया। इससे सम्बंधित और जानकारियां देने की कृपा करें।
धन्यवाद
गुड्डू प्रजापति
delhi
सर मै तो अभी LKG मे हु.बस आपका साथ मिलता रहे.!
Sir namaste f&o me suruwat karma chata hu kuch batayen
Thanks sir f&o kai bare batane kai liye
Very useful information on do trade for new comer as well existing investors. After all it depends on one’s luck also.
Very useful information on future option trade for new comer as well existing investors. After all it depends on one’s luck also.
F&o me expiry par kya use renew kar sakte he.
वाओ सर! में आपके द्वारा बताये गए ज्ञान से बहुत हि सहमत हु. आप future में भी ऐसी जानकारी हमें देते रहेंगे बहुत जायदा option के साथ ऐसी हमारी कमाना हे1
सर आपको future एंड options की जानकारी सरल अर्थ में हम जैसे पठको को देने के धन्यवाद.
sir , mujai Reliance Industries ka option lena hai .aap mujai example kai sathai samja saktai hai.
लेख बहुत अच्छा और उपयोगी है।
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ऑप्शन में भी फ्यूचर जैसा लॉट फिक्स होता है या कितना भी लगा सकते है मिनिमम कितना पेमेंट चाहिए ऑप्शन के लिए