अब यह किसी अटकल या सूत्रों के हवाले मिली खबर की बात नहीं है। यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी (यूलिप) की गड़बड़ियों और उस पर अधिकार पर साफ-सफाई के लिए पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई है। भारत के एटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवती के कार्यालय ने इसकी पुष्टि कर दी है और यह भी कहा है कि सेबी की याचिका पर सुनवाई खुद देश के चीफ जस्टिस के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ करेगी। पहली सुनवाई आज ही होनी है। लेकिन इसमें किसी भी फैसले पर पहुंचने की उम्मीद है। जानकारों के मुताबिक फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की तरफ से यही कहा जाएगा कि कोई फैसला होने तक यथास्थिति बनाए रखी जाए। इसका मतलब यह हुआ कि जिन 14 जीवन बीमा कंपनियों को सेबी ने कोई भी नया यूलिप प्लान लाने से रोक रखा है, वे सेबी में बिना रजिस्ट्रेशन कराए आगे नहीं बढ़ सकतीं।
असल में सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने का फैसला काफी सोच-विचार कर किया है। पहले बुधवार को सेबी चेयरमैन सी बी भावे ने अपने कानूनी सलाहकार से राय लेने के बाद बीमा क्षेत्र की नियामक संस्था, आईआरडीए को एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया कि सिविल प्रोसीजर कोड (सीपीएस) के अनुच्छेद 90 के तहत यूलिप विवाद को सुलझाने के लिए एक साथ मिलकर हाईकोर्ट में जाना कानूनन संभव नहीं है। यह अनुच्छेद व्यापक जनहित वाले मुद्दों पर नियामकों या कानून के उलझाव से ताल्लुक रखता है। असल में 12 अप्रैल को वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि दोनों नियामकों को यह विवाद एक साथ मिलकर किसी उपयुक्त कानूनी फोरम पर हल करना चाहिए।
सेबी चेयरमैन भावे का ताजा पत्र मिलने के बाद आईआरडीए के चेयरमैन जे हरिनारायण ने हैदराबाद में कहा कि सीपीसी के अनुच्छेद 90 के तहत साझा आवेदन किया जा सकता था। लेकिन सेबी ऐसा नहीं कर रही है। असल में सेबी ने किया यह है कि यूलिप विवाद पर बॉम्बे हाईकोर्ट में अपने खिलाफ और इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में आईआरडीए व बीमा कंपनियों के खिलाफ दायर याचिकाओं को एक साथ मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ले जाने की अर्जी लगाई है।
बता दें कि इस समय मुंबई के बोरीवली इलाके में रहनेवाले राजेंद्र ठक्कर नाम के एक बिजनेसमैन ने बॉम्बे हाईकोर्ट मे सेबी के उस आदेश के खिलाफ पीआईएल (जनहित यातिका) दाखिल कर रखी है जिसमें उसने बीमा कंपनियों को नई यूलिप बेचने से रोक दिया है। इस पर 15, 22 और 29 अप्रैल को सुनवाई होनी थी। इसमें से एक बार सुनवाई टाल दी गई और दो तारीखों पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इस बीच मामले की सुनवाई कर रहे जज अनिल रमेश दवे सुप्रीम कोर्ट के जज बना दिए गए हैं।
दूसरी याचिका ध्रुव कुमार नाम के एक वकील और बीमा व्यवसायी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में 22 अप्रैल को दायर की है। इसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि बीमा एजेंट यूलिप को गलत तरीके से बेचते हैं और कुछ बीमा कंपनियां मल्टी-लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) के जरिए अपनी पॉलिसियां बेच रही हैं। इस तरीके में होता यह है कि बीमा पॉलिसी का ग्राहक नए ग्राहक को पॉलिसी बेचता है और उसके कमीशन का एक हिस्सा उसे मिलता है। जैसे, मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ ने एमवे के साथ मिलकर ऐसी यूलिप पॉलिसियां बेच रही है।
सेबी ने इन दोनों याचिकाओ पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आग्रह किया है। उसने अपनी याचिका में आईआरडीए के साथ भी भारत सरकार को भी प्रतिवादी बनाया है। उसने सुप्रीम कोर्ट से यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि यूलिप आखिर किसके अधिकार क्षेत्र में आता है उसके या आईआरडीए के। साथ ही उसने मांग की है कि कोर्ट आईआरडीए को निर्देश दे कि एमएलएम के जरिए बेची गई पॉलिसियों का प्रीमियम ग्राहकों को वापस लौटाया जाए।