मानसून इस साल सामान्य रहेगा। यह बता रहा है मौसम विभाग। उसी की मानें तो इस बार झमाझम बारिश होगी। लेकिन इस ताजा भविष्यवाणी पर सोच-समझकर यकीन करिएगा। पिछले साल इसी वक्त आई मौसम विभाग की ऐसी ही भविष्यवाणी भीषण सूखे में तब्दील हो गई थी।
मौसम विभाग की भविष्यवाणी में तमाम गणनाओं के आधार पर बताया गया है कि इस बार जून से लेकर सितंबर तक पूरे देश में मानसून सामान्य रहेगा। यह अनुमान 2010 में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की प्रगति के बारे में है। मौसम विभाग ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि मानसून सीजन में 98 फीसदी औसत बारिश का अनुमान है। इसमें 5 फीसदी ऊपर-नीचे हो सकता है। लंबी अवधि की औसत बारिश का आंकड़ा 1941 से 1990 की अवधि के हिसाब से 89 सेंटीमीटर का है।
मौसम विभाग जून 2010 में अपने इस पूर्वानुमान में संशोधन करेगा। मानसून को लेकर की गई इस साल और पिछले के पहले पूर्वानुमान में कोई खास अंतर नहीं है। पिछले साल 96 फीसदी बारिश के अनुमान थे, जबकि इस साल 98 फीसदी का अनुमान लगाया गया है।
भूमध्य रेखीय प्रशांत महासागर के ऊपर मानसून के पहले चरण में अल निनो के मजबूत बने रहने और फिर कमजोर होने का अनुमान लगया गया है। अल निनो से समुद्री सतह के तापमान की गणना की जाती है। इसकी मजबूती से बारिश जहां कम हो सकती है, वहीं इसके कमजोर होने से मानसून अच्छा रह सकता है। कुछ ऐसी ही बातें पिछले साल के पूर्वानुमान में कही गई हैं।
मौसम विभाग का यह दीर्घावधि अनुमान है, जिसके मुताबिक दक्षिण-पश्चिम मानसून के बादल जून से सितंबर तक देश भर में सक्रिय रहेंगे। मानसून को लेकर आई पहली भविष्यवाणी से सरकार ने राहत की सांस ली है क्योंकि पिछले साल बरसात 23 फीसदी कम हुई। जरूरत के समय जबर्दस्त सूखा और जब बारिश की जरुरत नहीं थी, तब उत्तर से लेकर दक्षिण तक जलमग्न होता रहा।
सूखे के चलते 60 लाख हेक्टेयर धान के खेत खाली रह गए और खरीफ पैदावार में एक करोड़ टन से अधिक की कमी दर्ज की गई थी। नतीजतन खाद्य वस्तुओं में मंहगाई आज तक सिर चढ़कर बोल रही है।
वैसे, मौसम विभाग के ताजा अनुमान से देश के किसान तो खुश होंगे ही क्योंकि अब भी 65 फीसदी खेती बर्षा पर आधारित है, साथ ही उद्योग जगत भी चहकने लगेगा। पिछले साल सूखे की वजह से खरीफ की फसल को भारी नुकसान पहुंचा था। अरहर जैसी फसलें भी प्रभावित हुई थी। बारिश औसत से 30 फीसदी कम हुई थी। लेकिन इस बार का अऩुमान ऐसा नहीं कहता।
अच्छे मानसून से उद्योग जगत काफी खुश होगा क्योंकि ऐसा न होने पर कम से कम किसानों के बीच उसका उपभोक्ता आधार घट जाता है। दूसरे शहरी उपभोक्ता भी अनाजों के महंगा हो जाने के कारण दूसरी चीजों पर कम खर्च कर पाता है। इससे उर्वरक जैसे कई उद्योग तो सीधे प्रभावित होते हैं। कृषि का योगदान दुरुस्त रहने से पूरी अर्थव्यवस्था की हालत भी बेहतर हो जाती है। वैसे, सामान्य मानसून के आधार पर रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2010-11 में जीडीपी की विकास दर 8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है।
आज शाम देश की सबसे बड़ी निजी कंपनी रिलायंस के नतीजे भी आ गए हैं और कंपनी का कारोबार दो लाख करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गय है। ऐसे में आसार यही हैं कि सोमवार को शेयर बाजार खुलेगा तो आलम तेजी का ही रहेगा।
Aapne satya kaha, Mausam vibhag ki bhavishwani par yakeen karana aisa desh mein bhrashtachaar khatm karne ke Sarkar Ke daave par yakeen karne jaisa misadventure hai jo kabhi sahi nahi hota. Ye log sirf atkarbaazi ke aadhar par report jaari karte hain kyonki maloom hai agar galat nikli to koi kya kar lega