जीएम बैगन नहीं, अब ट्रांसजेनिक चिकन का लुत्फ

जनाब! जीएम बैगन को छोडि़ए। आइए अब ट्रांसजेनिक चिकन का लुत्फ उठाइए। चिकन के साथ मछली का भी स्वाद लीजिए। देश में पहली बार वैज्ञानिकों ने विभिन्न जीव जंतुओं के जीन को मुर्गे व मुर्गी में डालकर प्रयोग किया, जिसमें पहली सफलता मछली के जीन वाली मुर्गी को मिली। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे चिकन की उत्पादकता बहुत अधिक बढ़ जाएगी। साथ ही इस ट्रांसजेनिक चिकन में एक नायाब किस्म का प्रोटीन मिलेगा, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जीएम चिकन के विकसित कर लेने से मिली सफलता से अब भेड़, बकरी और अन्य पशुओं की ट्रांसजेनिक प्रजाति विकसित करने की उम्मीद बढ़ गई है। साथ ही इससे बर्ड फ्लू की बीमारी को रोकने में सफलता मिलेगी। वैज्ञानिकों का दावा है कि कैंसर व एड्स जैसे रोगों से लड़ने वाले जीनों को भी इसमे डाला जा सकता है।

हैदराबाद के पोल्ट्री निदेशालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर टी. के. भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वैज्ञानिकों की टीम ने कम अवधि में अत्यधिक उत्पादकता मुर्गी विकसित करने में सफलता प्राप्त की है। इस विधि में मछली की एक खास प्रजाति के जीन को मुर्गी में डाल दिया गया। फिलहाल यह सफलता प्रयोगशाला के स्तर पर मिल गई है, जल्दी ही इस प्रौद्योगिकी को व्यावसायिक उत्पादन के लिए जारी कर दिया जाएगा।

जेली फिश के ग्रीन फ्लोरोसेंट प्रोटीन जीन के माध्यम से ही ट्रांसजेनिक चिकन विकसित करने में कामयाबी मिल पाई है। जेलीफिश की चमकार भी मुर्गे की पंख को मिल गई है। इस खास जीन को पहले मुर्गे में डाला गया, जिसे उसके वीर्य का प्रयोग मुर्गियों में किया गया। इसके बाद इन मुर्गियों के 263 अंडों से जो चूजे निकले, उनमें से 16 ट्रांसजेनिक पाए गए। इन रंगीन पंख वाले ट्रांसजेनिक चिकन की नियंत्रित वातावरण में जांच पूरी की गई।

अपनी इस ईजाद से बेहद उत्साहित वैज्ञानिकों की मानें तो ट्रांसजेनिक चिकन से पोल्ट्री क्षेत्र में क्रांति आ जाएगी। इसमें मिलने वाला प्रोटीन मानव व पशु दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगा। जल्दी ही इस प्रौद्योगिकी को लोगों के उपयोग के लायक बना दिया जाएगा। (रिपोर्टः एस पी सिंह)

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