कभी स्टरलाइट समूह की कंपनी मद्रास एल्युमीनियम की सब्सिडियरी रह चुकी इंडिया फॉयल इस समय इनसाइडर ट्रेडिंग के फेरे में पड़ी हुई है। यह कंपनी बीआईएफआर के हवाले किए जाने के बाद डीलिस्ट हो गई थी। जब यह बीआईएफआर के दायरे से बाहर निकली तो एस डी (ESS DEE) एल्युमीनियम ने इसका अधिग्रहण कर लिया। हालांकि बीआईएफआर से बाहर निकलने में उसे लंबा वक्त लग गया। इसके बाद इंडिया फॉयल में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी बढ़कर 89 फीसदी तक जा पहुंची।
इस साल 12 जनवरी को इंडिया फॉयल ने घोषणा की कि एस डी एल्युमीनियम में उसके विलय को बीआईएफआर की मंजूरी मिल गई है। उसका शेयर 14 जनवरी को 20 रुपए तक चला गया, जबकि 8 जनवरी को उसका भाव 15.60 रुपए था। 15 जनवरी को एस डी एल्यूमीनियम ने बाजार में इंडिया फॉयल के दो लाख तीन हजार शेयर बेच डाले, जबकि एस डी एल्युमीनियम की तरफ से मई 2009 में बीआईएफआर के पास सौंपी गई विलय की संशोधित स्कीम पर अमल की प्रक्रिया अभी जारी है। इसी बीच एस डी ने 4 फरवरी को ऐलान किया कि उसकी ईजीएम (असाधारण आमसभा) 25 फरवरी को होगी जिसमें विलय और शेयरों का अनुपात तय किया जाएगा।
इस दौरान हुआ यह कि इंडिया फॉयल का जो शेयर 14 जनवरी को 20 रुपए पर था, वह 17 फरवरी को 10.44 रुपए पर आ गया जहां उस पर लोअर सर्किट ब्रेकर लग गया। संयोग से यह तब हुआ जब प्रवर्तक खुले बाजार में अपनी हिस्सेदारी बेच रहे थे। ध्यान दें, प्रवर्तक विलय की पूरी जानकारी होने के बावजूद अपनी 89 फीसदी हिस्सेदारी खाली कर रहे थे जो सेबी के इनसाइडर ट्रेडिंग नियमों का उल्लंघन है।
इस खेल का गौरतलब पहलू यह है कि विलय की सूचना, उसका ब्यौरा और शेयरों का अनुपात इंडिया फॉयल के शेयरधारकों को नहीं बताया गया है। ऐसे में जाहिर है कि प्रवर्तकों ने शेयरों को अपने हिसाब से नचाया है ताकि वे मुनाफा बटोर सकें। यह इंडिया फॉयल के छोटे व रिटेल निवेशकों के लिए साथ किया गया छल है।
इस मामले में इंडिया फॉयल की प्रवर्तक एस डी एल्युमीनियम के खिलाफ जांच होनी चाहिए और बीआईएफआर से भी पूछा जाना चाहिए कि उसने किन हालात में विलय की मंजूरी दी थी। यहां यह तथ्य गौर करने लायक है कि बाजार नियामक सेबी ने हमेशा शेयर भावों के साथ किए गए खिलवाड़ की जांच की है और दोषियों को दंडित किया है। लेकिन यह अभी तक का पहला ऐसा मामला है जिसमें प्रवर्तकों ने इनसाइडर ट्रेडिंग की है जिसके बाद कंपनी के शेयरों में तीखी गिरावट आई है। सवाल उठता है कि क्या सेबी खुद अपनी पहल पर एस डी एल्युमीनियम और सभी संबंधित पक्षों द्वारा किए गए सौदों की जांच करेगा या तब तक इंतजार करेगा जब तक कोई निवेशक शिकायत दर्ज नहीं कराता?