पूंजी बाजार नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने जस्टिस डीपी वाधवा समिति की रिपोर्ट पर अमल के लिए एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर दिया है। रिटायर्ड मुख्य आयकर आयुक्त और सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक विजय रंजन को यह जिम्मा सौंपा गया है। यह मामला साल 2003 से 2005 के बीच आए 21 आईपीओ (प्रारंभिक सार्वजनिक ऑफर) का है, जिसमें हजारों बेनामी डीमैट खाते खुलवाकर रिटेल निवेशकों के हिस्से के शेयर हासिल कर लिए गए थे और स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्टिंग होते ही इन शेयरों को बेचकर मोटी कमाई की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश डीपी वाधवा की अध्यक्षता में बनी सेबी की पांच सदस्यीय समिति ने इसी 30 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। सेबी इस आईपीओ घोटाले में शामिल कुछ प्रमुख धंधेबाजों और फाइनेंसरों के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर चुका है और उन पर जुर्माना लगाने व उनसे गलत तरीके से कमाई गई रकम को वसूलने का काम जारी है। इस समय भी दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही चल रही है।
बता दें कि वाधवा समिति ने कहा है कि घोटालेबाजों द्वारा गलत तरीके से कमाए गए 95.69 करोड़ रुपए उनसे वसूल कर प्रभावित निवेशकों को लौटाए जाने चाहिए। डिपॉजिटरी संस्थाओं एनएसडीएल और सीडीएसएल में रखे इन घोटालेबाजों के जब्त शेयरों का मूल्य 147.85 करोड़ रुपए है जबकि सीबीआई द्वारा इनके जब्त खातों में 1.20 करोड़ रुपए पड़े हुए हैं। साल 2003 से 2005 के दौरान जिन 21 कंपनियों के आईपीओ में घोटाला हुआ था, उनमें जेट एयरवेज, एनटीपीसी, आईडीएफसी, टीसीएल, यस बैंक, गोकलदास एक्पपोर्ट्स आईएलएफएस इनवेस्टमार्ट, सुजलॉन एनर्जी और शॉपर्स स्टॉप शामिल हैं।
इन घोटाले के बेपरदा होने की शुरुआत 10 अक्टूबर 2005 को हुई जब आयकर विभाग ने पुरुषोत्तम बुधवानी नाम के एक बिजनेसमैन पर छापा मारा और पाया कि उसके पास 5000 से ज्यादा डीमैट खाते हैं। सेबी को पता चला तो वह चौंक गया। उसने जांच शुरू कर दी और 15 दिसंबर 2005 को उसने अपनी जांच के नतीजे घोषित किए। इससे पता चला कि कुछ लोगों ने यस बैंक के आईपीओ में भारी मात्रा में शेयर हासिल कर लिए हैं। इंडियाबुल्स सिक्यूरिटीज से जुड़ी अहमदाबाद की रूपलबेन पांचाल को इस घोटाले का मास्टरमाइंड माना गया है। जांच से पता चला कि उनके हाथ में करीब 15,000 डीमैट खातों का संचालन है। उन्होंने यस बैंक के शेयरों की फाइनेंसिंग भारत ओवरसीज बैंक की तमाम शाखाओं से करवाई थी।
जांच आगे बढ़ने पर पता चला कि आईडीएफसी का आईपीओ भी इस तरह के घोटाले का शिकार हुआ है। सेबी ने 2003 से 2005 के दौरान आए 105 आईपीओ की जांच की और पाया कि 21 आईपीओ में आम निवेशकों के हिस्से के शेयर कुछ धंधेबाजों ने गलत तरीके से हासिल किए हैं। इसमें हुआ यह था कि फर्जी डीमैट खाते में शेयर आते ही उन्हें फाइनेंसर को ट्रांसफर कर दिया गया जिसने आईपीओ से अधिक मूल्य पर लिस्टिंग होते ही इन्हें बेचकर कमाई कर ली। अगर वे आम निवेशकों के नाम का सहारा नहीं लेते तो इन धंधंबाजों को आईपीओ में शेयर मिल ही नहीं सकते थे।
घोटाले की कुछ बानगी पेश है। सुजलॉन एनर्जी का आईपीओ 1496.34 करोड़ रुपए का था। इसमें खिलाड़ियों ने 21,692 फर्जी डीमैट खाते खुलवाकर 3,23,023 शेयर हासिल कर लिए जो रिटेल व्यक्तिगत निवेशकों को आवंटित कुल शेयरों का 3.74 फीसदी है। जेट एयरवेज का आईपीओ 1899.3 करोड़ रुपए का था। इसमें उस्तादों ने 1186 फर्जी डीमैट खाते खुलवाकर 20,901 शेयर हासिल कर लिए जो रिटेल व्यक्तिगत निवेशकों को आवंटित कुल शेयरों का 0.52 फीसदी है। इसी तरह एनटीपीसी का आईपीओ 5368.14 करोड़ रुपए का था। धंधेबाजों ने 12,853 फर्जी डीमैट खाते खुलवाकर इसके 27,50,730 शेयर हासिल कर लिए जो रिटेल व्यक्तिगत निवेशकों को आवंटित कुल शेयरों का 1.3 फीसदी है। टीसीएस का 4713.47 करोड़ रुपए का आईपीओ भी इनके हाथ से नहीं बचा। इसमें 14,619 बेनामी डीमैट खाते खुलवाकर 2,61,294 शेयर हासिल कर लिए गए जो आईपीओ में रिटेल निवेशकों को आवंटित कुल शेयरों का 2.09 फीसदी है।
असल में 2005 में सेबी ने आईपीओ में रिटेल निवेशकों की श्रेणी में हर आवेदक को आनुपातिक आवंटन का नियम बना रखा था। एक लाख रुपए से उससे कम निवेश करनेवालों को रिटेल निवेशक माना गया था। इस नियम का ही फायदा उठाकर एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स) ने धंधेबाजों का सहारा लेकर भारी कमाई की है। आम निवेशकों के नाम से शेयर आवंटित करवाए और फिर इन शेयरों को अपने खाते में ट्रांसफर करवा लिया। इसमें डिपॉजिटरी संस्था एनएसडीएल की भूमिका पर भी सवाल उठे थे। उस वक्त सेबी के वर्तमान चेयरमैन सीबी भावे ही एनएसडीएल के प्रमुख हुआ करते थे। लेकिन सेबी ने अब एनएसडीएल को इस मामले में पाक-साफ करार दिया है।
अब वाधवा समिति का कहना है कि इन आईपीओ में जिन आवेदकों को कोई शेयर नहीं मिल पाए थे, उन्हें घोटालेबाजों से हासिल रकम इस तरह समान रूप से बांटी जाए जिससे आईपीओ में न्यूनतम आवंटन की भरपाई हो जाए। इसके बाद बची रकम आंशिक आवंटन पानेवाले निवेशकों को दी जानी चाहिए। जानकारों के मुताबिक इस पर अमल बेहद मुश्किल है और सेबी का यह शगूफा सिर्फ छिछली वाहवाही लूटने का काम करेगा।