कथनी विकसित देश की, करनी कंगाल!

देश महज नारों से नहीं चलता। हकीकत देश के सबसे ताकतवर शख्सियत प्रधानमंत्री की भी नहीं सुनती। ऐसा होता तो भारतीय अर्थव्यवस्था अभी 3.5 ट्रिलियन नहीं, 5 ट्रिलियन डॉलर की बन चुकी होती, किसानों की आय दो साल पहले 2022 में ही दोगुनी हो चुकी होती और देश में पिछले दस सालों में 20 करोड़ नए रोज़गार पैदा हो चुके होते। इसलिए भारत को 2047 तक विकसित देश बना देने के नारे की हकीकत हमें समझनी होगी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पिछले सौ सालों में दुनिया के केवल चार देश ही छलांग लगाकर विकसित बने हैं। जापान 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के शुरू में, ताइवान व दक्षिण कोरिया 20वीं सदी के मध्य में और चीन 1990 के दशक में। इन देशों ने ज़मीनी स्तर पर सालों-साल तक बेहद संजीदगी से आर्थिक संरचना को बदलने का काम किया, बिना किसी नारेबाज़ी व शोर-शराबे के। कमियों को सुधारा, छिपाया नहीं। हर स्तर पर संस्थाओं को पुख्ता और जवाबदेह बनाया। अपने यहां बड़ा कार्यभार यह है कि कृषि को जीवन-यापन के चक्र से निकालकर लाभप्रद बनाना होगा। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर को बराबर दहाई अंकों में लाना होगा। साथ ही देश को व्यापार घाटे से निकालकर मसाला व बासमती नहीं, बल्कि मूल्य-वर्धित उत्पादों के दम पर व्यापार सरप्लस में लाना होगा। क्या इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए शुरुआती कदम भी अब तक उठाए गए हैं? अब मंगलवार की दृष्टि…

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