वोल्टैम्प ट्रांसफॉर्मर्स लिमिटेड (बीएसई – 532757, एनएसई – VOLTAMP) नाम के अनुरूप बिजली के ट्रांसफॉर्मर बनाती है, अलग-अलग तरह के। 1967 से इसी काम में लगी है। वडोदरा (गुजरात) में उसकी फैक्टरी है। जर्मनी की दो कंपनियों मोरा और एचटीटी के साथ उसका तकनीकी गठबंधन है। कंपनी सरकारी व अर्ध-सरकारी परियोजनाओं, राज्य बिजली बोर्डों, रिफाइनरी, उर्वरक संयंत्र, फार्मा, स्टील, कागज व सीमेंट जैसे उद्योगों को अपने उत्पाद बेचती है। एबीबी, सीमेंस व एल एंड टी जैसी इंजीनियरिंग व कंस्ट्रक्शन कंपनियां सीधे उससे ट्रांसफॉर्मर खरीदती हैं।
कंपनी के प्रवर्तक ललित कुमार पटेल हैं जो इंजीनियर हैं और इससे पहले सीमेंस और भारत बिजली जैसी कंपनियों में काम कर चुके हैं। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (शुद्ध लाभ प्रति शेयर) 58.58 रुपए है। शेयर कल बीएसई में बंद हुआ है 572.65 रुपए है। इस तरह वह मात्र 9.78 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इस शेयर की बुक वैल्यू ही 522.76 रुपए है। लेकिन कल 14 मार्च 2011 को ही उसने 570.70 रुपए की तलहटी पकड़ी है जो 52 हफ्तों का इसका न्यूनतम स्तर है। 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 1135 रुपए है जो इसने 24 अगस्त 2010 को हासिल किया था। कंपनी शेयरधारकों का पूरा ख्याल रखती है। पिछले तीन सालों से वह 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 12.50 रुपए यानी 125 फीसदी लाभांश देती रही है।
फिर भी निवेशकों को इसमें क्यों इतना रोना प़ड़ रहा है क्योंकि करीब सात महीनों में उनकी आधी पूंजी गल चुकी है। आखिर ठीकठाक कंपनी का स्टॉक क्यों इतना नीचे पहुंच चुका है? कोई गारंटी नहीं कि यह और भी नीचे न चला जाए। ऐसा क्यों होता है? 9 मार्च को जीएनएफसी ने 96.60 रुपए का 52 हफ्ते का न्यूनतम स्तर बनाया था जो अगले दिन हमने इस पर लिखा। कंपनी अच्छी-खासी है, मजबूत है। लेकिन बढ़ने के बजाय उसके शेयर ने कल 14 मार्च को 92.30 रुपए का नया न्यूनतम स्तर बना लिया।
व्याख्याएं बहुत सारी हो सकती हैं। लेकिन काश, हमारे पास पब्लिक डोमेन में सभी खरीदने-बेचनेवालों का ब्यौरा होता तो हम समझ सकते थे कि इस गिरावट के पीछे क्या है, कौन है। स्टॉक एक्सचेंज के पास यह सारा डाटा होता है। सेबी जब चाहे यह सारा डाटा हासिल कर सकती है। क्या यह उसका काम नहीं है कि बाजार को स्वस्थ बनाने के लिए वह इन विकृतियों की तह में जाए और इस पर लगाम लगाए? अमेरिका में यह डाटा किसी को भी मिल सकता है। हां, इसके लिए थोड़ा ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। हमारे यहां भी कुछ तो सिस्टम होना चाहिए ताकि अच्छी-खासी कंपनियों के पिटने का सबब सबको पता चल सके। इसी से बाजार का सही मायने में विकास होगा। नहीं तो यह चंद ऑपरेटरों, धंधेबाजों और देशी-विदेशी संस्थाओं का क्लब ही बना रह जाएगा।
वोल्टैम्फ ट्रांसफॉर्मर्स के स्टॉक के गिरने की जो वजह सतह पर नजर आती है, वह यह है कि उसने 14 फरवरी 2011 को दिसंबर 2010 की तिमाही के नतीजे घोषित किए। इस तिमाही में उसकी शुद्ध बिक्री 133.64 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 12.79 करोड़ रुपए रहा है, जबकि साल भर पहले दिसंबर 2009 की तिमाही में उसकी शुद्ध बिक्री 144.46 करोड़ और शुद्ध लाभ 24.08 करोड़ रुपए था। इस तरह जहां कंपनी की बिक्री 7.5 फीसदी घटी है, वहीं उसका शुद्ध लाभ 46.9 फीसदी की भारी गिरावट का शिकार हो गया है। लेकिन 14 फरवरी को नतीजों की घोषणा के बाद तो यह शेयर 18 फरवरी को 667.60 रुपए तक चला गया था! उसके बाद क्यों गिरने लगा, नहीं मालूम।
हालांकि अगर चालू वित्त वर्ष की बात करें तो कंपनी का शुद्ध लाभ मार्जिन (एनपीएम) दिसंबर 2010 की तिमाही में सबसे बेहतर है। जून की तिमाही में उसका एनपीएम 8.97 फीसदी था, सितंबर में 7.49 फीसदी पर आ गया, जबकि दिसंबर तिमाही में यह 9.57 फीसदी रहा है। इसलिए देखनेवाले पर है कि वह गिलास को आधा भरा देखे या आधा खाली। कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2009-10 में 541.97 करोड़ रुपए की बिक्री पर 82.53 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। बात सीधी-सी है कि देश में इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ बिजली का तंत्र बढ़ना तय है और इसी के साथ ट्रांसफॉर्मरों की खपत भी बढ़नी है। इसलिए वोल्टैम्प ट्रांसफॉर्मर्स का भविष्य अच्छा व सुरक्षित ही लगता है।
कंपनी की कुल इक्विटी 10.12 करोड़ रुपए है। इसका 53.95 फीसदी पब्लिक और बाकी 46.05 फीसदी प्रवर्तकों के पास है। पब्लिक में से एफआईआई के पास इसके 26.61 फीसदी शेयर हैं और उन्होंने दिसंबर तिमाही में कंपनी में अपना निवेश बढ़ाया है क्योंकि सितंबर तिमाही में उनकी हिस्सेदारी 22.78 फीसदी ही थी। कंपनी में डीआईआई (घरेलू निवेशक संस्थाओं) ने 8.23 फीसदी पूंजी लगा रखी है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 18,856 है। उसके बड़े शेयरधारकों में नालंदा इंडिया फंड (9.79 फीसदी), सिटीग्रुप ग्लोबल (7.94 फीसदी), रिलायंस कैपिटल ट्रस्टी कंपनी (5.43 फीसदी) और आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ (3.77 फीसदी) शामिल हैं।