मोहभंग तो आजादी मिलने के साल भर बाद ही शुरू हो गया था, जब 1948 में अली सरदार जाफरी ने लिखा था कि कौन आज़ाद हुआ, किसके माथे से स्याही छूटी, मेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी का, मादरे हिन्द के चेहरे पे उदासी है वही। लेकिन वो मोहभंग आज़ादी के 78 साल बाद करोड़ों भारतवासियों के दिलों का नासूर बन गया है। सोचिए, इस माटी में जन्मे और आबोहवा में पले-पढ़े 17,10,890 लोग 2014 से 2024 तक के दस सालों में भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेश में बस गए हैं। ट्रम्प के तेवरों के बावजूद हज़ारों अमीर भारतीय 50 लाख डॉलर में गोल्डन ट्रम्प कार्ड खरीदकर अमेरिका में बसने को आतुर हैं। देश में किसानों, नौजवानों व कामगारों की हालत परकटे पक्षी जैसी है। हमारे 85% किसानों के पास डेढ़ एकड़ से कम ज़मीन है। खेती घाटे का सौदा है। कारखानों में पक्की नौकरी मिल जाए तो वे सब बेचकर निकल जाएंगे। नौजवान सामाजिक सुरक्षा की लालच में सरकारी नौकरियों के पीछे भागते हैं। लेकिन सरकारी तंत्र में लाखों नौकरियां खाली हैं। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र कृषि से भी धीमी रफ्तार से बढ़ रहा है तो कामगार जाएं कहां? भविष्य सुधारने अमेरिका गए 682 भारतीयों को हथकड़ी-बेड़ी लगा अमृतसर में लाकर फेंक दिया गया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मन नहीं हुआ कि जनधन के ही ₹8400 करोड़ से खरीदे अपने प्लेन भेजकर उन्हें ससम्मान देश वापस ले आते। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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