दशकों में पहली बार ऐसा हो रहा है कि मुद्रास्फीति भारत ही नहीं, अमेरिका व यूरोप समेत तमाम विकसित देशों तक के सिर चढ़कर बोल रही है। ऐसे में इन देशों के केंद्रीय बैंकों की पहली प्राथमिकता बन गई है कि सिस्टम में डाले गए नोट वापस खींचो और ब्याज दरें बढ़ा दो। लेकिन इधर खिंचते जा रहे रूस-यूक्रेन युद्ध ने सप्लाई में दिक्कतें पैदा कर दी और महंगाई बढ़ाने का नया आधार बना दिया। अमेरिका ने महंगाई रोकने के अब तक जो उपाय किए, वे सब फिलहाल काम नहीं कर रहे। इसका साफ असर वहां के शेयर बाज़ार पर दिख रहा है। और, आप जानते ही है कि इस मामले में अमेरिका छींकता है तो भारत को जुकाम हो जाता है। सवाल उठता है कि भारतीय शेयर बाज़ार कब इस नरम-गरम से बाहर निकलेगा? अब शुक्रवार का अभ्यास…
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