दुनिया भर में चरम पर पहुंचती मुद्रास्फीति ने सरकारों को ही नहीं, इन्वेस्टमेंट बैंकरो, वित्तीय बाजार के ट्रेडरों और केंद्रीय बैंकरों तक को परेशान कर रखा है। इसमें भी सबसे खतरनाक है खाद्य मुद्रास्फीति का बेहिसाब बढ़ने जाना। खाना-पीना एक ऐसी चीज़ है जिसमें मुद्रास्फीति से उसकी मांग या खपत नहीं घटती। बेहद गरीब लोगों को छोड़ दें तो बाकी लोग खाने-पीने में कटौती नहीं कर पाते। इस पर बढ़े खर्च की भरपाई वे अन्य चीजों की खपत में कटौती से करते हैं। इससे अन्य माल व सेवाओं की खपत घट जाती है जिसका असर तमाम उद्योगों और अंततः वित्तीय बाज़ारों पर पड़ता है। सवाल उठता है कि खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति कब और कहां से शुरू हुई और कैसे और कब तक इससे छुटकारा पाया जा सकता है? अब सोमवार का व्योम…
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