अगर आपने घर की वायरिंग के लिए बिजली के केबल खरीदें होंगे तो कंगारू के नीचे वी-गार्ड लिखे हुए ब्रांड को शायद जरूर पहचानते होंगे। वी-गार्ड इंडस्ट्रीज दक्षिण भारत की कंपनी है। उसकी पुरानी फैक्टरी केरल में है। लेकिन उसने साल भर पहले ही उत्तराखंड में नई फैक्टरी लगाई है। वह वोल्टेज स्टैबलाइजर से लेकर मोटर पंप, इलेक्ट्रिक वॉटर हीटर/गीज़र, सोलर वॉटर हीटर, पीवीसी वायरिंग केबल, एलटी व कंट्रोल केबल, यूपीएस और सीलिंग फैन जैसे कई विद्युत उपकरण बनाती है। उसका डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क काफी विस्तृत है।
कंपनी ने वित्त वर्ष 2009-10 में 454.09 करोड़ रुपए की बिक्री पर 25.47 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। उसकी बिक्री पिछले साल की तुलना में 43.35 फीसदी और शुद्ध लाभ 46.85 फीसदी बढ़ा है। कंपनी ने इस साल 10 रुपए के शेयर पर 3 रुपए का लाभांश दिया है। इससे पहले उसने प्रति शेयर 2.50 रुपए लाभांश दिया था। कंपनी के शेयर बीएसई व एनएसई में लिस्टेड हैं जहां उनका बंद भाव बुधवार को करीब ढाई फीसदी बढ़कर क्रमशः 101.95 रुपए व 102.35 रुपए पर बंद हुए हैं। शेयर ने 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 112 रुपए पर इसी 28 अप्रैल 2010 को हासिल किया है।
कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) अभी 8.53 रुपए और बुक वैल्यू 47.40 रुपए है। उसके शेयर का पी/ई अनुपात 11.95 चल रहा है, जबकि इसी उद्योग की हैवेल्स इंडिया का पी/ई अनुपात 16.65 और भारत बिजली का 19.76 है। हां, यूनिवर्सल केबल का पी/ई अनुपात जरूर इससे कम 7.30 है। यूनिवर्सल केबल के दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर का भाव अभी बीएसई में 85.50 रुपए चल रहा है। सीधी-सी बात है कि बिजली के उपकरणों की मांग एफएमसीजी या फार्मा की तरह बराबर बनी रहने वाली है। इसलिए वी-गार्ड इंडस्ट्रीज या यूनिवर्सल केबल जैसे शेयर सस्ते लगें तो उन्हें खरीद कर अपने पोर्टफोलियो में रख लेना चाहिए।
वी-गार्ड इंडस्ट्रीज के बारे में खास बात यह है कि इसके प्रवर्तक व प्रबंध निदेशक के. चित्तीलप्पिली जमीन से उठे हुए उद्यमी हैं। उन्होंने 1977 में अपने पिता से एक लाख रुपए उधार लेकर इस कंपनी की शुरुआत लघु उद्योग इकाई (एसएसआई) के रूप में की थी। इसका आईपीओ फरवरी 2008 में 82 रुपए पर आया था। दो साल में यह करीब 25 फीसदी का रिटर्न दे चुका है। इधर प्रवर्तक कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते जा रहे हैं। मार्च 2009 में उनकी हिस्सेदारी 68.12 फीसदी थी जो मार्च 2010 में 71.31 फीसदी हो चुकी है।