लय के साथ एकाकार

खुशी न खाने में है, न सोने में। पीने में थोड़ी-सी है क्योंकि इससे हम अपनी मूल प्रकृति के करीब आ जाते हैं। असली खुशी गुत्थियां सुलझाने में है क्योंकि इससे हम अपने परिवेश के साथ लयकार हो जाते हैं।

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