मानव समाज कोई गेहूं का बोरा नहीं है जो चार दाने उठाकर सारे माल की गुणवत्ता तय कर दी जाए। यहां तो अंतिम आदमी भी इतना अनोखा हो सकता है कि सारे सर्वेक्षण का नतीजा ही पलट जाए।
2010-12-07
मानव समाज कोई गेहूं का बोरा नहीं है जो चार दाने उठाकर सारे माल की गुणवत्ता तय कर दी जाए। यहां तो अंतिम आदमी भी इतना अनोखा हो सकता है कि सारे सर्वेक्षण का नतीजा ही पलट जाए।
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