आपके मानने या चाह लेने से कुछ नहीं होगा। हाय-तौबा मचाना निरर्थक है। पहले जो है, जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार कीजिए। अगली यात्रा वहीं से शुरू होगी। सीमाएं समझकर ही सीमाएं तोड़ी जाती हैं।
2011-06-25
आपके मानने या चाह लेने से कुछ नहीं होगा। हाय-तौबा मचाना निरर्थक है। पहले जो है, जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार कीजिए। अगली यात्रा वहीं से शुरू होगी। सीमाएं समझकर ही सीमाएं तोड़ी जाती हैं।
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