जो कभी नहीं हुआ, वो अभी हो रहा है। शुक्रवार, 12 मार्च 1993 को जब सुबह से ही मुंबई बम धमाकों से थर्रा रही है, पूरी मुंबई में 257 लोग मारे गए और 1400 से ज्यादा घाटल हो गए, दोपहर डेढ़ बजे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के बेसमेंट तक में जबरदस्त धमाका हुआ, तब भी अपना शेयर बाजार बंद नहीं हुआ था और उसमें सोमवार 15 मार्च से बाज़ार में बाकायदा ट्रेडिंग होने लगी। बुधवार, 26 मार्च 2008 को मुंबई में आतंकी हमला हुआ तो उसके अगले दिन गुरुवार 27 मार्च को बाज़ार ज़रूर बंद रहा। लेकिन शुक्रवार या सोमवार को नहीं। मार्च 2020 में जब कोरोना की महामारी अपने चरम पर थी, तब भी एनएसई व बीएसई ने एक दिन ट्रेडिंग बंद नहीं की। लेकिन आज जब अयोध्या के नए बने राम मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कर रहे हैं तो केंद्र सरकार के निर्देश पर बिना किसी पूर्व योजना के शेयर बाज़ार में छुट्टी घोषित कर दी गई। आज देश भर के सिनेमा घरों में कोई फिल्म नहीं दिखाई जाएगी, बल्कि राम मंदिर में हो रही प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया जाएगा। यह अभूतपूर्व है। आज तक कभी भी देश को ऐसे सन्निपात में नहीं धकेला गया था। 15 अगस्त 1947 को भी नहीं, जब भारत आज़ाद हुआ था। आखिर इसका मकसद क्या है?…
मसकद सिर्फ एक ही है कि इस मौके पर सत्ताधारी दल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राममंदिर पर की जा रही अपनी राजनीति को परवान चढ़ा सकें। देश के चारों शंकराचार्यों ने प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि और तौर-तरीके पर आपत्ति जताई। लेकिन सत्ता के अहंकार और उसे फिर से पाने के खेल में अंधी हो गई सरकार को कुछ भी नहीं दिख रहा। कम से कम शेयर बाज़ार को तो चुनावी राजनीति का मोहरा नहीं बनाया जाना चाहिए था। लेकिन जब विद्यालय व कॉलेज़ ही नहीं, विश्वविद्यालयों से लेकर चुनाव आयोग व सुप्रीम कोर्ट तक राजनीतिक इस्तेमाल और दखल से नहीं बच सके तो शेयर बाज़ार की क्या बिसात रह जाती है।
देश भर में सत्ता हड़पने की अंधी दौड़ जारी है। महाराष्ट्र के जिस यवतमाल जिले में पिछले दो दशकों में 5800 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं, उसके गांवों, शहरों व कस्बों में सैंकड़ों मिनी ट्रक कई हफ्तों तक धनुषधारी राम की बड़ी-बड़ी फोटो लगाकर कोई राहत सामग्री नहीं बांट रहे थे, बल्कि आम लोगों से अनाज एकट्ठा करते रहे जिसे अब अयोध्या पहुंचा दिया गया है। गुजरात से तो टनों घी अयोध्या पहुंचाया गया है। हर राज्य के हर जिले में भाजपा का रामरथ चल रहा है, जैसे प्रधानमंत्री मोदी चक्रवर्ती बनने के लिए कोई अश्वमेध यज्ञ कर रहे हों। प्रधानमंत्री मोदी को यह नहीं दिख रहा कि उनके अपने राज्य गुजरात के नौजवान इतने परेशान हैं कि राज्य ही नहीं, देश छोड़कर भाग रहे हैं और उनके गुजरात मॉडल का सारा तिलिस्म बिखरने की कगार पर है।
यह सच है कि सदियों से बहुत सारे उद्यमी भारतीय गुजरात से निकलकर दुनिया भर में जाते व छाते और अपना धंधा व सिक्का जमाते रहे हैं। लेकिन मोदीराज में हज़ारों बेबस नौजवान काम की तलाश में गुजरात से भाग रहे हैं। दिसंबर में निकारागुआ के डंकी रूट से अमेरिका पहुंचने की जुगत में धर लिए गए अधिकांश गुजराती नवयुवक बनासकांठा, मेहसाणा, गांधीनगर, आणंद और पाटन ज़िले के हैं। जांच से यह भी पता चला है कि नवंबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच अकेले अमेरिका में अवैध रूप से घुसने में लगे 96,917 भारतीय गिरफ्तार किए गए हैं। वित्त वर्ष 2019-20 में यह संख्या 19,883 और 2021-22 में 63,927 रही थी। सवाल उठता है कि भारत जब मोदीराज में ‘रिकॉर्ड-तोड़’ रफ्तार से विकास कर रहा है तो उसके नौजवान, उसका डेमोग्राफिक डिविडेंड देश छोड़कर भाग क्यों रहा है? सरकार के धराऊं अर्थशास्त्री और सरकारी कृपा व विज्ञापनों पर फलता-फूलता मीडिया इसका जवाब नहीं देगा। इसलिए इसका जवाब हमें और आपको खुद ही निकालकर समझना होगा। गौर करने की बात यह भी है कि हर तरफ मचे राम-राम के शोर और धार्मिक राष्ट्रवाद के उन्माद के बीच सिर्फ नौजवान ही नहीं, आम देशवासी भी सन्निपात के शिकार हो रहे हैं।