सत्य की जीत अपने आप नहीं होती। इसके लिए थोड़े झूठ, थोड़े छल का सहारा लेना पड़ता है। इसके लिए ‘नरो व कुंजरो व’ पर शंख बजाना, रथ से नीचे उतरे कर्ण से छल करना और विभीषण से भेद लेना जरूरी होता है।
2010-07-29
सत्य की जीत अपने आप नहीं होती। इसके लिए थोड़े झूठ, थोड़े छल का सहारा लेना पड़ता है। इसके लिए ‘नरो व कुंजरो व’ पर शंख बजाना, रथ से नीचे उतरे कर्ण से छल करना और विभीषण से भेद लेना जरूरी होता है।
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क्या बात कही है!! जय हो!!
सत्य को भी प्रयास की आवश्यकता होती है।
झूठ और कुछ नही स्थगित किया हुआ सच होता है, यह स्थगन इस लिए होता है कि या तो कहने वाला कायर है या सुनने वाला इतना परिपक्व नही हुआ कि सत्य का सामना कर सके।